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जन्म-मृत्यु के चक्कर में से कैसे छूटें?

death

अगर आत्मा अजन्म-अमर है, तो फिर आवागमन यानी कि जन्म के बाद मृत्यु, मृत्यु के बाद फिर से जन्म के चक्कर किसके हैं? इसका उत्तर देते हुए परम पूज्य दादा भगवान हमें बताते हैं कि, जो अहंकार है न, उसे आवागमन है। आत्मा तो मूल दशा में ही है। अहंकार फिर बंद हो जाता है, इसलिए उसके फेरे बंद हो जाते हैं!“ अहंकार कब जाएगा? जब खुद के आत्मस्वरूप का अनुभव होगा तब। खुद, खुद के स्वरूप को जाने यानी आवागमन के सभी चक्कर बंद हो जाएँ। आत्मसाक्षात्कार करके जन्म-मृत्यु के चक्कर में से मुक्त होना सिर्फ़ मनुष्य देह से ही संभव है।

नया चार्ज बंद होते ही आता है अंत

हम फोन की बैटरी के उदाहरण से समझ सकते हैं कि जैसे बैटरी में सेल ‘चार्ज’ हुए होते हैं, उसी तरह यह देह ‘चार्ज’ हो चुकी है। पूर्वजन्म के कॉज़ेज़ के परिणाम स्वरूप ‘इफेक्टिव बॉडी’ यानी इस मन-वचन-काया की तीन ‘बैटरयाँ’ तैयार हो जाती हैं। पिछले जन्म की मन-वचन-काया की ‘बैटरयाँ’ अभी इस जन्म में ‘डिस्चार्ज’ हो रही हैं, वह पूर्वजन्म की इफेक्ट है। दूसरी ओर अज्ञानता से मन-वचन-काया की नई ‘बैटरयाँ’ चार्ज होती रहती हैं, जो अगले जन्म के लिए हैं। नया ‘चार्ज’ बंद हो तो पुराना डिस्चार्ज होकर खत्म हो जाए और नया जन्म होना रुके।

मृत्यु के बाद आत्मा एक देह छोड़ता है तभी दूसरी ओर योनि में प्रवेश करता है। तब आत्मा सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के साथ जाता है। सूक्ष्म शरीर सभी में कॉमन होता है, लेकिन कारण शरीर प्रत्येक के अपने सेवित कॉज़ेज़ के अनुसार अलग-अलग होता है।

यह कॉज़ कैसे उत्पन्न होता है? और वह कैसे बंद होगा? यह समझ में आ जाए तो मुक्ति नज़दीक है।

कोई भी प्रसंग बनता है तब हमारे अंदर की स्थिति क्या है उसके आधार पर कर्म चार्ज होता है। कोई हमें मानपूर्वक रखे, घर जाते ही “आइए, पधारिए” कहे, पूज्य मानकर फूलों का हार पहनाए उस समय हम अंदर ही अंदर खुश हो जाते हैं। जब कोई हमारा अपमान करे, हमारे सामने चाहे वैसा बोले उस समय हम चिढ़ जाते हैं। बाहर जो क्रिया होती है वह पूर्व की इफेक्ट यानी कि परिणाम है। लेकिन उस समय हम खुश हो जाएँ या चिढ़ जाएँ उससे कर्म चार्ज होता है। यह चार्ज कर्म अगले जन्म में फल देकर डिस्चार्ज होता है। अब, कर्म की इफेक्ट भोगते समय नए कॉज़ेज़ उत्पन्न ना हों तो नया जन्म नहीं होगा।

कारण-कार्य की शृंखला

मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद मृत्यु है, बस। यह निरंतर चलता ही रहता है! अब यह जन्म और मृत्यु क्यों हुए हैं? तब कहे कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़, कारण और कार्य, कार्य और कारण। उसमें यदि कारणों का नाश करने में आए, तो ये सारे 'इफेक्ट' बंद हो जाते हैं, फिर नया जन्म नहीं लेना पड़ता!

यहाँ पर सारी जिंदगी 'कॉज़ेज़' खड़े किए हों, वे आपके 'कॉज़ेज़' किस के यहाँ जाएँगे ? और 'कॉज़ेज़' किए हों, इसलिए वे आपको कार्यफल दिए बगैर रहेंगे नहीं। 'कॉज़ेज़' खड़े किए हुए हैं, ऐसा आपको खुद को समझ में आता है?

हर एक कार्य में 'कॉज़ेज़' पैदा होते हैं। आपको किसी ने नालायक कहा तो आपके भीतर 'कॉज़ेज़' पैदा होते हैं। 'तेरा बाप नालायक है' वह आपके 'कॉज़ेज़' कहलाते हैं। आपको नालायक कहता है, वह तो नियमानुसार कह गया और आपने उसे गैरकानूनी किया। वह समझ में नहीं आया आपको? क्यों बोलते नहीं?

प्रश्नकर्ता: ठीक है।

दादाश्री: अर्थात् 'कॉज़ेज़’ इस भव में होते हैं। उसका 'इफेक्ट' अगले जन्म में भोगना पड़ता है!

यह तो 'इफेक्टिव' (परिणाम) मोह को 'कॉज़ेज़' (कारण) मोह मानने में आता है। आप ऐसा केवल मानते हो कि 'मैं क्रोध करता हूँ' लेकिन यह तो आपको भ्रांति है, तब तक ही क्रोध है। बाकी, वह क्रोध है ही नहीं, वह तो इफेक्ट है। और कॉज़ेज़ बंद हो जाएँ, तब इफेक्ट अकेला ही रहता है। और वह 'कॉज़ेज़' बंद किए इसलिए 'ही इज़ नोट रिस्पोन्सिबल फॉर इफेक्ट' (परिणाम के लिए खुद जिम्मेदार नहीं) और 'इफेक्ट' अपना प्रभाव दिखाए बिना रहेगा ही नहीं।

संक्षेप में, सबकुछ डिस्चार्ज के धक्के से होता है, पर खुद मानता है कि, “यह मैं हूँ”, “मुझे हुआ” और “मैं कर रहा हूँ!” इस अज्ञानता से अगले जन्म के नए बीज डलते हैं। जब आत्मा का भान होता है कि खुद कौन है, तब बीज डलने बंद हो जाते हैं और जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिलता है!

अक्रम विज्ञान से कॉज़ेज़’ बंद

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं कि, केवल मनुष्य जन्म में ही ‘कॉज़ेज़’ बंद हो सकें ऐसा है। अन्य सभी गतियों में तो केवल ‘इफेक्ट’ ही है। यहाँ ‘कॉज़ेज़’ एन्ड ‘इफेक्ट’ दोनों हैं। हम ज्ञान देते हैं, तब ‘कॉज़ेज़’ बंद कर देते हैं। फिर नया ‘इफेक्ट’ नहीं होता है।”

जब तक सेल्फ रिलाइज़ेशन (आत्म साक्षात्कार) ना हो तब तक अलग-अलग योनियों में भटकते रहना है। सिर्फ़ एक ज्ञानी पुरुष ही हमें आत्मा की पहचान करवा सकते हैं, जिससे नया चार्ज होना रुक जाता है और हम जन्म-मरण के फेरों में से मुक्त हो सकते हैं।

अभी अक्रम विज्ञान के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञानी की लिंक जारी है। जिसमें ज्ञानविधि के भेदज्ञान के वैज्ञानिक प्रयोग से “मैं शुद्धात्मा हूँ” ऐसा अंश अनुभव होता है और सौ प्रतिशत प्रतीति (श्रद्धा) बैठ जाती है। चाहे कितने भी तप-जप-ध्यान करें लेकिन यह अनुभव खुद से नहीं हो सकता। वह तो जब अनुभवी ज्ञानी पुरुष से ज्ञान मिलता है तभी नगद अनुभव होता है।

ज्ञानी ही कराए, आत्मा-अनात्मा का भेद

जैसे अँगूठी में सोना और ताँबे का ‘मिक्स्चर’ है इसलिए उन्हें अलग किया जा सकता है। सोना और तांबा दोनों कम्पाउन्ड स्वरूप हो जाएँ, तो उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। क्योंकि इससे गुणधर्म अलग ही प्रकार के हो जाते। इसी प्रकार जीव के अंदर चेतन और अचेतन का मिक्स्चर है, वे कम्पाउन्ड स्वरूप नहीं हुए हैं। इसलिए फिर से स्वभाव में लाए जा सकते हैं। कम्पाउंड हुआ होता तो पता ही नहीं चलता। चेतन के गुणधर्मों का भी पता नहीं चलता और अचेतन के गुणधर्मों का भी पता नहीं चलता और तीसरा ही गुणधर्म उत्पन्न हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो सिर्फ मिक्स्चर ही हुआ है। इसलिए ज्ञानी पुरुष जुदा कर दें तो आत्मा की पहचान हो जाएगी।

इस अँगूठी में सोना और ताँबा दोनों मिले हुए हों, इसे हम गाँव में घर ले जाकर किसी से कहें कि, ‘भैया, अलग-अलग कर दीजिए न!’ तो क्या सब लोग कर देंगे? कौन कर पाएगा?

प्रश्नकर्ता: सोनी ही कर पाएगा।

दादाश्री: जिसका यह काम है, जो इसमें एक्सपर्ट है, वह सोना और ताँबा दोनों अलग कर देगा। सौ टच सोना अलग कर देगा, क्योंकि वह दोनों के गुणधर्म जानता है कि सोने के गुणधर्म ये हैं और ताँबे के गुणधर्म ऐसे हैं। उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष आत्मा के गुणधर्म जानते हैं और अनात्मा के भी गुणधर्म जानते हैं।

जैसे अँगूठी में सोने और ताँबे का ‘मिक्स्चर’ हो गया होता है इसलिए उसे अलग किया जा सकता है। सोना और ताँबा दोनों कम्पाउन्ड स्वरूप (रूप) हो जाते तो उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। क्योंकि इससे गुणधर्म अलग ही प्रकार के हो जाते। इसी प्रकार जीव के अंदर चेतन और अचेतन का मिक्स्चर है, वे कम्पाउन्ड स्वरूप नहीं हुए हैं। इसलिए फिर से स्वभाव को प्राप्त कर सकते हैं। कम्पाउन्ड बन गया होता तो पता ही नहीं चलता। चेतन के गुणधर्मों का भी पता नहीं चलता और अचेतन के गुणधर्मों का भी पता नहीं चलता और तीसरा ही गुणधर्म उत्पन्न हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो केवल मिक्स्चर हुआ है।

ज्ञानी पुरुष जो ‘वर्ल्ड’ के ‘ग्रेटेस्ट साइन्टिस्ट’ होते हैं वे आत्मा-अनात्मा का विभाजन कर देते हैं। इतना ही नहीं, लेकिन हमारे पापों को जलाकर भस्मीभूत कर देते हैं, दिव्यचक्षु देते हैं और “यह जगत् क्या है? किस तरह से चल रहा है? कौन चला रहा है?” वगैरह सभी स्पष्ट कर देते हैं। उसके बाद ज्ञानी पुरुष की आज्ञा में रहते हैं इसलिए नए कर्म चार्ज होने बंद हो जाते हैं और पुराने कर्मों के डिस्चार्ज होते ही पूर्णाहुति होती है!

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