भूल किसकी? भुगते उसकी! क्या भूल? तब कहते हैं कि 'मैं चंदूभाई हूँ' यह मान्यता ही आपकी भूल है। क्योंकि इस जगत् में कोई दोषित नहीं है। इसलिए कोई गुनहगार भी नहीं है, ऐसा सिद्ध होता है।
बाकी, इस दुनिया में कोई कुछ कर ही नहीं सकता। लेकिन जो हिसाब बंध गया हो, वह छोड़नेवाला नहीं है। जो घोटालेवाला हिसाब हो गया है, वह घोटालेवाला फल दिए बगैर रहेगा नहीं। लेकिन अब नए सिरे से घोटाला मत करना, अब रुक जाओ। जब से यह मालूम हुआ, तब से रुक जाओ। जो पुराने घोटाले हो चुके हैं, वे तो हमें चुकाने पड़ेंगे, लेकिन नये नहीं हों, इतना देखना। संपूर्ण ज़िम्मेदारी हमारी ही है, भगवान की ज़िम्मेदारी नहीं है। भगवान इसमें हाथ नहीं डालते। इसलिए भगवान भी इसे माफ नहीं कर सकते। कई भक्त ऐसा मानते हैं कि, 'मैं पाप करता हूँ और भगवान माफ कर देंगे।' भगवान के यहाँ माफी नहीं होती। दयालु लोगों के यहाँ माफी होती है। दयालु मनुष्य से कहें कि 'साहब, मुझसे आपके प्रति बहुत भूल हो गई है।' तो वह तुरंत माफ कर देगा।
दुःख देनेवाला तो निमित्त मात्र है, लेकिन मूल भूल खुद की ही है। जो फायदा करता है, वह भी निमित्त है और जो नुकसान कराता है, वह भी निमित्त है, लेकिन वह अपना ही हिसाब है, इसलिए ऐसा होता है।
हम आपसे खुला कह देते हैं कि आपकी 'बाउन्ड्री' में किसी को उँगली डालने की शक्ति नहीं है और यदि आपकी भूल है तो कोई भी उँगली डाल सकता है। अरे, लाठी भी फटकारेगा। 'हम' तो पहचान गए हैं कि कौन घूँसे मार रहा है। सभी आपका अपना ही है! आपका व्यवहार किसी और ने नहीं बिगाड़ा। आपका व्यवहार आपने ही बिगाड़ा है। यू आर होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबल फोर योर व्यवहार।
१) जो दुःख भोगे तो वह उसकी भूल और सुख भोगे तो वह उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है। भगवान का कानून, रियल कानून तो जिसकी भूल होगी, उसी को पकड़ेगा। यह कानून एक्झैक्ट है और उसमें कोई परिवर्तन कर सके ऐसा है ही नहीं। ऐसा कोई कानून जगत में नहीं है कि जो किसी को 'भुगतना' दे सके। सरकारी कानून भी 'भुगतना' नहीं दे सकता।
२) अपनी कुछ भूल होगी, तभी सामनेवाला कहता होगा न ? इसलिए भूल सुधार लो। इस जगत में कोई जीव किसी जीव को त़कली़फ नहीं दे सके ऐसा स्वतंत्र है और यदि कोई त़कली़फ देता है, तो वह पूर्वजन्म की दखल के कारण देता है। भूल सुधारने पर फिर हिसाब नहीं रहेगा।
३) 'भुगते उसी की भूल' यह सूत्र मोक्ष में ले जायेगा। कोई पूछे कि मैं अपनी भूलें कैसे खोजूँ ? तो हम उसे सिखायेंगे कि तुझे कहाँ-कहाँ भुगतना पड़ता है? वह तेरी भूल। तेरी क्या भूल हुई होगी कि ऐसा भुगतना पड़ा? यह ढूँढ निकालना। अभी तो सारा दिन भुगतना पड़ता है, इसलिए ढूँढ निकालना चाहिए कि क्या क्या भूलें हुई हैं!
४) अगर आपको कोई गुनहगार दिखता है, तो वह आपके भीतरी शत्रु क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, वे ऐसा दिखाते हैं। 'खुद' की दृष्टि से वह गुनहगार नहीं दिखता, क्रोध-मान-माया-लोभ उसे गुनहगार दिखाते हैं। जिसे क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं है, उसे कोई गुनहगार दिखानेवाला है ही नहीं और उसे कोई गुनहगार दिखता भी नहीं है। वास्तव में गुनहगार जैसा कुछ है ही नहीं। यह तो क्रोध-मान-माया-लोभ घुस गये हैं और वे 'मैं चंदुभाई हूँ' ऐसा मानने की वज़ह से घुस गये हैं। 'मैं चंदुभाई हूं', यह मान्यता छूट गई तो क्रोध-मान-माया-लोभ जाते रहेंगे। फिर भी घर खाली करने में उन्हें थोड़ी देर लगेगी, क्योंकि कई दिनों से घुसे हुए हैं न !
Book Name: भुगते उसी की भूल (Page#24)
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