दुर्भाग्यवश, प्रेमी सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक भिन्नताएँ, जो उन्हें एक होने से रोकती हैं, उनसे छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या करने का प्रॉमिस करके आत्महत्या कर लेते हैं। साथ में जीवन जीने की कोई आशा न होने के कारण, वे निराश होकर अपने जीवन का अंत कर लेते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो अपने प्रेमी की मृत्यु के पश्चात् आगे का जीवन अकेले बिताने के डर से आत्महत्या कर लेते हैं।
हालाँकि, आत्महत्या करने के परिणाम बहुत भयंकर होते हैं। लोग इसे अपने दुःखों से मुक्ति मानते हैं, परंतु इससे भविष्य में अधिक दुःख ही आएँगे।

जब दो प्रेमी साथ में आत्महत्या करने का फैसला करते हैं, तब वे ऐसा इस उम्मीद के साथ करते हैं कि वे अगले जन्म में एक साथ होंगे। यह संभव नहीं है, क्योंकि अगले जन्म व्यक्ति के खुद के कर्मों से निर्धारित होते हैं। वे इस जीवन में कर्म बाँधते हैं, और अगले जन्म में उनके परिणामों का अनुभव करते हैं। कर्म के इस सिद्धांत को कोई बदल नहीं सकता।
इसलिए अगले जन्म में एक होने की इच्छा कितनी भी प्रबल हो, पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अपने खुद के कर्मों से ही अगला जन्म तय होता है।
हम संयोगों के उदय के समय कर्म बाँधते हैं। इस समय के दौरान, हम सबकी अपनी-अपनी राय होती हैं और हम अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया देते हैं, जिससे तय होता है कि हम किस प्रकार के कर्म बाँध रहे हैं। क्योंकि हम सब की राय और दृष्टिकोण अलग-अलग होते हैं, इसलिए हम सब के लिए यह असंभव है कि हम एक ही जगह पर, एक ही समय पर जन्म लें, ताकि हम फिर से एक-दूसरे से अगले जन्म में मिल सकें। इसलिए शांति से जीवन जीना बेहतर है। दुःख चाहे कितना भी बड़ा हो, उसे शांत मन से हल करने का निश्चय करें। एक दृढ़ संकल्प करें कि समाधान खोजेंगे और अपने कष्टों पर विजय पाएँगे। आत्महत्या कभी भी विकल्प के रूप में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उसके परिणाम आपको अगले जन्म में भुगतने पड़ेंगे।
प्रेमी के साथ आत्महत्या करने के बारे में परम पूज्य दादा भगवान क्या कहना चाहते है, आइए पढ़ें:
प्रश्नकर्ता: दो लोग प्रेमी हों और घरवालों का साथ नहीं मिले तो आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसा बहुत बार होता है तो वह प्रेम है, उसे क्या प्रेम माना जाएगा?
दादाश्री: आवारा प्रेम! उसे प्रेम ही कैसे कहा जाए? इमोशनल होते हैं और पटरी पर सो जाते हैं! और कहेंगे, ‘अगले भव में दोनों साथ में ही होंगे।’ तो वह ऐसी आशा किसी को करनी नहीं चाहिए। वे उनके कर्म के हिसाब से फिरते हैं। वे वापिस इकट्ठे ही नहीं होंगे!!
प्रश्नकर्ता: इकट्ठे होने की इच्छा हो तब भी इकट्ठे होते ही नहीं?
दादाश्री: इच्छा रखने से कहीं दिन फिरते हैं? अगला भव तो कर्मों का फल है न! यह तो इमोशनलपन है।
ज़रा सोचिए... यदि हम आत्महत्या कर लेते हैं, तो साथ होने की हर संभावना को हम स्वयं ही समाप्त कर देते हैं। यह तो लड़ाई शुरू होने से पहले ही भागने जैसा है। इसके बजाय इन उपायों को आज़माइए:
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