अठारह साल की उम्र में उनका विवाह हीराबा के साथ हुआ। विवाह के कुछ समय बाद ही एक बीमारी में हीराबा की एक आँख चली गई। कुछ समय बाद लोग अंबालाल से दूसरा विवाह करने के लिए कहने लगे। क्योंकि हीराबा में नुख्स था। लेकिन अंबालाल भाई उन्हें साफ-साफ कहते थे कि 'मैंने पवित्र अग्नि की साक्षी में जीवनभर साथ निभाने की कसम खाई है। मैं अंतिम श्वास तक वादा निभाऊँगा। अगर इनकी दोनों आँखें चली जाएँ तो भी मैं उनका ध्यान रखूँगा'!
संपूर्ण विवाहित जीवन में कभी भी उनका हीराबा के साथ झगड़ा नहीं हुआ।
उनका जीवन बहुत ही सादा और सरल था। सफल व्यवसाय चलाने के बावजूद वे घर खर्च के लिए इतनी ही रकम ले जाते थे जो कि एक नॉन-मैट्रिक व्यक्ति की तनख्वाह के बराबर थी। उन्होंने कभी भी व्यापार में हुए नफे के पैसे का उपयोग नहीं किया और अपने पार्टनर को उन पैसों से बेटी की शादी और अन्य ज़रूरत के लिए खर्च करने की अनुमति दी। वे अपने खर्चे पर लोगों को धार्मिक यात्रा पर भी ले जाते थे,उन्होंने अपने निजी खर्चे के लिए कभी भी किसीसे एक पैसा तक नहीं लिया।
अहिंसा पालन करने के प्रति उनकी जागृति इतनी अधिक थी कि कभी यदि अगर वे रात को देर से घर लौटते थे तो, वे अपने जूते निकाल कर नंगे पैर सड़क पर चलते थे ताकि जूतों की आवाज़ से सड़क पर सोए हुए कुत्ते नींद से न जग जाएँ।
वे सांसारिक जीवन को एक अलग ही दृष्टि से देखते थे । ''बचपन से ही मैंने संसार के भयावह स्वरूप को देख लिया था। प्रतिक्षण भय, दुःख और परेशानियाँ हैं। इसलिए मैं संसार की किसी भी चीज़ या काम में गहरा नहीं उतरता था। पता नहीं कौन-सी घड़ी देह छोड़ना पड़े, क्या पता''? उनका दिमा़ग हमेशा उच्च आध्यात्मिक विचारों में ही डूबा रहता था। शाश्वत सत्य और आत्मज्ञान की खोज में उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का गहराई से अध्ययन किया। ज्ञानीपुरुष श्रीमद् राजचंद्र द्वारा लिखे गए ग्रंथों से वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि 'यदि मैं श्रीमद् राजचंद्र से मिल पाता तो अवश्य उन्हें अपना गुरु बना लेता'।
''मैं खटमल को भी अपने आपको काटने देता। मैं खटमल से कहता 'अब तुम आ ही गए हो तो अच्छी तरह भोजन करके जाओ। भूखे मत जाना'। मेरा यह शरीर एक ऐसा 'होटल' है कि यहाँ पर जो भी आए, उसे सुख मिले और इससे किसीको कभी दुःख न हो। मेरी 'होटल' का यह बिज़नेस था। इस प्रकार मैंने खटमल को भी खाना खिलाया। अगर मैं नहीं खिलाता तो क्या कोई मुझ पर फाइन लगाता? नहीं! मेरा ध्येय सिर्फ आत्मा की प्राप्ति का ही था। मैं लगातार इन नियमों का पालन करता था-सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना, कंदमूल नहीं खाना और हमेशा उबला हुआ पानी ही पीना। अपनी अध्यात्मिक खोज में मैंने कुछ भी बाकी नहीं रखा और देखो पूरा अक्रमविज्ञान प्रकट हों गया, यह विज्ञान जो कि पूरे विश्व को प्योर बना दे ऐसा विज्ञान है''!!
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