एक तऱफ युवक दीपक अध्यात्म में तीव्रता से प्रगति कर रहे थे, लेकिन दूसरी तऱफ सांसारिक जीवन उसमें बाधक बन रहा था। पूज्य दीपकभाई ने पूज्य दादाश्री को एक पत्र लिखकर ब्रह्मचारी जीवन जीने की इच्छा व्यक्त की। परम पूज्य दादाश्री ने उनकी योग्यता देखकर उन्हें आजीवन ब्रह्मचर्य के आशीर्वाद दिए। और दूसरी तऱफ परिवार में सब से छोटे और एक मात्र अविवाहित होने के नाते पिता का उनके प्रति अत्यधिक राग था। इसलिए अगले १८ साल तक दादाश्री के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर उन्होंने खुद के प्रति अपने पिताजी की अपेक्षाओं को समभाव में रहकर पूरा किया, और साथ ही साथ इस अंतर तप से अध्यात्म में और भी अधिक दृढ़ होते गए। उन्होंने अपने बीमार पिता की बहुत सेवा की और अंत में उनके पिताजी ने खुद ही उनसे कहा ‘दीपक तू मेरा सच्चा गुरु है, तूने मुझे मुक्ति का सही मार्ग दिखाया’।
subscribe your email for our latest news and events