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युवावस्था

वे हमेशा स्वतंत्र रहना चाहते थे। उन्हें अपने सिर पर किसी ऊपरी का रहना स्वीकार नहीं था। उनके लिए किसी भी प्रकार की नौकरी का मतलब था कि उनके सिर पर एक बॉस होगा जो कभी भी उन्हें निकाल सकता है। एक दिन उन्होंने अपने पिताजी और बड़े भाई को यह बात करते हुए सुना कि वे लोग अंबालाला भाई को कलेक्टर बनाना चाहते थे। इसका मतलब यह था कि उन्हें कमिश्नर के तहत काम करना पड़ता। 'मनुष्य जन्म अत्यंत दुर्लभ है तो इस जन्म को किसी ऊपरी का मातहत बनकर गुज़ारने का क्या अर्थ है।' जब मुझे संसार की किसी चीज़ की चाहत ही नहीं है, तो फिर मैं क्यों किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहूँ, जो मेरा बॉस बनकर रहे? यह उनके लिए ठीक है, जिन्हें संसारी सुखों की इच्छा है, लेकिन यह मेरे लिए नहीं है। इसके बजाय मैं एक पान की दुकान लगाना पसंद करूँगा, लेकिन किसी भी कीमत पर नौकरी नहीं करूँगा। इसलिए मैंने दसवीं कक्षा में फेल होना तय किया ताकि मेरे भाई और पिताजी मुझे कलेक्टर बनाने का इरादा छोड़ दें!

Dada Bhagwan

सतत अध्यात्मिक खोज में रहनेवाले अंबालाल भाई को ऐसी किसी भी चीज़ से खुशी नहीं मिलती थी, जिन चीज़ों से लोगों को खुशी मिलती है। वे कभी भी सामाजिक नियमों के प्रभाव में नहीं आए और जो सब लोग करते थे, उससे कुछ अलग ही करते थे। उन्होंने कभी भी पैसों का लालच नहीं किया। और वे अपने कोन्ट्रेक्ट का बिज़नेस ईमानदारी और उसूलों से चलाते थे। जब अन्य कोन्ट्रेक्टर उन्हें पैसे बचाने के लिए निम्न कोटि का सामान इस्तेमाल करने की सलाह देते, तब वे कहते थे कि भले ही भूखों मर जाएँ, लेकिन कभी भी मकान बनाने के लिए निम्न या खराब कोटि के सीमेन्ट या स्टील का इस्तेमाल नहीं करेंगे। सीमेन्ट और स्टील किसी भी इमारत में शरीर के खून व हड्डी के समान हैं।

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