जब कोई अंतिम मुक्ति को प्राप्त करता है, तब निर्वाण होता है! यही मोक्ष और निर्वाण के बीच का वास्तविक अंतर है।
मोक्ष दो प्रकार का होता है:
निर्वाण के साथ अनंत जन्मों से चला आ रहा जन्म और मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है।
जब जीव निर्वाण को प्राप्त करता है, तो उस आत्मा को सिद्ध भगवान से संबोधित किया जाता है। सिद्ध भगवान इस ब्रह्मांड के बाहर सिद्ध क्षेत्र में निवास करते हैं। वे वहाँ हमेशा के लिए अपने शाश्वत आनंद में रहते हैं!
प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे यह जानना था कि मोक्ष, जाने की वस्तु है, प्राप्त करने की वस्तु है या मोक्ष कोई स्थिति है?
दादाश्री : मोक्ष तो स्वभाव ही है खुद का। आपका स्वभाव ही मोक्ष है, परन्तु स्वभाव प्राप्त करने के लिए कुछ उपाय करना पड़ेगा न? आप हो मोक्ष स्वरूप, परन्तु अभी आप मोक्षसुख नहीं भोग सकते हो, क्योंकि उसका आपको भान नहीं है। मोक्ष के लिए आपको कहीं किसी जगह पर नहीं जाना है। सर्वदु:खों से मुक्ति, वह पहला मोक्ष है और फिर संसार से मुक्ति, वह दूसरा मोक्ष! पहला मोक्ष हो जाए, तब दूसरा मोक्ष सामने आएगा। पहली मुक्ति ‘कॉज़ेज़’ के रूप में है और दूसरी ‘इफेक्ट’ के रूप में है। कॉज़ेज़ से मुक्ति हो जाने के बाद फिर बच्चों की शादी करवा सकते हैं, सबकुछ हो सकता है, उसमें भी मुक्तभाव होता है और इफेक्ट-मोक्ष अभी हो सके वैसा नहीं है। कॉज़ेज़ मोक्ष में मैं खुद रहता हूँ और सभी कार्य होते हैं। जिस देह से मुक्तता का भान हो जाए, उसके बाद एकाध देह धारण करना बाकी रहता है।
जब एक जीव निर्वाण को प्राप्त करता है तो वह सभी गलतियों से मुक्त हो जाता है और इस प्रकार जन्म और मृत्यु के सांसारिक चक्र से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।
जब केवली और तीर्थंकर भगवंतो के आत्मा निर्वाण की दशा में पहुँचते है, तो वह आत्मा मुक्त हो जाते है और सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करते है। उस समय आत्मा संपूर्ण निरावरण होकर देह विलीन हो जाता है और उस आत्मा का प्रकाश सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हो जाता है। यही उसका का स्वभाव है। यह मोक्ष और निर्वाण के बीच यही मुख्य अंतर है।
हर किस का आत्मा ऐसा ही है, लेकिन वर्तमान में, कर्मो के आवरण से ढका हुआ है। जब तक मनुष्य अज्ञानता में है, तब तक आत्मा का प्रकाश बहार नहीं आता। जब संपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है, तभी आत्मा का प्रकाश पूरे ब्रह्मांड में फैल जाता है। जब आत्मा पर के सभी आवरण हट जाते हैं, तब आत्मा का प्रकाश पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होता है।
उदाहरण के लिए, यदि आप एक मटके में एक बल्ब लगाकर उसे पूरी तरह से ढक देते हैं, तो उसमें से कोई प्रकाश नहीं निकल पायेगा ; प्रकाश मटके के अंदर ही रहेगा। हालाँकि, यदि आप मटके को तोड़ते हैं, तो प्रकाश कितनी दूर तक जायेगा ? जिस भी पात्र में रखा जाएगा उसके चारों ओर प्रकाश फैल जाएगा और जिस कक्ष में उसे रखा है वहाँ पर भी फैल जाएगा। इसी प्रकार, आत्मा जब सभी आवरणों से मुक्त हो जाएगा तो वह ब्रह्मांड के कोने-कोने में फैल जाएगा। इसके अलावा, जब आप बल्ब को मटके में रखते हैं, तो इसका प्रकाश तीव्र होता है। जब मटका टूट जाता है, तब प्रकाश कक्ष में फैल जाता है लेकिन उसकी तीव्रता कम हो जाती है। जैसे-जैसे प्रकाश फैलता है, इसकी तीव्रता कम होती जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह भौतिक प्रकाश है। इसके विपरीत, आत्मा का प्रकाश कितना भी फैल जाए, उसकी तीव्रता कम नहीं होती; निर्वाण के समय पूरे ब्रह्मांड में फैलने पर भी, प्रकाश हमेशा एक सा रहता है।
प्रत्येक आत्मा में संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की क्षमता है। आत्म-साक्षात्कार के बाद, जैसे ही शेष कर्म पूरे हो जाते हैं और आत्मा सभी प्रकार के कर्मों से मुक्त हो जाता है, तब यह संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशमय कर सकता है। अंतिम भव में जब आत्मा सभी आवरणों से मुक्त होकर और चरम देह को प्राप्त हो जाता है। तब निर्वाण होता है और सिद्धक्षेत्र में जाने से पहले आत्मा का प्रकाश संपूर्ण ब्रह्मांड में फैल जाता है। यही मोक्ष और निर्वाण के बीच का मुख्य अंतर है।
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