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भावहिंसा क्या है?

जहाँ क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, वह आत्महिंसा है। और दूसरी जीवों की हिंसा है। भावहिंसा का अर्थ क्या? तेरी खुद की जो हिंसा होती है, ये क्रोध-मान-माया-लोभ वे तुझे खुद को बंधन करवाते हैं, तो खुद पर दया खा। पहले खुद की भावअहिंसा और फिर दूसरों की भावअहिंसा कहा है।

इन छोटे जंतुओं को मारना, वह द्रव्यहिंसा कहलाती है। और किसी को मानसिक दुख देना, किसी पर क्रोध करना, गुस्सा होना, वह सब हिंसक भाव कहलाता है, भावहिंसा कहलाता है। लोग चाहे जितनी अहिंसा पाले पर अहिंसा कुछ इतनी आसान नहीं कि जल्दी पाली जा सके। और दरअसल हिंसा ही यह क्रोध-मान-माया-लोभ है। यह तो जीवजंतु को मारते हैं, भैंसे मारते हैं, भैंसें मारते हैं, वे तो समझो कि द्रव्यहिंसा है। वह तो कुदरत के लिखे अनुसार ही चला करता है। इसमें किसी का चले ऐसा नहीं।

इसलिए भगवान ने तो क्या कहा था कि पहले, खुद को कषाय नहीं हो ऐसा करना। क्योंकि ये कषाय, वे सबसे बड़ी हिंसा हैं। वह आत्महिंसा कहलाती है, भावहिंसा कहलाती है। द्रव्यहिंसा हो जाए तो भले हो, परन्तु भावहिंसा नहीं होने देना। तब ये लोग द्रव्यहिंसा रोकते हैं, पर भावहिंसा चालू रहती है।

इसलिए किसी ने निश्चित किया हो कि 'मुझे नहीं ही मारने', तो उसके भाग्य में कोई मरने नहीं आता। अब वैसे तो वापिस उसने स्थूलहिंसा बंद की कि मुझे किसी जीव को मारना नहीं है। पर बुद्धि से मारना ऐसा निश्चित किया हो तब तो वापिस उसका बाज़ार खुल्ला होता है। तब वहाँ आकर 'कीट-पतंगे' टकराते रहते हैं और वह भी हिंसा ही है न!

इसलिए किसी जीव को त्रास नहीं हो, किसी जीव को किंचित् मात्र दुख नहीं हो, किसी जीव की ज़रा-सी भी हिंसा हो, वैसा नहीं होना चाहिए। और किसी मनुष्य के लिए एक ज़रा-सा भी खराब अभिप्राय नहीं होना चाहिए। दुश्मन के लिए भी अभिप्राय बदला, तो वह सबसे बड़ी हिंसा है। एक बकरा मारो उसके सामने तो यह बड़ी हिंसा है। घर के लोगों के साथ चिढ़ना, वह बकरा मारो उससे भी बड़ी हिंसा है। क्योंकि चिढ़ना वह आत्मघात है। और बकरे का मरना वह अलग चीज़ है।

और लोगों की निंदा करनी, वह मारने के बराबर है। इसलिए निंदा में तो पड़ना ही मत। बिलकुल भी लोगों की निंदा कभी करनी नहीं। वह हिंसा ही है।

फिर जहाँ पक्षपात है वहाँ हिंसा है। पक्षपात यानी कि हम अलग और आप अलग, वहाँ हिंसा है। ऐसे अहिंसा का तम़गा लगाता है कि हम अहिंसक प्रजा हैं। हम अहिंसा में ही माननेवाले हैं, पर भाई, पहली हिंसा, वह पक्षपात है। यदि इतना शब्द समझे तो भी बहुत हो गया। इसलिए वीतरागों की बात समझने की ज़रूरत है।

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