हमने सुना है कि मनुष्य का जीवन बहुत अनमोल है। हालाँकि, क्या हम जानते हैं कि यह अनमोल क्यों है? मनुष्य जीवन का क्या महत्त्व है? अन्य जीवों की तुलना में हम मनुष्य के रूप में कैसे अलग या विशिष्ट हैं?
उत्तर जानने के लिए आगे पढ़ें।
मनुष्य जीवन में ही कर्म बंधन होता है। किसी भी अन्य योनियों में कर्म बंधन नहीं हो सकता। मनुष्य गति में बंधे गए कर्मो का फल ही अन्य गतियों में भुगतना पड़ता है। मनुष्य गति में जीव नए कर्म का बंधन कर सकता है और साथ ही पिछले कर्मों के फल का भुगतता है। बंधे हुए कर्मों के प्रकार (पुण्य या पाप) के आधार पर, जीव एक नई गति में जन्म लेता है। इसलिए मनुष्य का लिए किसी भी चार गति में जाना संभव है।
मुख्य रूप से चार गतियाँ हैं, देवगति, मनुष्य गति, तिर्यंच गति और नर्कगति। मनुष्यगति एक जंक्शन की तरह है। यहाँ यदि कर्ज़ हो जाए, यानी खराब कर्म बँध जाएँ, तो वह कर्ज़ कहलाता है। तब फिर जानवरों में जाना पड़ता है, डेबिट भुगतने के लिए और अगर डेबिट ज़्यादा हो गया हो तो नर्कगति में जाना पड़ता है। वहाँ पर कर्ज़ भुगतकर वापस आना है, डेबिट भुगतकर। यहाँ पर अच्छे कर्म किए हों, तो बड़े, ऊँची जाति के मनुष्य बनते हैं। वहाँ पूरी ज़िन्दगी सुख मिलता है। यदि कोई सुपरह्युमन हो तो देवता ही बनता है। खुद का सुख खुद नहीं भोगता और दूसरों को दे देता है, वह सुपरह्युमन कहलाता है। वह देवगति में जाता है। इन देवी-देवताओं का आयुष्य लाखों सालों का होता है। पर क्रेडिट पूरी हो गई, लाख रुपये पूरे हो गए, खर्च हो गए तो वापस यहीं पर!
मनुष्य के अलावा, जिन गतियों में कर्म बंधते नहीं हैं, वहाँ के जीव पूछते हैं, "यहाँ कहाँ इस जेल में आए?" जहाँ कर्म बँध सकें वैसी जगह तो मुक्तता कहलाती है, और बाकी की तो जेल कहलाती है। अन्य तीन गतियाँ (देवगति, तिर्यंच गति और नर्कगति।) 'जेल' हैं क्योंकि वहां कोई विकल्प नहीं है। केवल मनुष्य गति में ही एकमात्र ऐसी गति है जहाँ जीव, जीवन मृत्यु के चक्र से निकल कर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
केवल मनुष्य ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, जो मानव जीवन का खास महत्व है। जानिए कैसे:
उपरोक्त बातचीत से, हम समझ सकते हैं कि मनुष्य जीवन में अच्छे या बुरे कर्मों को बांधता है और उसके फलस्वरूप चार गतियों में भटकता है। मनुष्य जीवन में वापस आने के बाद, जीव पुराने कर्मों को भुगतता है और फिर से अगले जन्म के लिए नए कर्म को बांधता है। हालाँकि, यदि कोई इस जीवन में कोई नया कर्म नहीं बाँधता है और सभी पुराने कर्मों को पूरा कर देता है, तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
इस पर परम पूज्य दादाश्री क्या कहते हैं, देखते हैं आगे की बातचीत में:
प्रश्नकर्ता : मनुष्य जन्म में ही कर्म बंधते हैं। अच्छे कर्म भी यहीं पर बँधते हैं न?
दादाश्री : अच्छे कर्म भी यही बँधते हैं और बुरे भी यहीं पर बँधते हैं। ये मनुष्य कर्म बाँधते हैं। उनमें यदि लोगों को नुकसान करनेवाले, लोगों को दु:ख देनेवाले कर्म होते हैं, तो वह जानवर में जाता है और नर्कगति में जाता है। लोगों को सुख देने के कर्म होते हैं तो मनुष्य में आता है और देवगति में जाता है। वह जैसे कर्म करता है, उसी अनुसार उसकी गति होती है। अब गति हुई यानी फिर भुगतकर वापस यहीं पर आना पड़ता है।
कर्म बांधने का अधिकार मनुष्यों को ही है, अन्य किसी को नहीं, और जिसे बाँधने का अधिकार है, उसे चारों गति में भटकना पड़ता है। और यदि कर्म नहीं करे, बिल्कुल भी कर्म ही न करे तो मोक्ष में जाता है। मनुष्य में से मोक्ष में जाया जा सकता है। दूसरी किसी जगह से मोक्ष में नहीं जा सकता। आपने ऐसा देखा है कि कर्म नहीं करे?
प्रश्नकर्ता : नहीं, वैसा नहीं देखा है।
दादाश्री : आपने ऐसे देखे हैं जो कर्म नहीं करते? इन्होंने देखे हैं और आपने नहीं देखे?! ये जानवर वगैरह सभी हैं, वे खाते हैं, पीते हैं, मारपीट करते हैं, लड़ाई-झगड़ा करते हैं, फिर भी उन्हें कर्म नहीं बँधते। उसी प्रकार मनुष्यों के लिए भी ऐसी स्थिति संभव है कि कर्म न बंधें। लेकिन तभी जब ‘खुद’ कर्म का कर्ता नहीं बने तो और कर्म भुगत ले! इसलिए जो यहाँ, हमारे यहाँ आते हैं, उन्हें सेल्फ रियलाइज़ का ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो कर्म का कर्तापन छूट जाता है, करना ही छूट जाता है, भुगतना ही रहता है फिर। जब तक अहंकार है तब तक कर्म का कर्ता।
मनुष्य जीवन का अंतिम ध्येय मोक्ष(मुक्ति) प्राप्त करना है। जीव अनंत जन्मों से इस मार्ग को खोजने का प्रयास किया है, लेकिन उसे यह नहीं मिला है। यदि वह सही मार्ग खोज ले तो मनुष्य जीवन से मोक्ष(मुक्ति) संभव है। मानव जीवन का अंतिम ध्येय तभी पूरा होता है जब ज्ञानीपुरुष मिलते हैं। जब आप उनसे मिलते हैं तो आपके सारे काम हो जाते हैं!
Q. मोक्ष / मुक्ति / स्वतंत्रता का अर्थ क्या है? व्यक्ति मोक्ष की तलाश में क्यों रहता है?
A. अलग-अलग लोगों के लिए मोक्ष / मुक्ति / स्वतंत्रता का अर्थ अलग है। हालाँकि आध्यात्मिक मार्ग में इसका... Read More
Q. क्या आत्मा की मुक्ति वास्तव में है? किसको मोक्ष प्राप्त होता है?
A. ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मोक्ष का अर्थ यानि आत्मा की मुक्ति या सभी बंधनों से आत्मा की मुक्ति।... Read More
Q. क्या मोक्ष की परिभाषा वास्तविक है? या मोक्ष मात्र एक कल्पना है?
A. आध्यात्मिक दृष्टि से, मोक्ष की परिभाषा मुक्ति और निर्वाण की व्याख्या की तरह ही है। कई लोगों के लिए,... Read More
Q. कलियुग (वर्तमान काल चक्र) में मोक्ष कैसे प्राप्त करें?
A. यदि हमें एयरपोर्ट जाना हो तो, बिना रास्ता जाने हमे पहुँचने में कठिनाई होगी। हालांकि, जब हमें किसी... Read More
A. जब हम ईश्वर, अध्यात्म और मोक्ष की बात करते हैं, तो हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते हैं, जैसे, “कब तक... Read More
Q. मोक्ष को प्राप्त करने के बाद क्या होता है?
A. मोक्ष के बाद क्या होता है? मोक्ष के बाद आत्मा का क्या होता है? जब आप मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं, तब... Read More
Q. मोक्षमार्ग में बाधक कारण क्या हैं?
A. जो कोई भी मोक्षमार्ग में आगे बढ़ने और उस मार्ग पर लगातार प्रगति करना चाहते हैं, उनके लिए इस मार्ग... Read More
Q. मोक्ष और निर्वाण: दोनों के बीच में क्या अंतर है?
A. जब कोई अंतिम मुक्ति को प्राप्त करता है, तब निर्वाण होता है! यही मोक्ष और निर्वाण के बीच का... Read More
subscribe your email for our latest news and events