प्रश्नकर्ता : मनुष्य बिना कारण झूठ बोलने के लिए प्रेरित होता है। उसके पीछे कौन-सा कारण काम करता होगा?
दादाश्री : क्रोध-मान-माया-लोभ के कारण करते हैं वे। कोई भी वस्तु प्राप्त करनी है, या तो मान प्राप्त करना है या लक्ष्मी प्राप्त करनी है, कुछ तो चाहिए। उसके लिए झूठ बोलता है या तो भय है, भय के मारे झूठ बोलता है। अंदर छुपा-छुपा भय है कि 'कोई मुझे क्या कहेगा?' ऐसा कुछ भी भय होता है। फिर धीरे-धीरे झूठ की आदत ही पड़ जाती है। फिर भय नहीं होता तो भी झूठ बोल लेता है।
प्रश्नकर्ता : इस समाज में बहुत लोग झूठ बोलते हैं और चोरी-लुच्चाई सब करते हैं, और बहुत अच्छी तरह रहते हैं। सच बोलते हैं, उन्हें सब तकलीफें आती हैं। तो अब कौन-सी लाइन पकड़नी चाहिए? झूठ बोलकर खुद को थोड़ी शांति रहे ऐसा करना चाहिए या फिर सच बोलना चाहिए?
दादाश्री : ऐसा है न, पहले झूठ बोला था उसका यह फल आया है, यहाँ चख रहे हो आराम से (!) दूसरा थोड़ा सच बोला था, उसका फल उसे मिला है। अब इस समय झूठ बोलता है, तो उसका फल उसे मिलेगा। आप सच बोलोगे तो उसका फल मिलेगा। यह तो फल चखते हैं। न्याय है, बिलकुल न्याय है।
आज एक व्यक्ति की परीक्षा का रिज़ल्ट आया और वह पास हो गया। और हम नापास हुए। पास होनेवाला व्यक्ति आज भटकता रहता है, पर परीक्षा देते समय करेक्ट दी होती है। इसलिए यह सब जो आता है, वह फल आता है। उस फल को शांतिपूर्वक भोग लेना उसका नाम पुरुषार्थ।
प्रश्नकर्ता : कितने ही झूठ बोलें तो भी सत्य में खप जाता है और कितने ही सच बोलें तो भी झूठ में खपता है। यह पज़ल (पहेली) क्या है?!
दादाश्री : वह उनके पाप और पुण्य के आधार पर होता है। उनके पाप का उदय हो तो वे सच बोलते हैं तो भी झूठ में चला जाता है। जब पुण्य का उदय हो तब झूठ बोले तो भी लोग उसे सच स्वीकारते हैं, चाहे जैसा झूठा करे तो भी चल जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो उसे कोई नुकसान नहीं होता?
दादाश्री : नुकसान तो है, पर अगले भव का। इस भव में तो उसे पिछले जन्म का फल मिला। और यह झूठ बोला न, उसका फल उसे अगले भव में मिलेगा। अभी यह उसने बीज बोया। बा़की, यह कोई अंधेर नगरी नहीं है कि चाहे जैसा चल जाएगा!
Book Name: वाणी, व्यवहार में...(Page #35 Paragragh #6, #7 & Page #36)
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