मृत्यु के बाद आत्मा देह छोड़ कर चला जाता है यह तो सभी मानते हैं, पर आत्मा जाता कहाँ है? क्या आत्मा फिर से दूसरे देह में जन्म लेता है? क्या पुनर्जन्म है? अगर है तो इसका सबूत क्या है? ऐसे बहुत से प्रश्न हमारे मन में खड़े होते हैं।
अलग-अलग धर्मों में भी पुनर्जन्म के बारे में अलग-अलग मान्यताएँ हैं। कुछ धर्मों के अनुसार मनुष्य ने पूरी ज़िंदगी जो पुण्यकर्म और पापकर्म बाँधे हों उनके आधार पर मृत्यु के बाद गति तय होती है। जबकि दूसरे कई धर्मों में ऐसा माना जाता है कि ‘डे ऑफ जजमेंट’ या ‘कयामत का दिन’ आएगा और उस दिन सभी मृतदेह में से बाहर निकल कर भगवान के पास जाएँगे, जहाँ उनके जीवन के कर्मों का हिसाब देखा जाएगा। जिसने अच्छे कर्म किए होंगे उसे स्वर्ग मिलेगा और जिसने बुरे कर्म किए होंगे उसे नर्क मिलेगा। मृत्यु के बाद जीव स्वर्ग में या नर्क में जाता है या फिर चार गति में से एक गति में जाता है, जीव कहीं और जन्म तो लेता ही है। इसलिए यह दोनों बातें स्वयं ही पुनर्जन्म का समर्थन करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें तो कारण (कॉज़) के बिना कोई कार्य (इफेक्ट) नहीं हो सकता। जैसे हम परीक्षा देते हैं तो वह कॉज़ कहलाता है। फिर रिज़ल्ट आता है वह उसका परिणाम यानी कि इफेक्ट कहलाती है। ज़मीन में बाजरे का दाना डाला तो वह कॉज़ है। उसमें से पौधा उगकर बड़ा होता है और उसमें से बाजरे का फल आता है वह इफेक्ट है। यह देह धारण करते हैं वह भी एक परिणाम है इसलिए इसका भी कोई कारण तो होना ही चाहिए। मानो कि, बाजरे का दाना वह पूर्वजन्म है तो इसमें से फल आया मतलब इस भव का जन्म हुआ और फिर बाद में इस फल में से बीज रूपी दाना जमीन में गिरे तो वह आने वाला नया जन्म। इस तरह कॉज़ में से इफेक्ट आती है और इफेक्ट भोगते समय फिर से नए कॉज़ेज़ पड़ते हैं। इसलिए कॉज़-इफेक्ट की जन्म-मरण की साईकिल चलती ही रहती है। हम, कुछ समय की अवधि में बाजरी का दाना जमीन पर गिरा और उसमें से फल आया वह देख सकते हैं। लेकिन मनुष्य का पूर्वजन्म या आने वाला जन्म हमें दिखता भी नहीं और याद भी नहीं रहता।
मृत्यु के समय मनुष्य को बहुत वेदना का अनुभव होता है। आत्मा का स्वभाव परमानंदी है इसलिए जब बहुत दुःख होता है तब आत्मा देह से अलग होकर देह को त्याग देता है। इसके अलावा, जन्म के समय गर्भ में भी मनुष्य को बेहद वेदना होती है। जन्म और मृत्यु के समय की वेदना के कारण आवरण आ जाता है और मनुष्य को अपना पूर्वजन्म याद नहीं रहता। जिस मनुष्य ने पूरे जीवन अच्छे आचार-विचार का पालन किया हो, जिसे मृत्यु के समय ज़रा सा भी दुःख नहीं हुआ हो, उसे अपना पूर्वजन्म याद आ सकता है।
मनुष्य की जब अंतिम साँसें चल रही हों तब आत्मा शरीर में से खिंचता है। आत्मा खिंचकर दूसरे गर्भ में पहुँच जाता है, बाद में इस देह को छोड़ता है और पुनर्जन्म होता है। इसलिए मृत्यु के बाद आत्मा एक देह में से उसी समय सीधा ही दूसरी योनि में जाता है।
मानो कि, अहमदाबाद में किसी का देह छूटने वाला हो और वडोदरा में जन्म होने वाला हो तो, आत्मा एक देह छोड़े बिना जहाँ जाने वाला हो उतना खिंचकर, लंबा हो सकता है। जब पिता का वीर्य और माता का रज, इन दोनों के इकट्ठा होने का समय होता है, तब वहाँ योनि में प्रवेश करता है। आत्मा उस समय बिल्कुल कॉम्प्रेस हो जाता है। जब तक नया स्थान नहीं मिलता तब तक अधिकतर पुराना स्थान नहीं छोड़ता। अपने स्थिति स्थापक गुण के कारण वह लंबा होकर एक सिरे को पुराने देह में और दूसरे सिरे को नए कार्य शरीर में ले जाता है, उसके बाद ही पुराने शरीर को छोड़ता है। जैसे साँप उसके एक बिल में से बाहर निकलता हो और दूसरे बिल में अंदर प्रवेश करता हो उस तरह से, इस देह में से आत्मा एक तरफ़ निकलता है और दूसरी तरफ़ जन्म लेता है।
मृत्यु के बाद देह तो मुर्दा हो जाता है। उसे लोग या तो दफना देते हैं या जला देते हैं। इससे यह साबित होता है कि अंदर जो जीव था वह देह में से निकल गया। उसी जीव का पुनर्जन्म होता है। आत्मा खुद अजन्म-अमर है। आत्मा को कोई लेना-देना नहीं है।
पुनर्जन्म होने का आधार क्या है, इसकी वैज्ञानिक समझ परम पूज्य दादा भगवान हमें यहाँ दे रहे हैं। जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती है।
प्रश्नकर्ता: पुनर्जन्म कौन लेता है? जीव लेता है या आत्मा लेता है ?
दादाश्री: नहीं, किसी को लेना नहीं पड़ता, हो जाता है। यह सारा संसार 'इट हेपन्स' (अपने आप चल रहा) ही है!
प्रश्नकर्ता: हाँ, मगर वह किस से हो जाता है? जीव से हो जाता है या आत्मा से ?
दादाश्री: नहीं, आत्मा को कुछ लेना-देना ही नहीं है, सब जीव से ही है। जिसे भौतिक सुख चाहिए, उसे योनि में प्रवेश करने का 'राइट' (अधिकार) है। जिसे भौतिक सुख नहीं चाहिए, उसे योनि में प्रवेश करने का राइट चला जाता है।
देह छोड़कर आत्मा अकेला नहीं जाता, बल्कि उसके साथ सभी कर्म जिसे कारण देह (कार्मण शरीर) कहते हैं वह और तेजस शरीर (इलेक्ट्रिकल बॉडी), ऐसे तीनों साथ निकलते हैं।
कारण देह (कॉज़ल बॉडी) तो पूरे शरीर में भरा हुआ होता है, वह परमाणु के रूप में होता है। उन परमाणु में से फिर कार्य शरीर (इफेक्टिव बॉडी) बनता है, जैसे बरगद के बीज में से पूरा बरगद का पेड़ उगता है उस तरह। आत्मा अपने साथ जो कॉज़ल बॉडी (कारण शरीर) साथ में ले जाता है, उससे नई इफेक्ट बॉडी (कार्य शरीर) बनती है। जब माता का रज और पिता का वीर्य एक साथ मिलते हैं तब नई इफेक्ट बॉडी (कार्य शरीर) उत्त्पन्न होती है। माता के रज और पिता के वीर्य से उत्पन्न हुआ कार्य शरीर अपनी खुराक बना लेता है बाद में उसका देह बनता है।
तेजस शरीर है उसी को सूक्ष्म शरीर या इलेक्ट्रिकल बॉडी कहते हैं। इलेक्ट्रिकल बॉडी हर एक जीव में सामान्य रूप से होती ही है। और इसके आधार पर सभी शारीरिक क्रियाएँ चलती हैं। खुराक पचाना, शरीर में गर्मी पैदा करना और शरीर में खून का ऊपर-नीचे सर्कुलेशन करना यह सब संचालन इलेक्ट्रिकल बॉडी करती है। आँखों से देखने में जो लाईट है वह सब इलेक्ट्रिकल बॉडी के कारण होता है। जैसे इलेक्ट्रिसिटी के तार हर जगह पहुँचते हैं, उसी तरह इलेक्ट्रिकल बॉडी की इलेक्ट्रिसिटी हर जगह पहुँचती ही है, जिससे शरीर की सभी मशीनरियाँ काम करती हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ का उत्पन्न होना और कर्म बँधना यह सब भी ‘इलेक्ट्रिकल बॉडी’ के कारण होता है।
मृत्यु के बाद देह और इन्द्रियाँ तो खत्म हो जाती हैं लेकिन कारण शरीर में हम कर्म और क्रोध-मान-माया-लोभ साथ में लेकर जाते हैं। मृत्यु के बाद हम साथ क्या लेकर जाते हैं, इस प्रश्न के जवाब में परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, “जो हमारे रिश्तेदार नहीं हों, ऐसे दूसरे लोगों को कुछ सुख दिया हो, फेरा लगाकर, दूसरा कुछ भी उन्हें दिया हो तो वह 'वहाँ' पहुँचेगा। रिश्तेदार नहीं, परंतु दूसरे लोगों के लिए। फिर यहाँ लोगों को दवाईयों का दान दिया हो, औषधदान, दूसरा आहारदान दिया हो, फिर ज्ञानदान दिया हो और अभयदान वह सब दिया हो, तो वह वहाँ सब आएगा।”
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