जैसे ही आत्मा देह को छोड़कर जाता है, देह को तुरंत मृत घोषित कर दिया जाता है। तो मृत्यु के बाद तुरंत ही आत्मा कहाँ जाता है? आत्मा सीधे ही अपने नए स्थान पर पहुंच जाता है जहाँ उसका पुनर्जन्म होता है। यदि कोई आत्मा के अस्तित्व को समझता है, वह उस मान्यता के आधार पर पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। जन्म और मृत्यु की अनंत अवस्थाओं में आत्मा सदा ही अपने मूल स्वरूप में रहता है; वह अमर है। फिर भी, अज्ञानता के कारण, प्रत्येक जन्म में, आत्मा के पास पुद्गल का साथ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
चलिए, परम पूज्य दादा भगवान के शब्दों में इस प्रक्रिया को विस्तार से समझते है कि देह छोड़ने के बाद आत्मा कहाँ जाता है।
प्रश्नकर्ता : जब शरीर का नाश होता है, तब आत्मा कहाँ जाता है?
दादाश्री : जैसे ही आत्मा देह में से निकला कि सीधे उसकी गति में चला जाता है, योनि प्राप्त हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : मृत्यु के समय जब आत्मा एक देह छोड़ रहा हो, तब वह दूसरी देह में जाने से पहले कहाँ, कितने समय तक और किस तरह से रहता है? दूसरी देह में जाने में हर एक जीव को कितना समय लगता है?
दादाश्री : उसे बिल्कुल भी समय नहीं लगता। यहाँ इस देह में भी होता है और वहाँ योनि में प्रवेश करना शुरू हो जाता है। यानी कि इसमें टाइम ही नहीं लगता।
प्रश्नकर्ता : देह छूटते समय एक छोर यहाँ पर होता है और दूसरा छोर पंजाब में होता है, ऐसा कहते हैं, ऐसा किस तरह से है, ज़रा समझाइए।
दादाश्री : आत्मा संकोच-विकास का भाजन है, इसलिए कितना भी लंबा हो सकता है। तो, जहाँ पर उसका ऋणानुबंध होता है, वहाँ पर जाना पड़ता है न? तब थोड़े ही यहाँ से पैरों से चलकर जाएगा? उसके पैर और स्थूल शरीर है ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : तो दोनों जगह पर रह सकता है?
दादाश्री : हाँ। यहाँ से जहाँ पर जाना हो, वहाँ तक उतना खिंच जाता है। फिर वहाँ पर घुसने की शुरूआत हुई हो तो यहाँ से बाहर निकलता जाता है। जैसे साँप यहाँ बिल में से निकल रहा हो तो एक भाग बाहर भी होता है और दूसरा भाग अंदर भी होता है, उसके जैसी बात है यह।
प्रश्नकर्ता : यानी इस देह को छोड़ने में और दूसरी देह ग्रहण करने में, इन दोनों के बीच में कितना समय लगता है?
दादाश्री : बिल्कुल भी समय नहीं लगता। यहाँ पर भी होता है, इस देह में से निकल रहा होता है यहाँ से और वहाँ योनि में भी हाज़िर होता है। क्योंकि यह टाइमिंग है, वीर्य और रज का संयोग होता है उस घड़ी। यहाँ पर देह छूटनेवाली होती है, तब वहाँ पर वह संयोग होता है। वह सब इकट्ठा हो जाए, तब यहाँ से जाता है। वर्ना वह यहाँ से जाएगा ही नहीं, क्योंकि यदि यहाँ से चला जाएगा तो वह खाएगा क्या? वहाँ योनि में गया लेकिन खुराक क्या खाएगा? पुरुष का वीर्य और माता का रज, वे दोनों ही होते हैं, और वहाँ जाते ही भूख के मारे उनको वह सारा ही खा जाता है। और खाकर फिर पिंड बनता है। बोलो अब, ये सब साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं न? तब फिर यहाँ से निकलने में देर नहीं लगती। अब वहाँ पर यदि ऐसा टाइम सेट नहीं हुआ हो न, तब तक यहाँ पर इस देह में उं..उं..उं.. करता रहता है। ‘क्यों निकलते नहीं हो? जल्दी जाओ न’ यदि ऐसा कहें, तब कहेगा, ‘नहीं अभी तैयारी नहीं हुई है वहाँ पर!’ ऐसे अंतिम घड़ी में उं..उं..उं..करता है न? वहाँ पर ‘एडजस्ट’ हो जाने के बाद यहाँ से निकलता है। लेकिन जब निकलता है, तब वहाँ पर सब पद्धतिपूर्वक ही होता है।
जब अंतिम श्वास चल रही होती है, तब आत्मा कारण शरीर और तेजस शरीर के साथ पुराने शरीर को छोड़ देता है (इस घटना को मृत्यु कहा जाता है)। उसी क्षण, वह एक नया देह धारण करता है (इस घटना को जन्म कहते है)। तीनो (आत्मा, कारण शरीर, ‘इलेक्ट्रिकल बॉडी’ (तेजस शरीर)) एक साथ निकलते हैं।
जब आत्मा देह को छोड़ता है, तब उसके साथ कर्म कारण देह के रूप में चला जाता है। कारण देह के आधार पर, आत्मा अपने उचित स्थान पर पहुँच जाता है और माता के गर्भ को ढून्ढ कर वहीं रहता है। जैसे ही कारण देह में से कर्म एक के बाद एक डिस्चार्ज होना शुरू होता है वैसे गर्भ में देह का विकास होता है। अन्त में बालक का जन्म होता है और सारा जीवन पूर्व जन्म में किए गए कारणों (कर्मों) के अनुसार ही उदय में आता है। मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाता है? इसका यही वैज्ञानिक उत्तर है।
जब पुराने कर्मों का डिस्चार्ज होता है, उसी समय नए कर्म चार्ज होते हैँ। ये कर्म से नया कारण शरीर बनता है, मृत्यु के समय आत्मा और तेजस देह के साथ वह यह भव के स्थूल शरीर को छोड़ देता है। इस प्रकार, एक बार फिर, मृत्यु के समय ऊपर वर्णित अनुसार वही चक्र दोहराया जाता है।
जब तक यह संसार है, तब तक हर एक जीव में यह इलेक्ट्रिकल बॉडी होती ही है! हर एक जीव मात्र में, पेड़ में, सभी में तेजस शरीर होता है
इलेक्ट्रिकल बॉडी हर एक जीव में सामान्य भाव से होती ही है और उसके आधार पर अपना सब चलता है। भोजन खा लेते हैं, उसे पचाने का काम यह इलेक्ट्रिकल बॉडी करती है। ये खून वगैरह सब बनता है, खून शरीर में ऊपर चढ़ाती है, नीचे उतारती है, अंदर ये सारे काम करती है। आँखों से जो दिखता है, वह सारी लाइट इलेक्ट्रिकल बॉडी के कारण ही है। और ये क्रोध-मान-माया-लोभ, ये भी इस इलेक्ट्रिकल बॉडी के कारण होते हैं। आत्मा में क्रोध-मान-माया-लोभ हैं ही नहीं।
इलेक्ट्रिकल बॉडी हो तभी चार्ज होता है, वर्ना यदि यह इलेक्ट्रिकल बॉडी नहीं होगी तो यह कुछ भी चलेगा ही नहीं। ‘इलेक्ट्रिसिटी’ के बिना तो घर में चल ही नहीं सकेगा और आँखों से दिखेगा भी नहीं। इलेक्ट्रिकल बॉडी हो और आत्मा नहीं हो, तब भी कुछ नहीं चलेगा। कर्म की सिल्लक खत्म हो गई कि तेजस शरीर (साथ में) नहीं आता। अर्थात् वह इस पूरे भवपर्यंत ठेठ तक रहता है।
जब जीव की मृत्यु होती है ,तब पांचों इन्द्रियों का क्षय हो जाता है। इसलिए कोई भी इन्द्रिय व कुछ भी आत्मा के साथ नहीं जाता। केवल यह क्रोध, मान, मोह व लोभ ही साथ जाते है। यह कारण देह में क्रोध, मान, मोह, और लोभ सब आ गये। जब तक मोक्ष नहीं प्राप्त होता तब तक सूक्ष्म देह आत्मा के साथ ही होता है।
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