एक बार जब व्यक्ति, आत्मा को जान लेता है, तो उसे और कुछ जानने कि ज़रूरत नहीं पढ़ती। आत्मा को जानने के बाद, उसकी दशा, वास्तव में अनोखी हो जाती है। लेकिन, अब मन में ऐसा सवाल उठता है कि, अपने आत्मा को कैसे जाने। इसके लिए, यह जानना आवश्यक है की आत्मा कैसे बना हुआ है और आत्मा का स्वभाव क्या है । यह कई गुणधर्मो से बना हुआ है।
गुण और गुणधर्म उसके स्वभाव को दर्शाते है। हम सोने को सोना कब कहेंगे? केवल तभी, जब उसमे सोने के गुण हो, यानी कि, वह सोने कि गुणधर्म दिखाए। यदि पीतल को अच्छी तरह से पॉलिश किया जाए तो वह सोने के तरह दिख सकता है और चमक सकता हैं। लेकिन अगर सुनार इसकी जांच करे, तो वो, धातु कि स्वाभाविक गुण के आधार पर बता सकता है कि यह सोना नहीं है। इसी तरह, आप भी अपने आत्मा को, उसके गुणधर्म के आधार पर जान सकते है।
तो आइए जानते हैं आत्मा के कुछ गुणों के बारे में!
आत्मा के स्वाभाविक गुण अनंत हैं। जबकि अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत सुख इसके मूल गुण हैं, कई अन्य भी गुण हैं।
आत्मा चेतन है। यह एक ऐसा तत्त्व हैं, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य में रहता हैं। आत्मा अमर, टंकोत्कीर्ण और अमूर्त है; यह अचल है, और वह अव्याबाध स्वरूपी है - इस प्रकार से आत्मा में विविध गुण हैं। ये स्वाभाविक गुण हैं; ऐसे गुण जो कभी भी नहीं बदलते।
देखना और जानना आत्मा का स्वभाव है। आत्मा किन चीजों से बना हुआ है, यह जानने के लिए आत्मा के गुणों को समझना आवश्यक है। किसी अन्य अविनाशी तत्व में यह गुण नहीं है। यह “जानने” का स्वभाव, किसी जड़ तत्त्व वस्तु में नहीं हैं और न ही यह जीवित देह का स्वभाव है। 'जानने' का यह गुण केवल आत्मा का ही है।
पूज्य दीपकभाई ने, इसे एक उदहारण से समझाया है...
मान लीजिये, एक हॉल में घोर अँधेरा है और आप उस हॉल में, अपनी टोर्च ले कर जाते हो। अब टोर्च कि रौशनी कि मदद से, आप हॉल में देख पाते हो और आपको पता चलता हैं, कि यहाँ कुर्सियां है, यह पंखे के स्विच हैं और पंखा है।
तो, यहाँ दो चीजें हैं; प्रकाश और ज्ञान
इसी प्रकार से, आत्मा प्रकाश की तरह है और इसमें ज्ञान और दर्शन(आत्मा के गुण) हैं। जब आप अपने वास्तविक स्वरुप (आत्मा को) को देखते हैं, तो वह रियल ज्ञान है और जब आप सांसारिक चीजों को देखते हैं, तो वह लौकिक ज्ञान है।
वास्तविक ज्ञान, आत्मविज्ञान के रूप में है। जो आत्म विज्ञान को जान लेता है वह जन्म-जन्म की भटकन से मुक्त हो जाता है। काफी लोग, जो ज्ञानी पुरुष से मिले और उनकी कृपा से आत्मज्ञान प्राप्त किया, अंततः उनकी प्रगति हुई और उस दशा तक पहुच पायें। सभी को ऐसी दशा प्राप्त हो ऐसी हमारी भावना है।
हम सब आत्मा है! आत्मा में अनंत शक्ति है। हालांकि अज्ञानता के आवरण से ढके होने के कारण, हमें अपना स्वरूप; अपनी शक्ति; और अपनी स्वसत्ता का भान नहीं है। केवल एक ज्ञानी ही इन आवरणों को तोड़ कर, आत्मा की शक्तियों को प्रगट कर सकते है। कैसे? आईये, इसे समझते है, नीचे दीये गए संवाद के द्वारा......
प्रश्नकर्ता : आत्मा में अनंत शक्तियाँ हैं क्या?
दादाश्री : हाँ। लेकिन वे शक्तियाँ ‘ज्ञानीपुरुष’ के माध्यम से प्रकट होनी चाहिए। जैसे कि जब आप स्कूल में गए थे, तब वहाँ पर सिखाया था न? आपका ज्ञान तो था ही आपके अंदर, लेकिन वे प्रकट कर देते हैं। उसी प्रकार ‘ज्ञानीपुरुष’ के पास आपकी खुद की शक्तियाँ प्रकट हो सकती हैं। अनंत शक्तियाँ हैं, लेकिन वे शक्तियाँ ऐसे के ऐसे दबी हुई पड़ी हैं। वे शक्तियाँ हम खुली कर देते हैं। जबरदस्त शक्तियाँ दबी हुई हैं! वे सिर्फ आपमें अकेले में नहीं हैं, जीव मात्र में ऐसी शक्तियाँ हैं, लेकिन क्या करें? यह तो लेयर्स पर लेयर्स (आवरण) डाले हुए हैं सारे!
जिस तरह सुगंध से इत्र की पहचान होती है, उसी प्रकार आत्मा अमूर्त होते हुए भी उसके सुख स्वभाव पर से पहचाना जा सकता है। आत्मा कैसे बना हुआ है यह समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण गुण है। यह आप (स्वयं) हैं। परन्तु, जब आप ज्ञानी कि कृपा से अपने सच्चे स्वरुप कि पहचान कर लेते है, तभी यह सभी गुण प्रकट होते है। इसलिए, आत्मा अनंत सुख का धाम होते हुए भी, लोग जीवन के भौतिक सुखों की तलाश में रहते हैं। हालाँकि, एक बार आत्मा का भान हो जाए तो भीतर अनंत सुख प्रकट हो जाता है।
आत्मा एक तत्त्व है, इसलिए उसके टुकड़े नहीं किये जा सकते।
आत्मा खुद ही परमात्मा है और वह वस्तु के रूप में है। यानी उसका एक भी टुकड़ा अलग नहीं हो सकता, ऐसी पूर्ण वस्तु है। अगर विभाजन हो जाए तो टुकड़ा हो जाएगा तो वस्तु खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है। आत्मा का विभाजन नहीं हो सकता।
आत्मा अविनाशी है। और अविनाशी पैदा नहीं होता कभी भी। वह तो हमेशा रहता है।
उसका नाश भी नहीं होता और वह पैदा भी नहीं होता। कोई पैदा नहीं हुआ है और नष्ट भी नहीं हुआ है। यह जो दिखता है, यह सारी भ्रांति है। और अवस्थाओं का नाश होता है। बुढ़ापे की अवस्था, जवानी की अवस्था, उन सबका नाश होता रहता है और वह ‘खुद’, जो था, वही का वही। अर्थात् अवस्था का विनाश होता है। जो ‘आता’ है, वह सनातन नहीं हो सकता और आत्मा सनातन वस्तु है। तो फिर उसके लिए ‘आया, गया’ नहीं होता।
आत्मा तो इतना सूक्ष्म है कि, यह अग्नि लेकर आत्मा के अंदर ऐसे घुमाएँ तब भी आत्मा जलेगा नहीं। ऐसे अंदर हाथ घुमाएँ तो भी आत्मा हाथ को स्पर्श नहीं होगा। आत्मा ऐसा है। उस आत्मा में बर्फ़ घुमाएँ तब भी ठंडा नहीं होगा, उसमें तलवार घुमाओ तो वह कटेगा ही नहीं।आत्मा प्रकाश-स्वरूप है। हाँ, जिस प्रकाश को स्थल की भी ज़रूरत नहीं है, आधार की भी ज़रूरत नहीं है, ऐसा प्रकाशस्वरूप है आत्मा का। और पहाड़ों के भी आरपार जा सके ऐसा है, ऐसा वह आत्मा है।
आत्मा निराकार है, आत्मा किससे बना हुआ है यह समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण गुणधर्म है। आत्मा का आकार नहीं होता, वह निराकारी वस्तु है। फिर भी स्वभाव से आत्मा कैसा है? जिस देह में है, उस देह का जो आकार है, उस जैसे आकार का है। उदाहरण के लिए, जैसे पानी प्याले में डालने पर, पानी प्याले का आकार ले लेता है , उसी तरह आत्मा जिस देह में हो, उसी का आकार धारण कर लेता है।
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