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क्या वास्तव में पुनर्जन्म है?

प्रश्नकर्ता : जीवात्मा मरता है, फिर वापस आता है न?

दादाश्री : ऐसा है न, फॉरेनवालों का वापस नहीं आता है, मुस्लिमों का वापस नहीं आता है, लेकिन आपका वापस आता है। आप पर भगवान की इतनी कृपा है कि आपका वापस आता है। यहाँ से मरा कि वहाँ दूसरी योनि में पैठ गया होता है। और उनका तो वापस नहीं आता।

अब वास्तव में वापस नहीं आते, ऐसा नहीं है। उनकी मान्यता ऐसी है कि यहाँ से मरा यानी मर गया, लेकिन वास्तव में वापस ही आता है। पर उन्हें समझ आता नहीं है। पुनर्जन्म ही समझते नहीं हैं। आपको पुनर्जन्म समझ में आता है न?

शरीर की मृत्यु हो, तो वह जड़ हो जाता है। उस पर से साबित होता है कि उसमें जीव था, वह निकलकर दूसरी जगह गया। फॉरेनवाले तो कहते हैं कि यह वही जीव था और वही जीव मर गया। हम वह कबूल करते नहीं हैं। हम लोग पुनर्जन्म में मानते हैं। हम 'डेवलप' (विकसित) हुए हैं। हम वीतराग विज्ञान को जानते हैं। वीतराग विज्ञान कहता है, पुनर्जन्म के आधार पर हम इकट्ठे हुए हैं, ऐसा हिन्दुस्तान में समझते हैं। उसके आधार पर हम आत्मा को मानने लगे है। नहीं तो यदि पुनर्जन्म का आधार नहीं होता तो आत्मा माना ही कैसे जा सकता है?

तो पुनर्जन्म किस का होता है? तब कहे, आत्मा है, तो पुनर्जन्म होता है, क्योंकि देह तो मर गया, जलाया गया, ऐसा हम देखते हैं।

अतः आत्मा का समझ में आता हो, तो हल आ जाए न! लेकिन वह समझ आए ऐसा नहीं है न! इसलिए तमाम शास्त्रों ने कहा कि 'आत्मा जानो!' अब उसे जाने बिना जो कुछ किया जाता है, वह सब उसे फायदेमंद नहीं है, हैल्पिंग नहीं है। पहले आत्मा जानो तो सारा सोल्युशन (हल) आ जाएगा।

प्रश्नकर्ता : पुनर्जन्म कौन लेता है? जीव लेता है या आत्मा लेता है?

दादाश्री : नहीं, किसी को लेना नहीं पड़ता, हो जाता है। यह संसार 'इट हेपन्स' (अपने आप चल रहा) ही है!

प्रश्नकर्ता : हाँ, मगर वह किस से हो जाता है? जीव से हो जाता है या आत्मा से?

दादाश्री : नहीं, आत्मा को कुछ लेना-देना ही नहीं है, सब जीव से ही है। जिसे भौतिक सुख चाहिए, उसे योनि में प्रवेश करने का 'राइट' (अधिकार) है। जिसे भौतिक सुख नहीं चाहिए, उसे योनि में प्रवेश करने का राइट चला जाता है।

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