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विरासत और वसीयत को लेकर होनेवाले झगड़ों को कैसे निपटाएँ?

एक भाई हो, उसका बाप मर जाए तो जो सभी भाईर्यों की जमीन है, वह बड़े भाईर् के कब्ज़े में आ जाती है। अब बड़ा भाईर् है, वह छोटों को बार-बार धमकाता रहता है और ज़मीन नहीं देता। ढाई सौ बीघा ज़मीन थी। चारों भाईर्यों को पचास-पचास बीघा देनी थी। तब कोई पच्चीस ले गया, कोई पचास ले गया, कोई चालीस ले गया और किसी के हिस्से में पाँच ही आई।

अब उस समय क्या समझना चाहिए? जगत् का न्याय क्या कहता है कि बड़ा भाईर् लुच्चा है, झूठा है। कुदरत का न्याय क्या कहता है, बड़ा भाईर् करेक्ट है। पचासवाले को पचास दी, बीसवाले को बीस दी, चालीसवाले को चालीस और इस पाँचवाले को पाँच ही दी। बाकी पिछले जन्म के दूसरे हिसाब में चुकता हो गया। आपको मेरी बात समझ में आती है?

यदि झगड़ा नहीं करना हो तो कुदरत के तरीके से चलना, वर्ना यह जगत् तो झगड़ा है ही। यहाँ न्याय नहीं हो सकता। न्याय तो देखने के लिए है कि मुझ में कुछ परिवर्तन, कुछ फर्क हुआ है? यदि मुझे न्याय मिलता है तो मैं न्यायी हूँ, यह तय हो गया। न्याय तो एक अपना थर्मामीटर है। बाकी, व्यवहार में न्याय नहीं हो सकता न! न्याय में आया यानी मनुष्य पूर्ण हो गया। तब तक, वह या तो अबव नॉर्मेलिटी में या बिलो नॉर्मेलिटी में ही रहता है!

अर्थात् वह बड़ा भाई उस छोटे को पूरा हिस्सा नहीं देता, पाँच ही बीघा देता है। वहाँ लोग न्याय करने जाते हैं और उस बड़े भाईर् को बुरा ठहराते हैं। अब यह सब गुनाह है। तू भ्रांतिवाला है, इसलिए तूने भ्रांति को ही सच माना। फिर कोई चारा ही नहीं है और सच माना है, यानी कि इस व्यवहार को ही सच माना है तो मार ही खाएगा न! बाकी, कुदरत के न्याय में तो कोई भूलचूक है ही नहीं।

अब वहाँ पर हम ऐसा नहीं कहते कि 'तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, इन्हें इतना करना है।' वर्ना हम वीतराग नहीं कहलाएँगे। यह तो हम देखते रहते हैं कि पिछला क्या हिसाब है!

यदि हमसे कहे कि आप न्याय कीजिए। न्याय करने को कहे, तब हम कहेंगे कि भाईर्, हमारा न्याय अलग तरह का होता है और इस जगत् का न्याय अलग तरह का है। हमारा तो कुदरत का न्याय है। वर्ल्ड का रेग्युलेटर है न, वह इसे रेग्युलेशन में ही रखता है। एक क्षण के लिए भी अन्याय नहीं होता। लेकिन लोगों को अन्याय क्यों लगता है? फिर वह न्याय ढूँढता है। क्यों तुझे दो नहीं दिए और पाँच ही दिए? अरे भाई, जो दिया है, वही न्याय है। क्योंकि पहले के हिसाब हैं सारे, आमने-सामने। उलझा हुआ ही है, हिसाब है। यानी कि न्याय तो थर्मामीटर है। थर्मामीटर से देख लेना चाहिए कि 'मैंने पहले न्याय नहीं किया था, इसलिए मेरे साथ अन्याय हुआ है। इसलिए थर्मामीटर का दोष नहीं है।' आपको क्या लगता है? मेरी यह बात कुछ हेल्प करेगी?

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