प्रश्नकर्ता : कुछ लोग ऐसे होते हैं कि हम चाहे कितना ही अच्छा बर्ताव करें, फिर भी वे नहीं समझते।
दादाश्री : वे नहीं समझते तो उसमें अपनी ही भूल है कि हमें समझदार क्यों नहीं मिला! हमसे इनका ही संयोग क्यों हुआ? जब कभी भी हमें कुछ भी भुगतना पड़ता है, वह अपनी ही भूल का परिणाम है।
प्रश्नकर्ता : तो हमें यह समझना चाहिए कि 'मेरे कर्म ही ऐसे हैं?'
दादाश्री : अवश्य। अपनी भूल के बिना हमें भुगतना नहीं होता। इस जगत् में ऐसा कोई भी नहीं है कि जो हमें किंचित्मात्र भी दुःख दे सके और यदि कोई दुःख देनेवाला है, तो वह अपनी ही भूल है। सामनेवाले का दोष नहीं है, वह तो निमित्त है। इसलिए 'भुगते उसी की भूल'।
कोई पति और पत्नी आपस में बहुत झगड़ रहे हों और जब दोनों सो जाएँ, फिर आप गुपचुप देखने जाओ तो पत्नी गहरी नींद सो रही होती है और पति बार-बार करवटें बदल रहा होता है, तो आप समझ लेना कि पति की भूल है सारी, क्योंकि पत्नी नहीं भुगत रही है। जिसकी भूल होती है, वही भुगतता है और यदि पति सो रहा हो और पत्नी जाग रही हो, तो समझना कि पत्नी की भूल है। 'भुगते उसी की भूल'। यह तो बहुत गुह्य 'साइन्स' है। पूरा जगत् निमित्त को ही काटने दौड़ता है।
Book Name: भुगते उसी की भूल (Page #7 Paragraph #6)
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