अगर आपको ऐसा लगे कि किसी को आत्महत्या के भाव उत्पन्न होने का कारण आप हो, आपको पहेले यह समझना होगा कि आपके वर्तन का उस पर क्या बुरा प्रभाव पड़ा है । वह व्यक्ति स्व- शंका, अकेलापन, घबराहट, चिंता, भय और यहाँ तक कि डिप्रेशन जैसी विभिन्न भावनाओं का अनुभव कर रहा हो।
आपको खुद से पूछना चाहिए, 'अगर यह मेरे साथ हो तो क्या मुझे पसंद आएगा? अगर मैं उनके जैसी स्थिति में होता तो मुझे कैसा लगता?' अपने आपको उसकी जगह पर रखकर देखो! तो, आप उसके लिए अपने व्यवहार को सुधारने के लिए क्या कर सकते हैं? अगर आप यह पढ़ रहे हैं, तो आप यह पहले से ही समझ चुके होगे कि आपने किसी को दुःख पहुँचाया है और अब आपको उसके साथ के वर्तन में बदलाव करने की जरूरत है।
ऐसी परिस्थिति का आंतरिक और वैज्ञानिक समाधान है जिसमें आप लोगों के आत्महत्या करने की इच्छा का कारण बने है। माफी माँगो।
प्रतिक्रमण की वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करके माफी माँगने से, समय के साथ उस व्यक्ति के साथ का आपका हिसाब समाधानपूर्वक पूरा हो जाएगा। इसके अलावा, आपने उनको किसी भी प्रकार का दुःख पहुँचाया हो तो उसके लिए एक भी शब्द कहे बिना माफी माँग सकते हैं।
सामने वाले व्यक्ति को हाजिर रहने की जरूरत नहीं है। वे जहाँ भी होंगे, यह प्रतिक्रमण उन तक पहुँच जायेगे। इससे कोई मतलब नहीं कि आप न्यू यॉर्क में है और वो न्यूजीलैंड में है। आपने उन्हें जो दुःख दिया है, उसे आप आसानी से दूर कर सकते हैं।
इस क्रिया में आप उसके प्रति के अपने आंतरिक भावों को बदलकर, अपने विचार, वाणी और वर्तन के द्वारा अपने आक्रोश से पलटते है(छूटते है)। किसी भी जीवमात्र के साथ जो गलतियाँ की हैं उसको को तोड़ने का यह एक शक्तिशाली उपाय है। जब भी आपको किसी के प्रति क्रोध, नापसंद, कपट, लोभ और तिरस्कार का अनुभव हो, तब सिर्फ प्रतिक्रमण करो उससे तुरंत ही आपको खराब वर्तन के अपराधक भाव से मुक्तता और हल्कापन महसूस होगा।
क्रिया को असरकारक बनाने के लिए आपको दिन में ३० से ६० मिनट तक माफ़ी (प्रतिक्रमण) माँगनी चाहिए। फिर सामनेवाले के प्रति के व्यवहार में खुद में बदलाव दिखना शुरू हो जाएगा। आपको उसके प्रति द्वेष और तिरस्कार कम हो जाएगा। और उनको भी बदलाव का अनुभव होगा।
आप जिस भगवान मैं श्रद्धा रखते हो उनको याद करके, उनको साक्षी में रखकर:
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