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वाणी और आंतरिक भावों के बीच क्या संबंध है?

घर में पत्नी को डाँटे तो वह समझता है कि किसीने सुना ही नहीं न! यह तो ऐसी ही है न! छोटे बच्चे हों, तब उनकी उपस्थिति में पति-पत्नी चाहे जैसा बोलते हैं। वे समझते हैं कि यह छोटा बच्चा क्या समझनेवाला है? अरे, भीतर टेप हो रहा है, उसका क्या? वह बड़ा होगा तब वह सब बाहर निकलेगा!

सामान्य व्यवहार में बोलने में हर्ज नहीं है। पर देहधारी मात्र के लिए कुछ भी उल्टा-सीधा बोला गया तो वह भीतर टेपरिकॉर्ड हो गया। इस संसार के लोगों की टेप उतारनी हो तो समय कितना लगेगा? एक ज़रा-सा छेड़ो तो प्रतिपक्षी भाव टेप होते ही रहेंगे। तुझमें कमज़ोरी ऐसी है कि छेड़ने से पहले ही तू बोलने लगेगा।

प्रश्नकर्ता : खराब बोलना तो नहीं है, पर खराब भाव भी नहीं आना चाहिए न?

दादाश्री : खराब भाव नहीं आना चाहिए, वह बात सही है। भाव में आता है, वह बोल में आए बगैर रहता नहीं है। इसलिए बोलना यदि बंद हो जाए न तो भाव भी बंद हो जाएँ। ये भाव तो बोलने के पीछे रहा प्रतिघोष है। प्रतिपक्षी भाव तो उत्पन्न हुए बगैर रहते ही नहीं न! हमें प्रतिपक्षी भाव नहीं होते, और इसी प्रकार आपको भी वहाँ तक पहुँचना है।

इतनी अपनी कमज़ोरी जानी ही चाहिए कि प्रतिपक्षी भाव उत्पन्न नहीं हों। और कभी हुए हों तो हमारे पास प्रतिक्रमण का हथियार है, उससे मिटा डालें। पानी कारखाने में पहुँच गया हो, पर बर्फ नहीं बना तब तक हर्ज नहीं है। बर्फ हो गया फिर अपने हाथ में नहीं रहेगा।

प्रश्नकर्ता : वाणी बोलते समय के भाव और जागृति के अनुसार टेपिंग होता है?

दादाश्री : नहीं। वह टेपिंग वाणी बोलते समय नहीं होता है। यह तो मूल पहले ही हो चुका है। और फिर आज क्या होता है? छपे हुए के अनुसार ही बजता है।

प्रश्नकर्ता : फिर अभी बोलें, उस समय जागृति रखें तो?

दादाश्री : अभी आपने किसीको धमकाया। फिर मन में ऐसा हो कि 'इसे धमकाया वह ठीक है।' इसलिए फिर वापिस उस तरह के हिसाब का कोडवर्ड टेप हुआ। और 'इसे धमकाया, वह गलत हुआ।' ऐसा भाव हुआ, तो कोडवर्ड आपका नई प्रकार का हुआ। 'यह धमकाया, वह ठीक है।' ऐसा माना कि उसके जैसा ही फिर कोड उत्पन्न हुआ और उससे वह अधिक वज़नदार बनता है। और 'यह बहुत हो गया, ऐसा नहीं बोलना चाहिए। ऐसा क्यों होता है?' ऐसा हो तो कोड छोटा हो गया।

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