अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
सम्यक् दृष्टि से नुकसान में भी मुनाफ़ा
महावीर भगवान ने अपने शिष्यों को सिखलाया था कि आप जब बाहर जाएँ और लोग कभी लाठी से प्रहार करें तो हमें समझना है कि केवल लाठी से प्रहार ही किया है न! हाथ तो नहीं तोड़ा है न! इतनी तो बचत हुई। अर्थात् इसे फ़ायदा समझना। किसी ने एक हाथ तोड़ दिया तो समझना कि दूसरा तो नहीं तोड़ा न! दोनों हाथ यदि काट डालें तब कहना कि दोनों पैर तो बच गए न? दो हाथ और दो पैर काट डालें तो कहना कि मैं जीवित तो हूँ अभी। आँखों से दिखाई तो देता है अभी। भगवान ने लाभालाभ दिखलाया। तू रोना नहीं, हसता रहे, आनंद में रहे। बात गलत है क्या?
भगवान ने सम्यक्दृष्टि से देखा, ताकि नुकसान में भी नफा दिखाई दे।
हमें कोई गालियाँ दें तो सुन लेना। हमें नेगेटिव नहीं, पॉजिटिव लेना है। नेगेटिव तो जगत् में है ही।
Reference: दादावाणी - Sep 2009 (Page #24 - Paragraph #4 to #6)
दु:ख का कारण, नासमझी
कुछ लोगों को दो हजार गँवाने पर भी कोई असर नहीं होता, ऐसा होता है या नहीं होता? कोई दु:ख उदयकर्म के अधीन होता नहीं है। सारे दु:ख हमारी अज्ञानता के हैं।
कुछ लोगों ने बीमा नहीं करवाया हो, फिर भी उनका गोडाउन जल जाए तब वे शांत रह सकते हैं, अंदर से भी शांत और बाहर भी शांत, दोनों तरह से शांत। और कुछ लोग तो अंदर भी दु:खी और बाहर भी दु:ख दिखलाएँ। वह सब अज्ञानता और नासमझी। वह गोडाउन तो सुलगनेवाला ही था। उसमें नया है ही नहीं। फिर तू सिर पटक-पटककर मर जाए तब भी उसमें फेरफार होनेवाला नहीं है।
प्रश्नकर्ता: मतलब किसी भी वस्तु के परिणाम को अच्छी तरह लेना चाहिए, ऐसा।
दादाश्री: हाँ, पॉज़िटिव लेना, मगर वह तो ‘ज्ञान’ होने पर पॉज़िटिव ले सके, नहीं तो फिर बुद्धि तो नेगेटिव ही दिखाए। यह सारा जगत् दु:खी है। मछली छटपटाए ऐसे छटपटा रहा है। इसे जीवन कैसे कहा जाए?
Reference: दादावाणी - Feb 2010 (Page #7 - Paragraph #11 & #12, Page #8 - Paragraph #1 to #3)
दु:ख खड़े हैं नेगेटिव रुख़ से
प्रश्नकर्ता: किसी भी वस्तु के परिणाम को अच्छी तरह से लेना वह मन की भूमिका नहीं कहलाए?
दादाश्री: पॉजिटिव लेना वह मन की भूमिका है। किंतु यदि ज्ञान रहा तभी वह पॉजिटिव लेगा न, वर्ना नेगेटिव ही देखेगा। यह सारा जगत् दु:खी है। मछली की तरह छटपटा रहा है। घर है, पैसा है, सबकुछ होने के बावजूद छटपटा रहा है। इसलिए समझना ज़रूरी है।
जीवन जीने की कला जानने की ज़रूरत है। जीवन जीने की कला तो होती ही है न। मोक्ष कुछ सभी का नहीं हो जाता मगर जीवन जीने की कला तो होनी चाहिए न। मोह भले ही करें किंतु मोह से ऊपर जीवन जीने की कला तो जानिए, कि कैसे जीवन जीना है। लोग सुख के लिए भटकते हैं, तब क्या सुख में क्लेश होता है? क्लेश तो उलटे सुख में भी दु:ख लाता है। भटकते हैं सुख के लिए और लाते हैं दु:ख। यदि जीवन जीने की कला आती, तो भी दु:ख नहीं लाते, और यदि दु:ख रहा होता तो उसे बाहर निकाल देते।
Reference: दादावाणी - Sep 2009 (Page #17 - Paragraph #6 & #9)
Q. क्यों पॉज़िटिविटी (सकारात्मकता) हमें सुख देती है और नेगेटिविटी (नकारात्मकता) दुःख?
A. पॉज़िटिव ‘बोल’ के पॉज़िटिव असर! एक भाई ने मुझे पूछा कि, ‘आपके जैसी मीठी वाणी कब होगी?’ तब मैंने कहा कि ‘ये सारे जो नेगेटिव शब्द हैं आपके, वैसा बोलना बंद...Read More
A. सामने बड़ी उम्रवाला हो न, तो भी उसे कहेंगे, ‘आपमें अक्कल नहीं है।’ इनकी अक्कल नापने निकले! ऐसा बोला जाता होगा? फिर झगड़े ही होंगे न! पर ऐसा नहीं बोलना चाहिए,...Read More
A. संयोग सुधारकर भेजो दादाश्री: कैसी है आपकी माताजी की तबियत? प्रश्नकर्ता: यों तो अच्छी है, लेकिन कल ज़रा बाथरूम में गिर गई थीं, बुढ़ापा है...Read More
Q. मेरे साथ क्यों ये नेगेटिव घटनाएँ घटी? पॉज़िटिव और नेगेटिव उर्जाएँ कैसे काम करती हैं?
A. परिणाम नियमन किस शक्ति के आधार पर? प्रश्नकर्ता: मेरी पत्नी के साथ मेरा जीवन बहुत सुखी था, तो भगवान ने अट्ठाईस साल की उम्र में ही उसे मुझसे क्यों छीन लिया,...Read More
Q. पहले कोई नेगेटिव होता है, बाद में वह पॉज़िटिव बन जाता है। इसके पीछे क्या कारण है?
A. करैक्ट पॉजिटिव पर आए, तब... प्रश्नकर्ता: दादाजी, ऐसा है कि सारी ज़िंदगी नेगेटिव ही देखा हो इसलिए वह नेगेटिव ही उसके लिए फिर पॉजिटिव के समान हो जाता है,...Read More
Q. क्या सकारात्मकता भगवान के पक्ष में?
A. पॉजिटिव लाइन वही भगवान का पक्ष प्रश्नकर्ता: नेगेटिववाला क्या फिर नास्तिक हो जाता है? दादाश्री: जिसे हम नास्तिक कहते हैं ऐसा इस जगत् में नास्तिक जैसा कुछ...Read More
Q. पॉज़िटिव अहंकार और नेगेटिव अहंकार क्या फल देता है?
A. परिणाम ‘अहंकार’, पॉजिटिव में या नेगेटिव में यदि संक्षेप में कहना चाहें तो आरोपित भाव, ‘मैं *चंदुलाल हूँ’, वह इगोइज़्म भाव है। यदि आपको सांसारिक सुख चाहिए...Read More
Q. नेगेटिव विचारों की क्या सीमा होनी चाहिए?
A. नेगेटिव सोचने की भी मर्यादा शक्तियाँ तो अंदर भरी पड़ी हैं। कोई कहे कि ‘मुझसे नहीं होगा’, तो वैसा हो जाए। इस नेगेटिव ने तो लोगों को मार डाला है। नेगेटिव...Read More
Q. नेगेटिव विचारों को पॉज़िटिव विचारों द्वारा कैसे खत्म करें?
A. नेगेटिव को उड़ा दीजिए पॉजिटिव से प्रश्नकर्ता: यदि पॉजिटिव विचार करे कि ‘मेरा अच्छा ही होनेवाला है, मुझे ऐसा होना है’ ऐसे पॉजिटिव विचार करने पर अच्छा ही...Read More
Q. क्या ओपन माइन्ड (खुला मन) पॉज़िटिव बनने में सहायरूप है? क्या ओपन माइन्ड पॉज़िटिव माइन्ड होता है?
A. ऑपन माइन्ड है पॉजिटिव गुण जितना माइन्ड ओपन (खुला मन) रखे उतना समझे कहलाए। माइन्ड जितना ओपन हुआ उतनी समझदारी कहलाए। कम समझदारीवाला संकुचित होता जाए। जिसका...Read More
Q. आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, क्या हमारा जीवन पॉज़िटिव हो जाता है?
A. जागृति वही, जो दिखाए खुद के दोष प्रश्नकर्ता: ज्ञान मिलने के बाद जागृति आ जाती है उससे फिर धीरे-धीरे पूरे जीवन में बदलाव आता रहता है। दादाश्री: हाँ, बदलाव...Read More
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