अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें05 जून |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
नेगेटिव सोचने की भी मर्यादा
शक्तियाँ तो अंदर भरी पड़ी हैं। कोई कहे कि ‘मुझसे नहीं होगा’, तो वैसा हो जाए। इस नेगेटिव ने तो लोगों को मार डाला है। नेगेटिव रुख़ से ही लोगों की मन:स्थिति ऐसी हो गई है।
देखिए न, कहाँ तक के विचार कर डालते हैं। मान लीजिए बारह महीने दुकान नहीं चली हो, तब ‘यह दुकान मुझे नादार कर देगी, फिर नादारी ऐसी होगी, उसके बाद हमारी स्थिति ऐसी हो जाएगी’, लोग यहाँ तक सोच लेते हैं। एक मनुष्य मुझसे कहने लगा, ‘विचार किए बगैर थोड़े ही गुज़ारा है? बिना सोचे दुनिया कैसे चलेगी?’ मैंने कहा, ‘‘आप इस ड्राइवर की साथवाली सीट पर बैठ जाएँ, मुंबई में, और फिर ड्राइवर से पूछना कि, ‘तू क्या-क्या सोचता है? अब इधर जाऊँगा, फिर उधर जाऊँगा, ऐसा करूँगा, वैसा करूँगा, क्या तू ऐसा सोचता है?’ ऐसे कोई नहीं सोचता।’’ मतलब, हरएक व्यक्ति को अमुक हद तक सोचना चाहिए फिर उसे सोचना बंद कर देना चाहिए हरएक बात को लेकर स्टोप कर देना चाहिए। जब मरने की बात होती है तो हम तुरंत स्टोप कर देते हैं, मगर व्यापार की बात हो तो ऐसा नहीं करते। आपको क्या लगता है?
प्रश्नकर्ता: बराबर है, सोचने की भी एक सीमा होती है।
दादाश्री: स्टोप करना आता है, नहीं आता ऐसा नहीं है। यह तो रमणता करते हैं। अक़्ल की थैली खोल देते हैं। यदि आज बेटा पिता से लड़ता है तो पिता सोचने लगे कि, ‘मैं जब बूढ़ा हो जाऊँगा तब फिर मेरा कौन?’ ‘अरे! ऐसा यहाँ तक सोच डाला?’ आज के दिन के लिए ही सोचना, आनेवाले कल के बारे में सोचने की ना कही है भगवान ने। थिंक फोर टुडे, नोट फोर टुमोरो (आज की सोचिए, कल की नहीं)। और वह भी अमुक बाबत में। गाड़ी में जा रहा हो तो ‘गाड़ी टकराएगी तो क्या होगा?’ ऐसा सोचता रहे। अरे छोडिए, उस विचार को बंद कर दीजिए। लेकिन यह तो ठेठ यहाँ तक का विचार कर डाले कि, ‘दुकान में नादारी आ जाए, तब उसके बाद की स्थिति और फिर उसके बाद की भी स्थिति क्या होगी? भीख माँगनी पड़ेगी।’ और फिर वह घर जाकर पत्नी से कहे, ‘भीख माँगनी पड़ेगी।’ ‘पगले, कहाँ देख आया तू?’ कहेगा, ‘मेरी सोच ऐसा कहती है।’ अब इसे क्या कहे, क्या इसे अक़्लमंद कहेंगे? अक़्ल तो वह है कि निरंतर सेफसाइड रखे (सुरक्षा का मार्ग बनाए रखे)। किसी भी जगह सेफसाइड का भंग करे उसे अक़्लमंद कैसे कहें? अक़्ल तो सेफसाइड को बचाकर रखती है, वहाँ तक काम आ सकती है।
मतलब, कितना सोचना है यह यदि मनुष्य समझे तो बहुत हो गया, बहुत से दु:ख कम हो जाएँगे। और दूसरा, ‘जो भुगते उसकी भूल’ यह तय कर ले तो भी बहुत से दु:ख कम हो जाएँ। तीसरा, ‘टकराव टाले’ तो भी बहुत से दु:ख दूर हो जाए।
Reference: दादावाणी Sep 2009 (Page #13 - Paragraph #2 to #5)
बुद्धि नेगेटिव, आत्मा पॉज़िटिव!
आत्मा पॉज़िटिव है और बुद्धि नेगेटिव है, विचार करवाती है... ऐसा नहीं होने दे रहा और वैसा नहीं होने दे रहा। जो नहीं हो पा रहा उसे नहीं देखना है.... जो हो सकता है उसे देखना है तो फिर चारों तरफ से अंदर मदद मिलती रहेगी। यानी बुद्धि तो हमारा समय बिगाड़ती है और आनंद उत्पन्न नहीं होने देती। और हमारे यहाँ कुछ मुश्किल नहीं है, ऐसा कहना है, ‘धन्य है यह दिवस!’ श्रीमद् राजचंद्र को समकित प्राप्त हुआ तो कहने लगे, ‘धन्य रे दिवस यह अहो!’
अर्थात् हमारे यहाँ नेगेटिव बातें नहीं होती, सारी पॉज़िटिव बातें होती है। नेगेटिव तो संसारी बातें हैं, समय बिगाड़ती है, उलझा देती है और सुख महसूस नहीं करने देती।
Reference: Book Name: आप्तवाणी 10 (उत्तरार्ध) (Page #92 - Paragraph #4 to #6)
Q. क्यों पॉज़िटिविटी (सकारात्मकता) हमें सुख देती है और नेगेटिविटी (नकारात्मकता) दुःख?
A. पॉज़िटिव ‘बोल’ के पॉज़िटिव असर! एक भाई ने मुझे पूछा कि, ‘आपके जैसी मीठी वाणी कब होगी?’ तब मैंने कहा कि ‘ये सारे जो नेगेटिव शब्द हैं आपके, वैसा बोलना बंद...Read More
A. सामने बड़ी उम्रवाला हो न, तो भी उसे कहेंगे, ‘आपमें अक्कल नहीं है।’ इनकी अक्कल नापने निकले! ऐसा बोला जाता होगा? फिर झगड़े ही होंगे न! पर ऐसा नहीं बोलना चाहिए,...Read More
A. संयोग सुधारकर भेजो दादाश्री: कैसी है आपकी माताजी की तबियत? प्रश्नकर्ता: यों तो अच्छी है, लेकिन कल ज़रा बाथरूम में गिर गई थीं, बुढ़ापा है...Read More
Q. मेरे साथ क्यों ये नेगेटिव घटनाएँ घटी? पॉज़िटिव और नेगेटिव उर्जाएँ कैसे काम करती हैं?
A. परिणाम नियमन किस शक्ति के आधार पर? प्रश्नकर्ता: मेरी पत्नी के साथ मेरा जीवन बहुत सुखी था, तो भगवान ने अट्ठाईस साल की उम्र में ही उसे मुझसे क्यों छीन लिया,...Read More
Q. पहले कोई नेगेटिव होता है, बाद में वह पॉज़िटिव बन जाता है। इसके पीछे क्या कारण है?
A. करैक्ट पॉजिटिव पर आए, तब... प्रश्नकर्ता: दादाजी, ऐसा है कि सारी ज़िंदगी नेगेटिव ही देखा हो इसलिए वह नेगेटिव ही उसके लिए फिर पॉजिटिव के समान हो जाता है,...Read More
Q. क्या सकारात्मकता भगवान के पक्ष में?
A. पॉजिटिव लाइन वही भगवान का पक्ष प्रश्नकर्ता: नेगेटिववाला क्या फिर नास्तिक हो जाता है? दादाश्री: जिसे हम नास्तिक कहते हैं ऐसा इस जगत् में नास्तिक जैसा कुछ...Read More
Q. पॉज़िटिव अहंकार और नेगेटिव अहंकार क्या फल देता है?
A. परिणाम ‘अहंकार’, पॉजिटिव में या नेगेटिव में यदि संक्षेप में कहना चाहें तो आरोपित भाव, ‘मैं *चंदुलाल हूँ’, वह इगोइज़्म भाव है। यदि आपको सांसारिक सुख चाहिए...Read More
Q. नेगेटिव विचारों को पॉज़िटिव विचारों द्वारा कैसे खत्म करें?
A. नेगेटिव को उड़ा दीजिए पॉजिटिव से प्रश्नकर्ता: यदि पॉजिटिव विचार करे कि ‘मेरा अच्छा ही होनेवाला है, मुझे ऐसा होना है’ ऐसे पॉजिटिव विचार करने पर अच्छा ही...Read More
Q. क्या ओपन माइन्ड (खुला मन) पॉज़िटिव बनने में सहायरूप है? क्या ओपन माइन्ड पॉज़िटिव माइन्ड होता है?
A. ऑपन माइन्ड है पॉजिटिव गुण जितना माइन्ड ओपन (खुला मन) रखे उतना समझे कहलाए। माइन्ड जितना ओपन हुआ उतनी समझदारी कहलाए। कम समझदारीवाला संकुचित होता जाए। जिसका...Read More
Q. सारी परिस्थितियों को पॉज़िटिव तरीके से कैसे ले?
A. सम्यक् दृष्टि से नुकसान में भी मुनाफ़ा महावीर भगवान ने अपने शिष्यों को सिखलाया था कि आप जब बाहर जाएँ और लोग कभी लाठी से प्रहार करें तो हमें समझना है कि...Read More
Q. आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, क्या हमारा जीवन पॉज़िटिव हो जाता है?
A. जागृति वही, जो दिखाए खुद के दोष प्रश्नकर्ता: ज्ञान मिलने के बाद जागृति आ जाती है उससे फिर धीरे-धीरे पूरे जीवन में बदलाव आता रहता है। दादाश्री: हाँ, बदलाव...Read More
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