बचपन से ही, हमने बहुत सी प्रार्थनाएँ बोली, गाई और सुनी हैं। समय के साथ, हमने प्रार्थना में विश्वास विकसित किया है। आइए आज हम यह समझ हासिल करके इस विश्वास को दृढ़ करें कि - 'प्रार्थना का अर्थ क्या है? प्रार्थना के क्या लाभ हैं? हमें भगवान से कैसे प्रार्थना करनी चाहिए? हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए? हमें क्या प्रार्थना करनी चाहिए?
यह समझ हमें एक बेहतर जीवन की ओर ले जाएगी और हमारी आध्यात्मिक यात्रा के विकास में भी मदद करेगी। प्रार्थना, जब सही समझ के साथ की जाती है, तब हमारे कल्याण और आध्यात्मिक विकास पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है।
तो सबसे पहले आइए समझते हैं कि प्रार्थना का अर्थ क्या है...
प्रार्थना भगवान के साथ संवाद है
यह बातचीत है - हमारे भीतर के भगवान के साथ, या मूर्ति के साथ, और जिस भगवान की हम पूजा करते हैं, या उस दिव्य शक्ति के साथ, जिस पर हमारा दृढ़ विश्वास हैं।
यह एक वायरलेस कनेक्शन है! इसलिए, प्रार्थना किसी भी समय और किसी भी स्थान पर की जा सकती है!
सामान्य तौर पर, हमारे बुजुर्ग और गुरु सुबह जल्दी प्रार्थना करने की सलाह देते हैं। प्रात:काल सर्वप्रथम प्रार्थना करने के पीछे का विचार यह है कि हम दैनिक दिनचर्या में व्यस्त होने से पहले प्रार्थना को उचित प्राथमिकता दे रहे हैं। हालांकि, यदि सुबह प्रार्थना करना संभव नहीं है, तो हम दिन के किसी भी समय प्रार्थना कर सकते है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है|
प्रार्थना भगवान के समक्ष की गई विनती है!
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, 'प्रार्थना' का अर्थ है ईश्वर से कुछ अलौकिक की अभिलाषा रखना है!
जब भी हमें कुछ चाहिए होता है लेकिन उसे प्राप्त करने में असमर्थ होते है या जब हमें किसी से मदद या मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है लेकिन मिल नहीं पाती है, तो हम ईश्वर से अत्यंत श्रद्धा, प्रेम और हृदयपूर्वक प्रार्थना करते हैं। और तब हमें हमारी प्रार्थना का उत्तर मिलता ही है!
जब हमारी प्रार्थना सच्ची होती है तो ज़रूर जो प्रार्थना करते हैं वो मिलता है।
प्रार्थना से उत्पन्न स्पंदनों का प्रभाव यह होता है कि हमें दैवी शक्तियों की सहायता प्राप्त होती ब्रह्मांड में कई देवी-देवता हैं जो किसी की भी मदद करने के लिए तैयार है यदि कोई सच्चे ह्रदय से उन्हें प्रार्थना करता है। लोगों को सही दिशा मिले ऐसी अदम्य भावना के कारण उनके पास बहुत पुण्य कर्म होता है। और चूंकि वे अब देवी-देवताओं के रूप में ब्रह्माण्ड में उपस्थित हैं इसलिए वे हमेशा उनकी मदद करते हैं जो शांति और मोक्ष (शाश्वत आनंद) के मार्ग पर प्रगति के लिए उत्सुक हैं। लेकिन हमें उनके समक्ष मांगना होगा! जब हम बीच रास्ते में भटक जाते हैं तब हम रूक कर किसी से मंजिल तक पहुँचने के लिए सही रास्ता पूछते है न? प्रार्थना में भी कुछ ऐसा ही होता है।
प्रार्थना भगवान से की गई विशेष विनती है:
परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, प्रार्थना का अर्थ है ईश्वर से से व्यापक अर्थ में मांगना! प्रार्थना का अर्थ है अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उस शक्ति की माँग करना जिसकी हमारे पास कमी है।
उदहारण के लिए,
यदि हमारा लक्ष्य दूसरो को खुशी देना है, तो हम हर सुबह इस प्रार्थना को पांच बार हृदयपूर्वक से पढ़ सकते हैं: "हे भगवान,मेरे मन वचन काया से इस जगत के किसी भी जीव को किंचितमात्र भी दुःख न हो। " और यदि कोई हमारे साथ दुर्व्यवहार करता है, तो हम उस व्यक्ति पर कृपा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करेंगे। व्यक्ति को बदलने की कोशिश करने के बजाय, उनके लिए अच्छी भावनाएं रखना बेहतर है।
व्यक्ति के बुरे समय में प्रार्थना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कभी-कभी, व्यक्ति अपने भाग्य को बदलने के प्रयास में प्रार्थना का सहारा लेता है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी बीमारी से पीड़ित हैं, या हमारा समय खराब चल रहा है, तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमारे कर्म धुल जाएं।
तो, क्या प्रार्थना हमारे बुरे कर्मों को धो देती है? आइए समझते हैं....
अनेक प्रकार के कर्म भुगतने पड़ते हैं। एक प्रकार के कर्मों को प्रार्थना के द्वारा धोया जा सकता है, दूसरा प्रकार का कर्म वह होता है जिसे सच्चे आध्यात्मिक पुरुषार्थ द्वारा धोया जा सकता है, और तीसरे प्रकार का कर्म वह होता है जिसे हम कितना भी पुरुषार्थ करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भुगतना ही पड़ता है। तीसरे प्रकार का कर्म चिकणे है।
शास्त्रों में इस चिकणे कर्म को 'निकाचित' कर्म कहा गया है। जिसमें व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में कर्म भोगना ही पड़ता है। हालांकि, उस समय प्रार्थना के माध्यम से कुछ राहत मिल सकती है। इसलिए हमेशा प्रार्थना करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रार्थना कर्म को नष्ट करने में सहायक तो नहीं है लेकिन इस अवस्था में व्यक्ति को स्थिरता और आंतरिक शांति देती है ।
जब हमारे कर्म हमे दुःख देते है, तब जागृति आती है। तब हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि, "हे ईश्वर हमे इन कर्मों से बचाओं। तभी हमे जागृति उत्पन्न होती है। ईश्वर हमे जागृति नहीं देते , उनका नाम लेने से ही जागृति आती है।
परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, “बाहर बहुत समस्याएँ हैं, बहुत निराशा है, तो भजन करना अच्छा है। यदि व्यक्ति बहुत बेचैन है और वह ऊँचे स्वर में भजन गाए, तब भीतर स्थिति शांत हो जाएगी। इसके अलावा एक कारण यह है कि मौन प्रार्थना जैसा कुछ नहीं है।"
प्रार्थना का अर्थ है अपनी समस्याओं और चिंताओं को समर्पित करना
जीवन में जब भी कोई परेशानी आती है तब हम भगवान से प्रार्थना करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्रार्थना यानि अपनी सभी संदेहों और चिंताओं को समर्पित करना, अपनी सभी योजनाओं और उलझनों को भगवान के चरण कमल में समर्पित करना।
हम हर रोज़ प्रार्थना करते हैं, 'हे भगवान, मैं आपको समर्पित करता हूं।' अगर हमने भगवान के चरणों में शरण ली है, तो चिंता क्यों करें?'
भगवान हमेशा कहते हैं कि चिंता नहीं करनी चाहिए। चिंता सबसे बड़ा अहंकार है। चिंता तभी उत्पन्न होती है जब हम यह मान लेते हैं कि 'मैं अकेला व्यक्ति हूं जो यह कर सकता है। 'भगवान कृष्ण ने कहा है, "आप चिंता क्यों करते हैं, कृष्ण वह सब कुछ करेंगे जो आवश्यक है।" भगवान महावीर ने भी कहा है, "आप अपने पूर्व भाव के फल को बिल्कुल भी बदल नहीं पाएंगे।
परम पूज्य दादा भगवान बताते हैं कि, "जिस व्यक्ति को ईश्वर में विश्वास नहीं है, वह चिंता करेगा। यदि आपको वास्तव में ईश्वर में विश्वास होता, तो आप सब कुछ उस पर छोड़ देना चाहिए और शांति से सो जाना चाहिए। इस तरह चिंता कौन करेगा? इसलिए भगवान पर भरोसा रखें। क्या भगवान आपकी बात नहीं सुन रहे होंगे ?”
वे आगे सुझाव देते हैं, “एक सप्ताह के लिए सब कुछ भगवान पर छोड़ दो और चिंता करना बंद करो। फिर एक दिन, मेरे पास आओ और मैं तुम्हें भगवान को जानने में मदद करूंगा, जिससे तुम्हारी चिंताएं हमेशा के लिए दूर हो जाएंगी।"
प्रार्थना हमारी अपनी प्रगति के लिए एक साधन है।
प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चों को सिखाना चाहिए कि हर सुबह स्नान करने के बाद, उन्हें शुद्ध मन से प्रार्थना करनी चाहिए,
"हे भगवान ! “मुझे और जगत के सभी लोगों को सच्ची समज दो, सदबुद्धि दो, जगत को मुक्ति दो।“
यदि आप, माता-पिता के तौर पर ऐसा करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपने बच्चों में अच्छे संस्कार सिंचन करने में सफल रहे हैं। पहले तो बच्चे विरोध कर सकते हैं, लेकिन थोड़ी दिनों बाद उन्हें प्रार्थना करना अच्छा लगेगा और वे सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे।
आमतौर पर एक बच्चा कम उम्र से ही प्रार्थना के महत्व को सीख जाता है। तभी उसके अंदर दृढ़ विश्वास विकसित होता है कि भगवान प्रार्थनाओं को सुनते है क्योंकि पूरे मन से की गई प्रार्थनाए निश्चित रूप से फल देती है और कुछ ही समय में, भगवान बच्चो के हमेशा के लिए मित्र बन जाते हैं!
प्रार्थना व्यक्ति को विनम्र बनाती है
जब व्यकित नम्रता से झुक कर प्रार्थना के लिए नमस्कार करता है तो वह स्वीकार करता है कि अभी उसे बहुत कुछ सीखना है। इसलिए जब हम प्रार्थना करते है, तब हम अपने अहंकार का समर्पित करते है और अपने अंदर की अशुद्धियों को छोड़ रहे होते है। व्यकित का अहंकार कम होना वही आध्यात्मिक उन्नति की क्रिया है, जो अपने लिए हो चुकी अज्ञान मान्यतों को धीरे- धीरे कम करेगा। जब हम भगवान से अपने अहंकार को नष्ट करने की शक्ति मांगते हैं, तो हममें परम विनय का विकास होता है।
प्रार्थना धीरे-धीरे हमें उसके (ईश्वर) जैसा बना देती है।
नियम यह है कि यदि हम ऐसे महापुरुषों के सर्वोच्च गुणों की पूजा करते हैं, जिन्होंने आध्यात्मिकता में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है, तो हमें धीरे-धीरे यह लगने लगता है कि बिना किसी प्रकार के पुरुषार्थ के वे गुण हमारे भीतर आ गए हैं। यह एक अद्भुत नियम है! जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हमारा ध्यान बाहरी रूप से जिन्होंने आध्यात्मिकता में उत्कृष्टता प्राप्त की हो उन महापुरुषों के उच्च गुणों पर केंद्रित होता है और भीतर में पता न चले लेकिन दृढ़ इच्छा से वह गुण हममें विकसित होते हैं।
प्रार्थना हमें मीठी और मधुरी वाणी प्राप्त करने में मदद करती है
सच्चे चरित्र की शक्ति का अनुमान वाणी से लगाया जा सकता है। ज्ञानी पुरुष की वाणी मीठी और मधुरी होती है; यह किसी भी सुनने वाले के अंदर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं उत्पन्न करती।
इस तरह की वाणी को प्राप्त करने के लिए, परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, "प्रति दिन आपको ह्रदय पूर्वक और प्रार्थनापूर्ण भाव से कहना चाहिए, 'मेरी वाणी से किसी को दुःख न पहुंचे, और मेरी वाणी ऐसी हो कि वह दूसरे व्यक्ति की मदद और सुख दे।' जब कारणरूप से वाणी के ऐसे बीज बोने के बाद व्यक्ति को सच्ची वाणी प्राप्त होती है।