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क्या मनुष्य का जन्म हमेशा मनुष्य योनि में ही होता है?

प्रश्नकर्ता : मनुष्य में से मनुष्य में ही जानेवाले हैं न?

दादाश्री : वह खुद की समझ में भूल है। बाकी स्त्री की कोख से मनुष्य ही जन्म लेता है। वहाँ कोई गधा नहीं जन्मता। मगर वह ऐसा समझ बैठा कि हम मर जाएँगे फिर भी मनुष्य में ही जन्मेंगे तो वह भूल है। अरे, मुए तेरे विचार तो गधे के हैं, फिर मनुष्य किस प्रकार होनेवाला है? तुझे विचार आते हैं, किस का भोग लूँ, किस का ले लूँ। बिना ह़क का भोगने के विचार आते हैं, वे विचार ही ले जाते हैं, अपनी गति में!

प्रश्नकर्ता : जीव का ऐसा कोई क्रम है कि मनुष्य में आने के बाद मनुष्य में ही आए कि दूसरे कहीं जाए?

दादाश्री : हिन्दुस्तान में मनुष्य जन्म में आने के बाद चारों गतियों में भटकना पड़ता है। फॉरेन के मनुष्यों में ऐसा नहीं है। उनमें दो-पाँच प्रतिशत अपवाद होता है। दूसरे सब ऊपर चढ़ते ही रहते हैं।

प्रश्नकर्ता : लोग जिसे विधाता कहते हैं, वे किसे कहते हैं?

दादाश्री : वे कुदरत को ही विधाता कहते है। विधाता नाम की कोई देवी नहीं है। 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' (वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण), वही विधाता है। हमारे लोगों ने तय किया कि छठी के दिन विधाता लेख लिख जाती है। विकल्पों से यह सब ठीक है और वास्तविक जानना हो तो यह सच नहीं है।

यहाँ तो कानून यह है कि जिसने बिना ह़क का लिया, उसके दो पैर के चार पैर हो जाएँगे। पर वह कायम के लिए नहीं है। ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ साल और बहुत हुआ तो सात-आठ जन्म जानवर में जाते हैं और कम से कम, पाँच ही मिनटों में जानवर में जाकर, फिर से मनुष्य में आ जाता है। कितने ही जीव ऐसे हैं कि एक मिनिट में सत्रह अवतार बदलते हैं, अर्थात् ऐसे भी जीव हैं। इसलिए जानवर में गए, उन सभी को सौ-दौ सौ साल का आयुष्य नहीं मिलनेवाला है।

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