परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं कि, “पूरी पॉज़िटिव लाइन भगवान पक्षीय है और जो नेगेटिव लाइन है, वह शैतान पक्षीय है।” जिसका मन हमेशा पॉज़िटिव हो गया, वही भगवान। आत्मा पॉज़िटिव पक्ष है और बुद्धि नेगेटिव पक्ष है। तीर्थंकर और ज्ञानी निरंतर आत्मस्वरूप होते हैं और व्यवहार में भी हमेशा पॉज़िटिव होते हैं। उनकी पॉज़िटिविटी का पावर ऐसा होता है कि उनकी हाज़िरी से ही सबको अच्छे भाव होने लगते हैं।
तीर्थंकर श्री महावीर भगवान ने अपने शिष्यों को बहुत ऊँचे प्रकार की पॉज़िटिव दृष्टि देते हुए सिखाया कि आप बाहर जाओ और लोग एकाध लाठी मारें तो हमें ऐसे समझना चाहिए कि सिर्फ़ लाठी ही मारी न, हाथ तो नहीं टूटा न! इतनी तो बचत हुई, इसलिए इसे ही लाभ मानना! कोई एक हाथ तोड़े तो दूसरा तो नहीं टूटा न! ऐसा मानना। दो हाथ काट डाले तब मानना कि पैर तो हैं न! दोनों हाथ और दोनों पैर काट डाले तो कहना कि मैं ज़िंदा तो हूँ न! आँखों से दिखता तो है न! इस प्रकार भगवान ने लाभ और हानि देखने की दृष्टि दी। इसलिए कैसे भी संयोगों में, ”तू रो मत, हँस, आनंद पा।" ऐसा उनका संदेश था। महावीर भगवान की ऐसी सम्यक् दृष्टि से नुकसान में भी फायदा दिखाई देता है। क्या गया है यह नहीं देखें, हमारे पास क्या बचा है यह देखें।
परम पूज्य दादा भगवान कहते थे कि हमें पूरी ज़िंदगी किसी के लिए एक क्षण भी नेगेटिव नहीं हुआ। कोई घोर अपमान करता हो तो भी दादाश्री उसमें से पॉज़िटिव ढूँढ निकालते। उनके जीवन के ऐसे अनगिनत प्रसंग हैं, जिनमें से कुछ हम यहाँ संक्षिप्त में देखेंगे।
परम पूज्य दादाश्री को कोई, "बेअक़्ल हो" ऐसा कहे तो वे कहते थे कि, "आपको तो आज पता चला, मुझे तो कब से पता है कि मुझमें अक़्ल कम है।" फिर सामने वाला क्या प्रतिकार कर सकता है?
कोई उन्हें कहे कि, "आप गधे जैसे हैं" तो परम पूज्य दादाश्री शांति से कहते थे, "अरे भाई, गधा तो बहुत बड़ा होता है। मैं तो गधे से भी छोटा हूँ। छोटे से छोटा हूँ।" जो निरंतर आत्मारूप रहते हों, एक क्षण देहरूप नहीं होते हों, वही ऐसा कह सकते हैं!
कोई परम पूज्य दादाश्री से कहे कि, "दादा, आप मूर्ख हैं, लोगों को उल्टे रास्ते पर चलाते हैं।" तो वे इसमें सीधा ले लेते थे कि बिल्कुल सही है, हम ‘अ-कर्मी’ अर्थात् कर्म बँधते नहीं ऐसे ही हैं और लोगों को संसार में उल्टे मार्ग पर अर्थात् मोक्षमार्ग में सीधे चढ़ाते हैं। सामने वाला अपनी जोखिमदारी पर चाहे कुछ भी बोले, लेकिन परम पूज्य दादा भगवान उसमें से पॉज़िटिव ढूँढ ही निकालते, जिससे शब्दों का ज़रा सा भी असर ना हो।
परम पूज्य दादाश्री के पैर में फ्रैक्चर हुआ था और लोग हालचाल पूछने आते थे। तब वे कहते थे कि यह पैर टूटा नहीं कहा जाएगा। क्योंकि जिस क्षण पैर टूटा, उसी क्षण से उसके जुड़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। बुखार आए, तब वे कहते कि यह बुखार आया नहीं, बल्कि जा रहा है। शरीर में कितने दिनों का कचरा था, उसे निकालने के लिए वाइटैलिटी पावर ने यह गर्मी उत्पन्न की है।
परम पूज्य दादाश्री के जीवन का एक प्रसंग बहुत रोचक है। जिस परिस्थिति में सामान्य मनुष्य नेगेटिव बोल देते हैं, गुस्सा कर देते हैं, वहाँ उन्होंने कैसे पॉज़िटिव लिया और उस परिस्थिति में से सुल्टी सीख ढूँढ निकाली, यह देखने को मिलता है।
हमने एक व्यक्ति को पाँच सौ रुपये दिए थे। और फिर हम तो कभी वापस माँगते नहीं थे। फिर एक दिन मुझे हमारे अकाउन्टेन्ट ने पूछा कि 'इसे दो साल हो गए हैं। क्या इस भाई को पत्र लिखूँ?' तब मैंने कहा 'नहीं, पत्र मत लिखना, उन्हें बुरा लगेगा।' और फिर एक दिन वे मुझे रास्ते में मिले, तब मैंने कहा, 'अकाउन्टेन्ट आपको पत्र लिखने का कर रहे थे। वे पाँच सौ रुपये भिजवा देना।' तब वे पूछने लगे, आप कौन से पाँच सौ की बात कर रहे हैं? तब मैंने कहा, 'दो साल पहले नहीं ले गए थे आप? उस समय के बहीखाते में देख लेना।' तब वे कहने लगे, 'वह तो मैंने आपको दिए थे। आप भूल गए हैं।' मैं समझ गया कि ऐसी डिज़ाइन जीवन में फिर कभी देखने और जानने को नहीं मिलेगी! अतः आज यह धन्य भाग है अपना! यह व्यक्ति सब से बड़ी सीख देने के लिए आया है। फिर मैंने उससे क्या कहा? 'शायद, यह मेरी ही भूल है, आज दोपहर को आप घर आ जाना।' फिर चाय-पानी पिलाकर, उन्हें पाँच सौ रुपये दे दिए और रसीद काट दी। ऐसा इंसान दोबारा पूरे जीवन में नहीं मिलने वाला। तो भाई, वे पाँच सौ तो नहीं मिले और ऊपर से हज़ार चले गए। लेकिन यह सीख तो मिली न, कि ऐसे भी इंसान होते हैं! फिर हमें ज़रा सावधान होकर चलने का भाव होगा न! लेकिन मुझे वह कैसा इंसान मिल गया! हम सपने में भी कल्पना नहीं कर सकते, उपकार तो कहाँ गया!
परम पूज्य दादा भगवान की पॉज़िटिव दृष्टि इतनी ऊँची थी कि उसमें उनकी करुणा छलकती दिखाई देती है। वे कहते थे, “हमारा लाख नेगेटिव करने वाला हो, तब भी हम कभी उनके साथ एकता नहीं टूटने देते। हमारी ओर से सामने वाले के लिए एकता टूट जाए तो सामने वाले की सारी शक्तियाँ टूट जाती हैं, फिर वह ऊँचा नहीं आ सकता। हमें सामने वाले के प्रति नेगेटिव न हो, इसी के आधार पर सामने वाला अपनी भूल से वापस लौट सकता है।"
परम पूज्य दादाश्री के जीवन का एक प्रसंग है, जिसमें उनकी करुणा छलकती है और वे अच्छे-अच्छों को सोचने पर मजबूर कर दे ऐसा है।
दादाश्री: एक लड़का था, वह मुझसे कहने लगा, 'दादाजी, अंदर मुझे बहुत दुःख होता है।' मैंने कहा, 'किस लिए तुझे दुःख होता है?' तब कहने लगा, 'मुझे एक ख़राब विचार आता है, इसलिए मुझे दुःख होता है। क्यों मुझे ऐसे ख़राब विचार आते हैं?' तब मैंने कहा, 'लेकिन क्या विचार आते हैं, वह मुझे कह न! मैं सब ठीक कर दूँगा।' तब कहता है, 'मुझे ऐसा विचार आता है कि दादाजी को गोली मार दूँ।' मैंने कहा, 'अच्छा! तुझे दुःख हो ऐसी ही यह बात है। लेकिन मुझे बता तुझे किस लिए ऐसा विचार आया?' तब कहता है, 'आप विधि करवा रहे थे, उस समय बाहर से दूसरे व्यक्ति आए, तो आपने उन्हें तुरन्त बुला लिया और मुझे १० मिनट तक वहीं रोक दिया। इसलिए मेरे मन में ऐसा हुआ कि दादाजी पर गोलीबार करो।' मैंने कहा, 'बराबर है, वह मेरी भूल है। मेरी यह भूल हुई इसलिए तुझे ऐसा विचार आया। अब नहीं आएगा।' दूसरे लोगों को आने दिया और उसे नहीं आने दिया। तो व्यक्ति को बुरा लगेगा ही न? तीखा (गुस्सेवाला) व्यक्ति हो तो ऐसे विचार आएँगे या नहीं आएँगे? बंडखोर (बागी) है... इसलिए सच बोला। इसलिए मैंने उसका कंधा थपथपाया कि, 'धन्य है तू कि मेरी रूबरू में तू मुझे गोलीबार करने की बात करता है। तूने सच बोला!' धन्य है इस युवावर्ग को!
वहाँ सत्संग में उपस्थित लोगों ने जब परम पूज्य दादाश्री से पूछा कि, “यह लड़का गोली मारने की बात कर रहा है और आप कंधा थपथपा रहे हैं? दूसरा कोई होता तो उसे निकाल देता!” तब उन्होंने सुंदर जवाब दिया कि, “हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता। सामने वाला चाहे कितना भी विरोध करे तो भी हम उसके सामने विरोध नहीं करते।“ सामने वाले की कैसी भी नेगेटिव वाणी या वर्तन हो, ऐसी परिस्थिति में भी पॉज़िटिव रहने की परम पूज्य दादा भगवान की गज़ब की दृष्टि यहाँ देखने को मिलती है। ज्ञानी पुरुष की पॉज़िटिव दृष्टि का पावर ऐसा होता है कि अच्छे-अच्छे सुधर जाएँ!
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