संसार में अध्यात्म के दो मुख्य प्रकार हैं या आध्यात्मिक मार्ग हैं जो आध्यात्मिकता को प्राप्त करने के लिए है, जो इस प्रकार हैं:
क्रमिक मार्ग में व्यक्ति को ग़लत छोड़कर सही करने को कहा जाता है। व्यक्ति को अपने सभी दोष - क्रोध, मान, माया, लोभ - छोड़कर अच्छा करने को कहा जाता है। अक्रम में इन सब बातों का कोई महत्त्व नहीं है। अक्रम मार्ग में मुख्य परिवर्तन अंदर के भावों से शुरू होता है।
दोनों प्रकार के आध्यात्मिक मार्ग में त्याग है। क्रमिक मार्ग हमारे परिग्रह को त्यागने का मार्ग है। सबसे पहले, व्यक्ति स्थूल परिग्रह का त्याग करता है। फिर, वह राग, क्रोध, मान, माया और लोभ जैसी सूक्ष्म परिग्रह छोड़ देता है, और अंत में वह परमात्म दशा तक पहुँच जाता है।
अक्रम मार्ग में ज्ञानी हमारे अहंकार का त्याग करवाते हैं और हमारे स्वरूप को प्राप्त करवाते हैं। इसलिए, ज्ञानी की कृपा से, शुद्धात्मा का अनुभव, लक्ष, प्रतीति हमारे भीतर शुरू हो जाता है। अब आत्मा की जागृति से व्यक्ति क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे दोषों को मिटा सकता है।
ज्ञानी पुरुष की प्रत्यक्ष कृपा से हमें आत्मसाक्षात्कार होता है और वे हमें आत्मा का भान करवाते हैं। आत्मा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति देह और आत्मा के जुदापन का अनुभव करता है। यह जागृति निरंतर रहती है और साथ ही, सांसारिक जीवन के कोई भी सुख या दुःख अनुभव नहीं होता। बल्कि, व्यक्ति अपने आत्मा के आनंद का अनुभव करता है!
इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि आपको केवल दो घंटों में अपने स्वरूप का अनुभव हो जाए और उसके परिणामस्वरूप आपके सभी दुःख चले जाएँ। आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद तुरंत ही व्यक्ति में परिवर्तन हो जाता है। इसका अनुभव सुनकर लोग अपने आप ही यहाँ खींचे चले आते हैं।
नीचे हुई बातचीत के माध्यम से, आइए अक्रम मार्ग में आत्म-साक्षात्कार के बाद के अनुभव की एक झलक देखते हैं:
दादाश्री : ‘रात को दो बजे नींद में से उठते हो, तब आपको सब से पहले कौन सी चीज़ याद आती है?’
प्रश्नकर्ता : ‘मैं शुद्धात्मा हूँ’, यही याद आता है।
दादाश्री : नहीं तो लोगों को तो इस जगत् की कोई भी सब से प्रिय चीज़ हो, वही पहले याद आती है लेकिन आपको तो ‘शुद्धात्मा’ ही पहले याद आता है। अलख का कभी भी लक्ष्य नहीं बैठता है। इसीलिए तो आत्मा को अलख निरंजन कहा है! लेकिन यहाँ एक घंटे में आपको लक्ष्य बैठ जाता है! यह ‘अक्रम-ज्ञानी’ की सिद्धियाँ-रिद्धियाँ, देवी-देवताओं की कृपा, उन सब के कारण एक घंटे में ग़ज़ब का पद आपको प्राप्त हो जाता है! वह ‘क्रमिक विज्ञान’ है और यह ‘अक्रम विज्ञान’ है। यह ज्ञान तो ‘वीतरागों’ का ही है। ‘ज्ञान’ में फर्क नहीं है।
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