एक भाई से मैंने कहा कि, ‘इन नौ कलमों में सब समा गया है। इसमें कुछ भी बाकी नहीं रखा है। आप ये नौ कलमें रोज़ पढ़ना।’ फिर उसने कहा, ‘लेकिन यह नहीं हो पाएगा।’ मैंने कहा, ‘अरे, मैं करने को नहीं कहता हूँ।’ ‘नहीं हो पाएगा’ ऐसा क्यों कहते हो? आपको तो इतना कहना है कि, ‘हे दादा भगवान, मुझे शक्ति दो।’ शक्ति माँगने को कहता हँू। तब कहते हैं, ‘फिर तो मज़ा आएगा!’ (संसार में) लोगों ने तो करना ही सिखाया है।
फिर मुझे कहते हैं, ‘ये शक्तियाँ कौन देगा?’ मैंने कहा, ‘मैं शक्तियाँ दूँगा।’ आप जो माँगों वे शक्तियाँ देने को तैयार हूँ। आपको खुद को माँगना ही नहीं आता, इसलिए मुझे इस तरह सिखाना पड़ता है कि ऐसे शक्ति माँगना। ऐसा नहीं सिखाना पड़ता? देखो न, सब सिखाया ही है न? यह मेरा सिखाया हुआ ही है न? इसलिए वे समझ गए, फिर कहते हैं कि इतना तो होगा, इतने में सब आ गया।
प्रश्नकर्ता: पहले तो यही शंका होती है कि शक्ति माँगने से मिलेगी या नहीं?
दादाश्री: यही शंका गलत साबित होती रहती है। अब यह शक्ति माँगते रहते हो न! इसलिए आपमें यह शक्ति उत्पन्न होने के बाद, वह शक्ति ही कार्य करवाएगी। आपको कुछ नहीं करना है। आप करने जाओगे तो अहंकार बढ़ जाएगा। फिर ‘मैं करने जाता हूँ लेकिन होता नहीं है’ ऐसा होगा फिर। इसलिए वह शक्ति माँगो।
प्रश्नकर्ता: इन नौ कलमों में हम शक्ति माँगते हैं कि ऐसा नहीं किया जाए, नहीं करवाया जाए और अनुमोदन नहीं किया जाए, इसलिए इसका मतलब यह है कि भविष्य में ऐसा नहीं हो, उसके लिए हम शक्तियाँ माँगते हैं या फिर यह हमारा पिछला किया-कराया धुल जाए इसलिए है यह?
दादाश्री: पिछला धुल जाए और शक्ति उत्पन्न हो। शक्ति तो है ही, लेकिन वह शक्ति (पिछले दोष) धुलने पर व्यक्त होती है। शक्ति तो है ही लेकिन व्यक्त होनी चाहिए। इसलिए दादा भगवान की कृपा माँगते हैं, यह अपना धुल जाए तो शक्ति व्यक्त हो जाए।
प्रश्नकर्ता: यह सब पढ़ा तब मालूम हुआ, यह तो ज़बरदस्त बात है। छोटा आदमी भी अगर समझ जाए तो उसकी सारी ज़िंदगी सुखमय जाए।
दादाश्री: हाँ, बाकी समझने जैसी बात ही आज तक उसे नहीं मिली। यह पहली बार स्पष्ट समझने जैसी बात मिल रही है। अब यह प्राप्त हो जाए तो निबेड़ा आ जाए।
इन नौ कलमों में से अपने आप हम से जितनी कलमों का पालन होता हो, उसमें हर्ज नहीं है। लेकिन जितना पालन नहीं हो पाए, उसका मन में खेद मत रखना। आपको तो सिर्फ इतना ही कहना है कि मुझे शक्ति दीजिए। उससे शक्ति मिलती रहेगी। भीतर शक्ति जमा होती रहेगी। फिर काम अपने आप होगा। शक्ति माँगोंगे तो सभी नौ कलमें सेट हो जाएँगी। अर्थात् आप सिर्फ बोलेंगे तो भी बहुत हो गया। बोला यानी शक्ति माँगी, उससे शक्ति प्राप्त हुई।
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page #26 Paragraph #2 to #5 Page #27 Paragraph #1 to #5)
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