जीवन में हर एक चीज का कारण और उसका परिणाम होता है। इसलिए जिस किसी को भी लगातार आत्महत्या के विचार आ रहे हों, इसके क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं, उसके बारे में ध्यान से सोचने की विनती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आत्महत्या के परिणाम बहुत गंभीर होते हैं।
दरअसल, जब कोई इस तरह से अपनी जान लेता है, तो उसकी आत्मा बिना शरीर के भटकता है। साथ ही इस जन्म में आत्महत्या करने से ऐसे कर्म बंधते हैं जिससे और भी कई जन्मों तक बार-बार आत्महत्या करनी पड़ती है।
वास्तव में, जब कोई इस जन्म में आत्महत्या करता है, तो ऐसा पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा किया हो। उन्होंने पिछले जन्मों में ऐसा किया है और उसके कारण वे कई जन्मों तक ऐसा करते रहे हैं।
मनुष्य के रूप में, जीवन में मुश्किली भरे समय का सामना तो करना पड़ेगा, इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी जान ले ले। इसके बजाय, यदि हम वर्तमान में जीवन की मुश्किलों का सामना करते हैं, तो हम अपने कर्मों के हिसाब को पूरा कर पाएँगे। अन्यथा, हम केवल अगले जन्मों के लिए अपने कर्मों मे दुःख को बढ़ाकर उसको और तीव्र करेंगे।
परम पूज्य दादाजी समझाते हैं, "भले ही आत्महत्या करके मर जाए, लेकिन वापस फिर से यहीं पर कर्ज़ चुकाने आना पड़ेगा। इंसान है तो उसके सिर पर दु:ख तो आएँगे ही, लेकिन उसके लिए कहीं आत्महत्या करते हैं? आत्महत्या के फल बहुत कड़वे हैं। भगवान ने उसके लिए मना किया है, बहुत खराब फल आते हैं। आत्महत्या करने का तो विचार भी नहीं करना चाहिए। ऐसा जो कुछ भी कर्ज़ हो तो वह वापस दे देने की भावना करनी चाहिए, लेकिन आत्महत्या नहीं करनी चाहिए।“
आपके भीतर के भाव न बिगड़ें या आत्महत्या का कोई नेगेटिव विचार उत्पन्न न हो उसके लिए अपनी शक्ति के अनुसार सारे प्रयास करने चाहिए। ऐसी बातों से अपना ध्यान हटाएँ, क्योंकि की नेगेटिव विचार केवल अनावश्यक परिणाम ही ला सकते हैं। इसके बजाय, अपनी समस्याओं के सकारात्मक तरीके से उपाय ढूँढो और पॉजिटिव बने रहने पर ध्यान दें।
अपने वास्तविक स्वरूप की अज्ञानता के कारण, हम समस्याओं को मन पर ले लेते हैं। हम मन के साथ तन्मयाकार हो जाते हैं और महसूस करते हैं कि 'यह मेरे साथ हो रहा है', 'मैं खुशी का अनुभव कर रहा हूँ', 'मुझे वह व्यक्ति पसंद है', या 'मुझे वह व्यक्ति पसंद नहीं है'। मन जो विचार बताता है हम उन्हें खुद पर ले लेते हैं और उसकी असर में आ जाते हैं। याद रखें, मन दिन-रात निरंतर सोचता रहेगा है। यह अपना काम कर रहा है। आपको उसकी असर में नहीं आना चाहिए।
जब आपके मन में अच्छे या बुरे विचार आते हैं, तो आप आसानी से 'मैं कौन हूँ' की सही समझ से असर मुक्त रह सकते हैं। जिस प्रकार कान का कार्य सुनना है, उसी प्रकार मन का स्वभाव सभी प्रकार के विचार दिखाना है।
जब यह (मन) आपको अच्छे-बुरे अलग- अलग विचार दिखाता है, आपको उसके साथ तन्मयाकार नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, प्रेक्षक (देखने वाला) की तरह, उन विचारों को फिल्म की तरह जाते हुए देखो। आपको तभी असर होगी जब आप खुद को मन का मालिक मानेंगे। यदि आप अपने वास्तविक स्वरूप (शुद्ध आत्मा) में एक ज्ञाता और द्रष्टा के रूप में रहते हैं, तो कोई भी कठिनाई आपको परेशान नहीं करेगी।
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