आध्यात्मिक रूप से जागृत होने का अर्थ है कि अपने खुद के सच्चे स्वरूप, आत्मा को पहचानना। आत्मा कि जागृति तभी कहलायी जाती है, जब हमें आत्मसाक्षात्कार होता है।
वास्तव में “मै कौन हूँ “न जानते हुए, अज्ञान आत्मा रोंग मान्यता के आधार यह मानता है की “मै देह हूँ , मै कर्ता हूँ।“ इन्ही अज्ञान मान्यताओं के कारण, मृत्यु एवं पुनर्जन्म, एक जन्म के बाद दूसरा जन्म होते आ रहें है, जिसके फलस्वरूप, अलग- अलग गतियों में अनगिनत जन्म हो रहें है, जैसे कि:
१. देव गति
२. मनुष्य गति
३. जानवर गति
४. नर्क गति
आईये, नीचे दिए गए संवाद के द्वारा, हम इसे समझते है:
प्रश्नकर्ता : मरने से पहले जैसी वासना हो, उस रूप में जन्म होता है न?
दादाश्री : हाँ, वह वासना, लोग जो कहते हैं न कि मरने से पहले ऐसी वासना थी, लेकिन वह वासना लाने से लाई नहीं जा सकती। वह तो सार है पूरी ज़िन्दगी का। पूरी ज़िन्दगी आपने जो कुछ किया न, उसका मृत्यु के समय, अंतिम घंटे में सार आ जाता है। और उस सार के अनुसार उसकी गति हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : मृत्यु के बाद सभी लोग मनुष्य के रूप में जन्म नहीं लेते। कोई कुत्ते या गाय भी बनते हैं।
दादाश्री : हाँ, उसके पीछे ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स’ हैं, सभी वैज्ञानिक कारण इकट्ठे होते हैं। इसमें इसका कोई कर्ता नहीं है कि ‘भगवान’ ने यह नहीं किया है और ‘आपने’ भी यह नहीं किया है। ‘आप’ सिर्फ मानते हो कि ‘मैंने यह किया’ इसीलिए अगला जन्म उत्पन्न होता है। जब से ‘आपकी’ यह मान्यता टूट जाएगी, ‘मैं कर रहा हूँ’ की ‘रोंग बिलीफ़’, वह भान ‘आपका’ टूट जाएगा और ‘सेल्फ’ का ‘रियलाइज़ेशन’ हो जाएगा, उसके बाद ‘आप’ कर्ता रहोगे ही नहीं।
प्रत्येक जन्म में, लोगो ने हमे अज्ञान ही प्रदान किया है। बचपन से ही, जगत के लोग हमे सिखाते है कि “आप जॉन है (पाठक अपना नाम पढ़े), आप इनके बेटे हो, आप डॉक्टर हो, आप इनके भाई हो, इत्यादि।“ हम फिर तुरंत ही, यह मानना शुरू कर देते है कि, “मै जॉन हूँ, मै एक बेटा हूँ, एक डॉक्टर हूँ, और एक भाई हूँ।”
इन सभी मान्यताओं में, बाकी सभी भूलें है, और "मै जॉन हूँ" यह ब्लंडर है। ऐसा इसलिए , क्योंकि से अज्ञानता शुरू होती है और इसी आधार पर दूसरी मान्यताएँ बनती है।
जब प्रत्यक्ष ज्ञानी, 'मैं कौन हूँ' का यथार्थ ज्ञान देता है; तब हमारे ब्लंडर या रोंग बिलीफ टूट जाती है जैसे कि 'मैं जॉन हूं'। हम वास्तव में शुद्धात्मा ही हैं। इसलिए, हम अनुभव करते हैं, "ओह ! मैं तो एक शुद्धात्मा हूँ।" फिर, भूलें दूर हो जाती हैं और हमें आत्म-साक्षात्कार का अनुभव होता है। इसी तरह से, आध्यात्मिक जागृति होती है|
आइए इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं। राजा का छोटा कुंवर खो गया था। (जैसा कि लोग उसे बताते हैं , वह नहीं जानता, कि वो खुद कौन है) उसने सोचा, “मैं यह हूँ” फिर, पाँच साल बाद, वह वापस आता है और जब राजा ने उसे पहचान लिया, तो उसे पता चला है कि , “अरे! मैं तो राजा का पुत्र हूँ “ ऐसा इसलिए है क्योंकि वह वास्तव में राजा का ही पुत्र था; क्योंकि वो खो गया था, उसको नहीं मालूम था, कि "मैं कौन हूँ", इसीलिए, जो लोगों ने बताया, वही वो मान बैठा था। इसी तरह से, आध्यात्मिक रूप से जागृत होने का अर्थ है कि यह जानना की आप वास्तव में कौन हैं।
इस प्रकार, अनंत जन्मों से अज्ञानता वश आत्मा को जन्म और मृत्यु के चक्र में पुद्गल के साथ रहना पड़ता है। जब जीव को मनुष्य जन्म प्राप्त होता है और ज्ञानी पुरुष से मिलते है, तभी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। जब खुद के स्वरूप की गलत मान्यता दूर हो जाती है, तब वह निरालंब हो जाता है; पूरी तरह से निरालंब ! यही कारण है, उच्च कोटि के देवताओं को अनगिनत सुख सुविधाओं के बीच में रहने के बाद भी, यह तीव्र इच्छा होती है कि जब उनका यह दिव्य देह छूटे, तब उनका जन्म मनुष्य गति में हो।
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