लोग सहनशक्ति बढ़ाने को कहते हैं, लेकिन वह कब तक रहेगी? ज्ञान की डोर तो आखिर तक पहुँचेगी, सहनशक्ति की डोर कहाँ तक पहुँचेगी? सहनशक्ति लिमिटेड है, ज्ञान अनलिमिटेड है। यह 'ज्ञान' ही ऐसा है कि किंचित्मात्र सहन करने को नहीं रहता। सहन करना यानी लोहे को आँखों से देखकर पिघालना। उसके लिए शक्ति चाहिए। जबकि ज्ञान से किंचित्मात्र सहन किए बगैर, परमानंद सहित मुक्ति! और फिर यह भी समझ में आता है कि यह तो हिसाब पूरा हो रहा है और मुक्त हो रहे हैं।
जो दुःख भुगते, उसी की भूल और सुख भोगे तो, वह उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है। भगवान का कानून, रियल कानून तो जिसकी भूल होगी, उसी को पकड़ेगा। यह कानून एक्ज़ेक्ट है और उसमें कोई परिवर्तन कर ही नहीं सकता। जगत् में ऐसा कोई कानून नहीं है कि जो किसीकोभोगवटा(सुख-दुःख का असर) दे सके! सरकारी कानून भीभोगवटानहीं दे सकता।
यह चाय का प्याला आप से फूट जाए तो आपको दुःख होगा? खुद से फूटे तो क्या आपको सहन करना पड़ता है? और यदि आपके बेटे से फूट जाए तो दुःख, चिंता और कुढ़न होती है। खुद की ही भूल का हिसाब है, ऐसा यदि समझ में आ जाए तो दुःख या चिंता होगी? यह तो दूसरों के दोष देखने से दुःख और चिंता खड़ी करते हैं, रात-दिन जलन ही खड़ी करते हैं, और ऊपर से खुद को ऐसा लगता है कि मुझे बहुत सहन करना पड़ रहा है।
खुद की कुछ भूल होगी, तभी सामनेवाला कहता होगा न? इसलिए भूल सुधार लो न! इस जगत् में कोई जीव किसी जीव को तकली़फ नहीं दे सकता, ऐसा स्वतंत्र है और यदि कोई तकली़फ देता है, वह पहले दखल की है, इसलिए। भूल खत्म कर लो, फिर हिसाब नहीं रहेगा।
प्रश्नकर्ता : यह थ्योरी ठीक से समझ में आ जाए तो मन को सभी प्रश्नों का समाधान रहे।
दादाश्री : समाधान नहीं, एक्ज़ेक्ट ऐसा ही है। यह सेट किया हुआ नहीं, बुद्धिपूर्वक की बात नहीं है, यह ज्ञानपूर्वक का है।
Book Name: भुगते उसी की भूल (Page #2 Paragraph #3 & #4 ; Page #3 Paragraph #1,#2)
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