क्या यह स्वर्ग में है? आकाश में? मंदिर में है? हमारे हृदय में? या कहीं और?
भगवान के सही पते को न जानकर, हम उसे इधर-उधर और हर जगह कल्पना करते रहते हैं ...
“गॉड इज इन एवरी क्रियेचर वेधर विज़िबल और इनविज़िबल। गॉड इज इन क्रियेचर, नोट इन क्रिएशन"
अनंत अदृश्य जीव हैं जिन्हें माइक्रोस्कोप के भी नहीं देखा जा सकता है; भगवान उन सभी में रहते हैं! हालाँकि, सोफा, टेबल, कैमरा, ट्यूबलाइट या रिकॉर्ड-प्लेयर में कोई भगवान नहीं है क्योंकि ये सभी मानव निर्मित रचनाएँ हैं। भगवान किसी भी मनुष्य द्वारा बनाई गई चीजों में नहीं रहता है, लेकिन वह जीवित प्राणियों अर्थात एक- इंद्रिय जीवित प्राणियों, दो- इंद्रिय प्राणियों, पक्षियों, पौधों, पेड़ों, जानवरों, मनुष्यों आदि में रहते होता है, जो हम बाहर देखते हैं वह शरीर है। और उनके भीतर भगवान है!
हाँ है।
जहाँ भी भगवान हाज़िर हैं, वहाँ विकास है और अनुभूति हैं।
भगवान सभी जीवों में शकित के रूप में निवास करते है, और इस शक्ति की उपस्थिति में, हर जीव आगे बढ़ता है। उदाहरण के लिए, यदि हम एक गीले कपड़े में अनाज भिगोते हैं, तो वे बढ़ेंगे, क्या यह नहीं है? लेकिन, अगर हम एक पत्थर को सालों तक गीले कपड़े में भिगो कर रखेंगे, तो क्या वह बढ़ेगा? नहीं। जिन चीजों के भीतर भगवान नहीं है, वे कभी विकसित नहीं हो सकते, न ही वे कभी कुछ महसूस कर सकते हैं।
यदि भगवान का अस्तित्व नहीं होता, तो इस दुनिया में सुख या दुःख का कोई अनुभव नहीं होता। यह केवल भगवान की उपस्थिति में ही हम इन भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम चींटी को छूने की कोशिश करते हैं, तो वह डर से भाग जाएगी और वास्तव में, उसे छूने से पहले ही वह चलना शुरू हो जाती है क्योंकि वह हमारी उपस्थिति और भाव को महसूस कर सकती है। इसलिए, चींटी के भीतर भगवान है। जबकि अगर हम एक टेबल उठाते हैं और उसे तोड़ देते हैं, तो टेबल बिल्कुल नहीं चलेगी, क्योंकि वह जीवित नहीं है और वह कुछ भी महसूस नहीं कर सकती है। इसलिए, टेबल के भीतर कोई भगवान नहीं है।
जहाँ भी हम विकास और भावनाओं को देखते हैं, हम जान सकते हैं कि भीतर भगवान है। विकास और भावनाओं की उपस्थिति भगवान की उपस्थिति का सबसे सरल और आसान प्रमाण है। निर्जीव वस्तुओं में, कोई भगवान नहीं है और इसलिए वे विकसित नहीं होते हैं, न ही महसूस करते हैं।
अब जब हम जानते हैं कि भगवान हर जीवित प्राणी के भीतर है, तो हम भगवान को कैसे देख सकते हैं?
हमारा सारा जीवन, हम बाहर भगवान की तलाश में रहते हैं, लेकिन वास्तव में, भगवान को अंदर महसूस करने की आवश्यकता है।
शारीरिक आंखों (चरम चक्षु) के माध्यम से हम बाहर की ओर अस्थायी और क्षणिक चीजों को देख सकते हैं।
भगवान के पास कोई शरीर नहीं है। शरीर सिर्फ एक बाहरी आवरण है। वह आम का पेड़, गधा, इंसान या किसी अन्य जीव का हो सकता है, और यह एक दिन सड़ सकता है या फट सकता है। जबकि भगवान अविनाशी शुद्ध तत्व रूप से बिराजमान है जो सभी में समान भाव से रहते है। यह शाश्वत तत्व हमारी असली पहचान है! यह भीतर का तत्व स्व है। खुद ही शुद्ध आत्मा है। शुद्ध आत्मा ही भगवान है!
सभी के भीतर निवास करने वाले इस शाश्वत भगवान को दिव्य चक्षु के माध्यम से ही देखा जा सकता है, जो प्रत्यक्ष ज्ञानी की कृपा से आत्मज्ञान प्राप्त करते समय ही प्राप्त होते है। आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, हम भगवान को हर जीवमात्र में, अपने आप में, अन्य मनुष्यों, हमारे आस-पास के पेड़ों या यहाँ तक कि जानवरों में भी देख सकते है ... यानी जहाँ भगवान है! वह भगवान का पता है!
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