राग-द्वेष अनुसार मेमोरी
प्रश्नकर्ता: दादा, भूतकाल का मेमोरी से कनेक्शन है या नहीं? और मेमोरी तो नैचुरल गिफ्ट है, ऐसा कहते है न?
दादाश्री: ना, ना। गिफ्ट मतलब कोई ऐसे इनाम दे दे ऐसा नहीं। नैचुरल गिफ्ट का मतलब क्या है कि उसके जितने राग-द्वेष होते हैं उतनी ही मेमोरी होती है। अब कितने ही लोगों को शास्त्रों पर राग नहीं होता और अन्य जगह पर होता है। वे शास्त्र पढ़ते रहते हैं फिर भी याद नहीं रहता। इसलिए फिर उसे कमअक्ल कहते हैं। बाकी की कई मेमोरी होती है उसमें, लेकिन वे काम नहीं आती न! लोग तो कमअक्ल ही कहेंगे न? और यहाँ शास्त्रों में तो बहुत होशियार, बहुत मेमोरीवाला कहते हैं। तब फिर लोग उसे गिफ्ट कहते हैं। और मेमोरी में हमेशा भूतकाल का ही होता है न? भूतकाल की ही चीज़ें होती है, मेमोरी में। हमें मेमोरी से लेना-देना नहीं है। मेमोरी तो हमारी यहाँ ज्ञान में विस्तृत होनी चाहिए। जिसकी स्मृति है उसकी विस्मृति होनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता: लेकिन भूतकाल तो हमेशा देखना ही होता है न? भूतकाल तो हमेशा कुछ भी शुरू करने में वर्तमान की जो परिस्थिति होती है, उसके निराकरण के लिए भी भूतकाल तो देखना ही पड़ेगा न? अर्थात् सारा मेमोरी पर ही होता है न?
दादाश्री: हाँ, लेकिन वह तो मेमोरी ही है न! उस मेमोरी के आधार पर पूरा जगत् चल ही रहा है। लेकिन वह रिलेटिव चीज़ है। हम रियल की बात कर रहे हैं। यह रिलेटिव सारा मेमोरी के आधार पर चल रहा है। वर्तमान में सुख भोगते हो तो वर्तमान में कोई गुनाह नहीं होगा। यदि हम वर्तमान में नहीं रहेंगे न तो हमें भी भूतकाल की याद आएगी । वहाँ जात्रा में कितना अच्छा, कितना घूमते थे, मज़ा करते थे और यह क्या है, वगैरह, ऐसा सब याद आए तो क्या होगा?
प्रश्नकर्ता: दखलंदाज़ी।
दादाश्री: इसलिए वर्तमान में रहो।
प्रश्नकर्ता: उसे सब कैसे भूल सकते हैं? आज मेरा जो भूतकाल है उसे भूलने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? वह मेमोरी पर ही आधारित है न? आज ज्ञानी बन जाने पर भी उनका भूतकाल तो है ही न?
दादाश्री: रिलेटिव में तो भूतकाल के आधार पर सब चलता ही रहता है?
भूतकाल का सार ही यह वर्तमान काल है न। अत: भूतकाल आपको याद भी नहीं करना पड़ता। आपकी बेटी की शादी की है तो वह भूतकाल आज सार के रूप में आपके पास रहता ही है। इसलिए आपको कुछ भी नहीं करना है, वर्तमान में रहो। कौन सी शर्तें रखी थीं, क्या कुछ किया था, वह सब आपके वर्तमान में है ही। भूतकाल तो हमेशा बीत ही जाता है। भूतकाल खड़ा ही नहीं रहता, बीत ही जाता है।
दादावाणी June 2000 (Page #15 – Paragraph #6 to #11, Page #16 – Paragraph #1 to #4)
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