ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मोक्ष का अर्थ यानि आत्मा की मुक्ति या सभी बंधनों से आत्मा की मुक्ति। वह जो बंधा हुआ है वह ही मुक्त होगा। अब देह या आत्मा, कौन बंधा हुआ है? कैद कौन भुगतता है कैदी या जेल? इस तरह यह देह एक कैद है और इसके भीतर जो है वही बंधा हुआ है। आत्मा देह के अंदर है तो इसका अर्थ क्या यह है कि आत्मा कैदी है? नहीं।
इस बारे में परम पूज्य दादाश्री का क्या कहना है, नीचे दी गई बातचीत से जानते हैं।
प्रश्नकर्ता : आत्मा को शरीर की वळगण (बला, भूतावेश, पाश, बंधन) है, पुद्गल की, इसलिए आत्मा भटकता है?
दादाश्री : वळगण आत्मा को लगती ही नहीं। यह तो सब अहंकार को ही है। अहंकार है तो आत्मा नहीं है और आत्मा है तो अहंकार नहीं है।
प्रश्नकर्ता : तो आत्मा को मोक्ष देना है न?
दादाश्री : आत्मा मोक्ष में ही है। उसे दु:ख ही नहीं है न! जिसे दु:ख हो, उसका मोक्ष करना है। खुद बँधा हुआ भी नहीं है, मुक्त ही है। यह तो अज्ञान से मानता है कि ‘बँधा हुआ हूँ’ और ‘मुक्त हूँ’ उसका ज्ञान हो जाए तो मुक्त हुआ। वास्तव में बँधा हुआ भी नहीं है। वह मान बैठा है। लोग भी मान बैठे हैं, वैसे ही यह भी मान बैठा है। लोगों में स्पर्धा है यह सब। ‘मेरा-तेरा’ के भेद डल गए, वे बंधन को मज़बूत करते हैं।
“जन्म व मरण आत्मा का नहीं है। आत्मा परमानेन्ट वस्तु है। यह जन्म व मरण ‘इगोइज़म’ का है।"
- परम पूज्य दादा भगवान
वैज्ञानिक रूप से, जब दो तत्त्व एक साथ आते हैं, तब तीसरा तत्त्व उत्पन्न होता है। जब जड़ तत्त्व और आत्मा एक साथ आते हैं तब अहंकार खड़ा हो जाता है।
अहंकार का अर्थ है 'मैं'। “मैं हूँ“ यह एक अस्तित्त्व को दर्शाता है। प्रत्येक जीव "मैं हूँ" के अपने अस्तित्व से परिचित है। लेकिन, वह नहीं जानता कि "मैं कौन हूँ"। इसलिए हम सभी स्वयं के देह या देह को दिए गये नाम को ही अपनी पहचान मानते हैं। उदाहरण के रूप में, कोई कहता है कि, 'मैं चंदूभाई हूँ', लेकिन वह नाम तो देह की पहचान के लिए दिया गया है। आप 'चंदूभाई' नहीं हैं और फिर भी आप मान लेते हैं कि आप 'चंदूभाई' हैं।
वास्तव में जो नहीं है उसे मान लेना वही अहंकार है। "मैं यह देह हूँ ", "मैं उसका पति हूँ ", "मैं इंजीनियर हूँ", "मेरी यह उम्र है", “मैं मोटा हूँ” इत्यादि अहंकार के प्रकार है।
यह अहंकार है, जो गलत मान्यताओं से उत्पन्न होता है, जिससे कर्म बंधता है (किसी भी क्रिया में कर्तापन की सूक्ष्म मान्यता के कारण कर्म बंधता है, जो इफ़ेक्ट और कॉज़ के चक्र एक भव से दूसरे भव चलता रहता है)। कर्म का फल भोगने वाला भी अहंकार है। जब यह अहंकार चला जाता है, तो आप अपनी मूल जगह आत्मा में वापस आ जाते हैं, जहाँ कोई बंधन नहीं है।
जब कोई परिस्थिति खुद से नहीं बंधती, तब एक भी कर्म नहीं बंधता। मुक्त आत्मा के लिए कोई कर्म नहीं रहते और ऐसा केवल सिद्धक्षेत्र में हो सकता है।
अहंकार से जल्दी और आसानी से मुक्ति पाने का रास्ता है ज्ञानी पुरुष की कृपा से आत्मज्ञान प्राप्त करना। इस ज्ञान से आपका अहंकार नष्ट हो जायेगा।
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