यह तो, लोग 'गुरु' को समझे ही नहीं हैं। हिन्दुस्तान के लोग गुरु को समझे ही नहीं कि गुरु किसे कहा जाता है? जो भी कोई भगवा कपड़ा पहनकर बैठा हो तो यहाँ लोग उसे ‘गुरु’ कह देते हैं। शास्त्र के दो-चार शब्द बोले इसलिए उसे अपने लोग ‘गुरु’ कह देते हैं, परंतु वे गुरु नहीं हैं।
एक व्यक्ति कहता है, ‘मैंने गुरु बनाए हैं।’ तब मैंने कहा, ‘तेरे गुरु कैसे हैं? यह मुझे बता।’ आर्तध्यान-रौद्रध्यान नहीं होते हों वे गुरु। उसके अलावा दूसरे किसीको गुरु कहना गुनाह है। उन्हें साधु महाराज कहा जा सकता है, त्यागी कहा जा सकता है, परंतु गुरु कहना गुनाह है। नहीं तो फिर सांसारिक समझ चाहिए तो वकील भी गुरु है, सभी गुरु ही हैं न फिर तो!
जो गुरु धर्मध्यान करवा सकें, वे गुरु कहलाते हैं। धर्मध्यान कौन करवा सकता है? जो आर्तध्यान छुड़वा सके और रौद्रध्यान छुड़वा सके, वे धर्मध्यान करवा सकते हैं। जिस गुरु को कोई गालियाँ दे, तब रौद्रध्यान नहीं हो तो समझना कि यहाँ पर गुरु बनाने जैसे हैं। आज आहार नहीं मिला हो तो आर्तध्यान नहीं हो, तब समझना कि यहाँ पर गुरु बनाने जैसे हैं।
प्रश्नकर्ता: आर्तध्यान-रौद्रध्यान नहीं होते हों तो फिर उन्हें सद्गुरु नहीं कह सकते?
दादाश्री: सद्गुरु के पास तो भगवान का प्रतिनिधित्व होता है। जो मुक्त पुरुष हों, वे सद्गुरु कहलाते हैं। गुरु को तो अभी तरह-तरह के सभी कर्म खपाने बाकी होते हैं और सद्गुरु ने तो काफी कुछ कर्म खपा दिए होते हैं। इसलिए आर्तध्यान-रौद्रध्यान नहीं होते हों, तो वे गुरु और हाथ में मोक्ष दे दें, वे सद्गुरु। सद्गुरु मिलने मुश्किल हैं! परंतु गुरु मिल जाएँ तो भी बहुत अच्छा।
1) आत्मा, वह, दरअसल सत्देव है। ‘ज्ञानीपुरुष’ की जो वाणी निकली है, वह दरअसल सत्धर्म है और ‘ज्ञानीपुरुष’ वे दरअसल सद्गुरु हैं।
2) भगवान के ध्यान की खबर ही नहीं, वहाँ क्या करोगे? उसके बजाय तो गुरु का ध्यान करना। उनका मुँह दिखेगा तो सही!
3) कोई गुरु जी हों, उन्हें भले ही आत्मज्ञान नहीं हो, लेकिन चोखे हों, जिन्हें विषय और लक्ष्मी की भूख नहीं हो, तो भले ही उनके फोटो का ध्यान करना, फिर भले ही वे अहंकारी हों, फिर भी उनका ध्यान शांति देगा। यह रिलेटिव ध्यान कहलाता है|
4) यह रिलेटिव ध्यान कहलाता है, टेम्परेरी ध्यान कहलाता है और, रियल ध्यान तो, जब ‘ज्ञानीपुरुष’ मिलें, तब प्राप्त होता है। और फिर तो परमानेन्ट शांति मिल जाती है। इस रिलेटिव ध्यान में जो शांति प्राप्त करते हो, वह तो जब सास कहती है कि, ‘आप में अक़्ल नहीं है।’ तो वह ध्यान टूट जाता है और उपाधि खड़ी हो जाती है! टेम्परेरी ध्यान काम नहीं आता।
5) कुछ भी करना पड़े, ध्यान भी करना पड़े, तब तक भटकन है। ध्यान सहज होता है। सहज मतलब कुछ भी नहीं करना पड़ता, अपने आप ही हुआ करता है, तब समझना कि छुटकारा हुआ।
6) नाभिप्रदेश में आत्मा खुला है। हम आवरण तोड़ देते हैं तब भगवान दिखते हैं। नाभिप्रदेश के शुद्ध भगवान प्रकट हो जाते हैं, तो खुद निर्लेप हो जाता है। जैसे पीपल पर लाख चिपका हुआ होता है, वैसे ही आत्मा।
बचपन में बिल्ली को मारा हो या फिर बंदर को ईँट मारी हो तो वह सब भीतर देख सकते हैं। वह पहले के पर्याय भीतर देख सकते हैं, लेकिन यदि सामायिक ज़्यादा करते हों तो। पहली बार सामायिक करने पर एकदम से ऐसा नहीं होता, लेकिन पाँच-दस-पंद्रह समायिक हो जाने के बाद बहुत सूक्ष्मता आती जाती है।
पहले ध्यान लगाकर दादा का स्मरण करके, एक-दो भक्ति गीत गाकर, त्रिमंत्र बोलकर और फिर ‘मैं शुद्धात्मा हूँ’ की स्थिरता कर लेनी है। फिर आज से लेकर बचपन तक की जो-जो घटनाएँ हुई हैं, विषय विकारी या हिंसा की घटना, झूठ-प्रपंच किए हों, वह सब जितना भी आपको दिखाई दें, आप उन सभी के प्रतिक्रमण करने की शुरुआत करना। आज से पीछे की ओर चलना है, कल किसके साथ क्या किया था, परसों किसके साथ किया था, नरसों किस के साथ किया था, अथवा बचपन से याद करना है वह जितना याद आए न, उसके प्रतिक्रमण करने हैं। वह याद आएगा, कुदरती रूप से ही याद आएगा। याद नहीं आए तो क्या करेंगे, ऐसा सोचकर आपको घबराना नहीं है।
Book Name: गुरु–शिष्य (Page #38 - Paragraph #4 to #7, Page #39 - Paragraph #1)
Q. ध्यान कितने प्रकार के होते हैं?
A. चार प्रकार के ध्यान होते हैं, उनमें से मनुष्य निरंतर किसी एक ध्यान में रहते ही हैं। आपको यहाँ पर... Read More
Q. क्या ध्यान करते वक्त कर्म बंधता है?
A. आचार्य महाराज प्रतिक्रमण करते हैं, सामायिक करते हैं, व्याख्यान देते हैं, प्रवचन देते हैं, पर वह तो... Read More
Q. हमारे वर्तमान और पूर्वकर्म किस तरह ध्यान पर आधारित होते हैं?
A. प्रश्नकर्ता: अभी जो भोगते हैं उसमें आपका कहना है कि आयोजन है। उनमें क्रियमाण भी होते हैं और संचित... Read More
Q. तप करते समय भगवान पार्श्वनाथ के ध्यान की स्थिति क्या थी?
A. इनको कैसे पहुँच पाएँगे? इन पर तो यदि बंदूकें चलाएँगे तो गोलियाँ व्यर्थ जाएँगी ऐसा है! ऊपर से बैर... Read More
Q. ध्यान और धर्म में क्या अंतर है और सच्चा धर्म किसे कहते हैं?
A. धर्म किसे कहते हैं? जो धर्म के रूप में परिणामित हो, वह धर्म। यानी कि अंदर परिणामित होकर कषाय भावों... Read More
Q. कुण्डलिनी जागरण से क्या आत्म–साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं?
A. सभी कुछ रिलेटिव (लौकिक) है अर्थात् ऑर्नामेन्टल है। मन को स्थिर करता है, लेकिन अंदर प्रगति नहीं हो... Read More
Q. अनाहत नाद से क्या प्राप्त होता है?
A. प्रश्नकर्ता: अनाहत नाद अर्थात् क्या? दादाश्री: शरीर के किसी भी भाग का नाद पकड़ लेते हैं, वह हार्ट... Read More
Q. समाधि अर्थात क्या? निर्विकल्प समाधि कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
A. प्रश्नकर्ता: दादा, मुझे चार-चार घंटों तक समाधि रहती है। दादाश्री: जब समाधि रहती है तब तो रहती है,... Read More
subscribe your email for our latest news and events