एक धार्मिक मान्यता है कि:
‘ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सामूहिक रूप से सृष्टि का निर्माण किया।
ब्रह्मा विधाता हैं, विष्णु संचालक हैं और महेश संहारक हैं। '
तो, वास्तविकता क्या हैं? क्या सच में यह सृष्टि ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा बनाई गई है?
तथ्य यह है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश नाम, प्राकृत गुणों की तीन विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हर व्यक्ति में मौजूद हैं:
प्रत्येक जीव में प्रकृति के सहित है और प्रकृति जड़ तत्त्व से बनी हुई है।
जड़ तत्त्व की मूल प्रकृति अविनाशी है, जबकि प्रकृति की अवस्था का हर पल निर्माण और विनाश होता रहता हैं। अवस्थाए निरंतर उत्पन्न और विनाश की प्रक्रिया से गुज़रती हैं। इसी तरह, सभी जीवात्मा में आत्मा वह शाश्वत तत्व है, जबकि आत्मा की अवस्थाए निरंतर निर्माण और विनाश से गुज़रती हैं।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह तीन नाम को रूपक प्रतिनिधित्व के आधार से दर्शाया गया है ताकि लोगों को यह तीनों गुणों को जानने में मदद मिल सके:
इस प्रकार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं।
यह व्यवस्था बहुत वैज्ञानिक है और काफी गहराई से भरी है। हालाँकि, हम यह सब कुछ आसानी से समझ सके इसलिए एक रूपक (प्रतिक) के तौर पर प्रस्थापित किये है; किन्तु जैसे जैसे काल बीतता गया वैसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक प्रतिक के रुपमें लोगो के बिच गेरसमज हो गई। न केवल उनकी मूर्तियाँ स्थापित की गईं, बल्कि लोग उनकी पूजा भी करने लगे।
इसके बारे में ज़रा सोचिये..
अगर हम ब्रह्मा की तलाश करे तो क्या हम उन्हें दुनिया में कहीं भी पाते? नहीं।
क्या विष्णु मिल सकते हैं? नहीं।
ना ही महेश!
इस सृष्टि को चलानेवाले आकाश या स्वर्ग में कोई नहीं है। इस सृष्टि की रचना ब्रह्मा द्वारा नहीं हुई है और न ही सृष्टि के निर्माण के लिए किसी कि आवश्यता है |
वास्तव में यदि यह सृष्टि की रचना ईश्वरने की है, तो हर तरह से और निरंतर यह सुंदर क्यों नहीं रही होगी?
लेकिन यह ऐसा नहीं है…
इस जगत का एक बुरा पहलू भी है! दुनिया भर में चिंताएँ, भय, दुख, आँसू, बीमारियाँ, दर्द, पीड़ा और असंख्य पीड़ाएँ हैं।
ईश्वर को इस सृष्टि का ‘सर्जनहार’ कहकर, हम उन्हें चिंताओं और दुखों का ‘सर्जनहार’ भी बना रहे हैं। अनायास ही इस दुनिया में हमे जो भी दुख आ रहे हैं उसके लिए भगवान को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। भगवान ऐसी दुनिया क्यों बनाएंगे और क्यों इस तरह की गंभीर ज़िम्मेदारी उठाएंगे?
यह सिर्फ एक कुदरती रचना है; यह किसी के निर्माण किये बिना, स्वयं से प्रकट हुई है। भगवान कृष्ण ने कहा है, "भगवान ने इस दुनिया को नहीं बनाया है; यह स्वाभाविक रूप से खुद से प्रकट हुई है।"
अज्ञानता से, हमने कई गलत मान्यताओं का पोषण किया है। लेकिन जैसे ही हम आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही हम इस दुनिया के वास्तविक तथ्यों को समझने लगते हैं।
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