सन् १९८७ में परम पूज्य दादाश्री सत्संग के लिए अमेरिका गए थे, वहाँ पर उनकी तबीयत बहुत तेजी से बिगड़ रही थी। उन्होंने पूज्य दीपकभाई को अमेरिका बुलवाया। वहाँ पर ४५ दिनों तक परम पूज्य दादाश्री ने उन्हें अध्यात्म की कई बारीकियाँ समझाई और अक्रम विज्ञान से संबंधित उनके ज्ञान की परिक्षा ली। अंत में उनकी आध्यात्मिक प्रगति से संतुष्ट होकर परम पूज्य दादाश्री ने विधि करके उन्हें सत्संग करने की खास सिद्धि प्रदान की। पूज्य श्री दीपकभाई की आगे की प्रगति की ज़िम्मेदारी उन्होंने पूज्य नीरु माँ को सोंपी।
परम पूज्य दादाश्री ने जनवरी १९८८ में जब अपनी नश्वर देह का त्याग किया तब उन्हें पूरा विश्वास था कि पूज्य नीरु माँ और पूज्य दीपकभाई ने जगत कल्याण के इस मिशन को आगे बढ़ाने का जो वादा उनसे किया था, उसे वे पूरी तरह से निभाएँगे।
पूज्य दीपकभाई पूज्य नीरु माँ की संपूर्ण आधीनता में रहकर अध्यात्म में उत्तरोत्तर प्रगति करते गए। उन्होंने विश्वभर में भ्रमण करके ज्ञानविधि और सत्संग किए, जो आज भी जारी हैं। और लाखों लोगों को आत्मज्ञान प्रदान किया। उन्होंने अथक मेहनत करके पूज्य निरुमा के साथ रहकर परम पूज्य दादाश्री के रिकॉर्ड किए हुए सत्संगों का पुस्तकों के रूप में संकलन किया।
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