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आत्महत्या के बाद क्या होता है? आत्महत्या क्यों नहीं करनी चाहिए?

जीवन में हर चीज़ का कॉज़ और इफेक्ट होता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि, जो कोई भी आत्महत्या करने के बारे में सोच रहा है, वह आत्महत्या के परिणाम के बारे में ध्यान से सोचे। क्योंकि आत्महत्या करने के बहुत ही गंभीर परिणाम होते हैं।

Suicide Prevention

आत्महत्या क्यों नहीं करनी चाहिए? 

जब कोई व्यक्ति संसार के दुखों को सहन नहीं कर सकता, तब वह दुःख का सोल्यूशन निकालने के बजाय, उससे भागने की कोशिश करता है; लेकिन वह अपने कर्मों को अपने साथ लेकर जाता है। शरीर त्याग देने से, सिर्फ़ शरीर यहाँ रह जाता है, लेकिन कर्म नहीं छूटते हैं। अगले जन्म में उन सभी कर्मों को फिर से भुगतना पड़ता है। कर्मों का हिसाब तो पूरा करना ही पड़ेगा।

इसका अर्थ यह है कि, जब दुःख आएँ, तब यदि हम उस समय को गुजरने दें, तो हमें अच्छे संयोग और समाधान प्राप्त होंगे। जब बुरा समय आए, तब दुःखी न हों। बुरे समय में भगवान की भक्ति करें और प्रतिकूल परिस्थितियों को समता से पूरा करने की प्रार्थना करें।

जीवन में कठिन समय का सामना तो करना पड़ेगा, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी ही जान ले लें। इसके बजाय, यदि हम इस जन्म की कठिनाइयों का सामना कर लें, तो हमारे कर्मों का हिसाब पूरा हो जाएगा। नहीं तो, हम अगले जन्मों के लिए अपने ही दुःखों को बढ़ाकर उन्हें तीव्र कर लेंगे।

परम पूज्य दादाश्री विस्तार से समझाते हैं “भले ही आत्महत्या करके मर जाए, लेकिन वापस फिर से यहीं पर कर्ज़ चुकाने आना पड़ेगा। इंसान है तो उसके सिर पर दुःख तो आएँगे ही, लेकिन उसके लिए कहीं आत्महत्या करते हैं? आत्महत्या के फल बहुत कड़वे हैं। भगवान ने उसके लिए मना किया है, बहुत खराब फल आते हैं। आत्महत्या करने का तो विचार भी नहीं करना चाहिए। ऐसा जो कुछ भी कर्ज़ हो तो वह वापस दे देने की भावना करनी चाहिए, लेकिन आत्महत्या नहीं करनी चाहिए।”

आत्महत्या करने के क्या परिणाम हैं?

आत्महत्या करने के भयंकर परिणामों के बारे में बताते हुए परम पूज्य दादाश्री कहते हैं:

प्रश्नकर्ता: कोई व्यक्ति आत्महत्या करे तो उसकी क्या गति होती है? भूतप्रेत बनता है?

दादाश्री: आत्महत्या करने से तो प्रेत बनते हैं और प्रेत बनकर तो भटकना पड़ेगा। आत्महत्या करके बल्कि परेशानियाँ मोल लेता है। एक बार आत्महत्या करे, तो उसके बाद कितने ही जन्मों तक उसके प्रतिस्पंदन आते रहते हैं!

और ये जो आत्महत्या करते हैं न, वे कोई नये लोग नहीं हैं, पिछले जन्म में आत्महत्या की हुई होती है, उसके प्रतिस्पंदन के कारण करते हैं। आज आत्महत्या करते हैं, वह तो पहले की हुई आत्महत्या के कर्म का फल आता है। इसलिए खुद अपने आप ही आत्महत्या करता है। ऐसे प्रतिस्पंदन डले हुए होते हैं कि, वह वैसा ही करता हुआ आता है। इसलिए खुद अपने आप ही आत्महत्या करता है और आत्महत्या के बाद अवगतिवाला जीव भी बन सकता है। अवगतिवाला जीव अर्थात् बिना देह के भटकता है। भूत बनना आसान नहीं है। भूत तो देवगति का अवतार है, वह आसान चीज़ नहीं है। भूत तो, अगर यहाँ पर कठोर तप किए हों, अज्ञान तप किए हों तब भूत बनता है, जबकि प्रेत अलग चीज़ है।

प्रश्नकर्ता: आत्महत्या के विचार क्यों आते होंगे?

दादाश्री: वह तो अंदर विकल्प खत्म हो जाते हैं, इसलिए। यह तो, विकल्प के आधार पर जी पाते हैं। विकल्प खत्म हो जाएँ, बाद में अब क्या करना, उसका कुछ ‘दर्शन’ नहीं दिखता। इसलिए फिर आत्महत्या करने के बारे में सोचता है। यानी ये विकल्प भी काम के ही हैं।

सहज रूप से विचार बंद हो जाएँ, तब ये सब ऊँचे विचार आते हैं। जब विकल्प बंद हो जाएँ, तब सहज रूप से जो विचार आ रहे थे, वे भी बंद हो जाते हैं। घोर अँधेरा हो जाता है, फिर कुछ भी दिखाई नहीं देता! संकल्प अर्थात् ‘मेरा’ और विकल्प अर्थात् ‘मैं,’ जब वे दोनों बंद हो जाएँ, तब मर जाने के विचार आते हैं।

एक प्रश्नकर्ता परम पूज्य दादाश्री से आत्महत्या के पश्चात् होने वाले अगले सात जन्मों के बारे में पूछता है:

प्रश्नकर्ता: दादा, ऐसा सुना है कि, आत्महत्या के बाद सात जन्मों तक वैसा ही होता है। यह बात सच है?

दादाश्री: जो संस्कार पड़ते हैं, वे सात-आठ जन्मों के बाद जाते हैं, यानी ऐसा कोई गलत संस्कार मत पड़ने देना। गलत संस्कारों से दूर भागना। हाँ, यहाँ चाहे जितना दु:ख हो, उसे सहन कर लेना, लेकिन गोली मत मारना। आत्महत्या मत करना।

अपने भाव न बिगड़ें और आत्महत्या का एक भी नेगेटिव विचार उत्पन्न न हो, इसके लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। ऐसी बातों से ध्यान हटाकर कहीं और लगाना चाहिए, क्योंकि ये नेगेटिव विचार सिर्फ़ इच्छा के विपरीत परिणाम ही लाएँगे। इसके बजाय, अपनी समस्याओं के समाधान ढूंढने और पॉज़िटिव रहने पर ध्यान केंद्रित दें।

जब नेगेटिव विचार आएँ तब क्या करें?

प्रत्येक नेगेटिव विचार को लिखिए और उसके सामने पॉज़िटिव विचार लिखिए। जब हमारा मन हमें नेगेटिव दिखाए, तो उसे पॉज़िटिव दिखाने के लिए कहें। मन पॉज़िटिव भी दिखाएगा। नेगेटिव विचारों से डरिए मत। निश्चय कीजिए कि मुझे पॉज़िटिव ही देखना है। हर परिस्थिति के नेगेटिव और पॉज़िटिव दो पहलू होते हैं। यदि हम पॉज़िटिव देखने का निश्चय कर लें, तो मन हमें पॉज़िटिव दिखाएगा।

दुनिया में ऐसे अनगिनत सफल व्यक्ति हैं, जिन्होंने सफल होने से पहले असफलताओं का अनुभव किया, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने जीवन को एक मौका दिया और सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचे।

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