"लोग मुझे पसंद नहीं करते है", "लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं", "दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं?" ये कुछ वाक्य है, जो हमारे दिमाग में चिंता उत्पन्न करते हैं और हमारी शांति भंग करते हैं । इस समय आपको अपने आप से कुछ सवाल करने चाहिए :
लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं उससे अपनी शांति क्यों बर्बाद करें ? तो, इस बारे में चिंता करना कैसे बंद करे, कि दुसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं ?
दुनिया इस तरह की बातें करेगी चाहे आपने कुछ किया हो या न किया हो । एक बार जब आपने अपना काम ईमानदारी और सही तरीके से किया, तो फिर सुकून से रहे और बाकि सब क़ुदरत पर छोड़ दें । क्योंकि परिणाम आपके हाथ में नहीं हैं । क़ुदरत यह सब करती है । तो कहिये, “जो भी होता है वो सही होता है” और आगे आने वाले परिणामो का स्वीकार करें ।
परिणाम अच्छे लेबल या बुरे लेबल के रूप में हो सकते है, जो लोग आप से जोड़ने की कोशिश करते हैं । लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे लेबल तभी टिकते हैं, जब वे आपके लिए मायने रखते हैं, जब वे आपको प्रभावित करते हैं ? यदि आप लेबल को अपने ऊपर चिपकने की अनुमति नहीं देते हैं, तो वे तुरंत वहां पर ही बेअसर हो जाते हैं ।
सच्चाई यह है, कि चिंता कभी भी आपको अपनी वर्तमानस्थिति को हल करने में मदद नही करेगी । लेकिन, यदि आप अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं के पीछे रहने वाले विज्ञान को समझे हैं, तो आप चिंताओं से ग्रस्त नहीं होंगे ।
जब अपमान का भय हमारे भीतर से निकल जाता है, तो हमे कोई ऐसा व्यक्ति से मिलना नहीं होगा, जो हमारा अपमान करे । जब तक अपमान का भय है, तब तक अपमान का लेन-देन चलता रहेगा । जब डर निकल जाता है, तो लेन-देन भी बंद हो जाता हैं । और भय के जाने के लिए, पता होना चाहिए कि, “कोई व्यक्ति आपका अपमान नहीं कर सकता हैं अगर आपके साथ उनका कोई कर्म का खाता नहीं हो और यदि आपका कर्म का खाता बाकि होगा, तो कोई भी आपको नहीं छोड़ेगा ।”
इसलिए हमारे रास्ते में जो कुछ भी आता है, वह हमारे ही कर्मो का परिणाम है । अगर आपको लगता है कि लोग मुझे पसंद नहीं करते हैं, तो यह हमारे पिछले कर्मों के कारण है कि लोग हमें दु:ख पहुँचाते हैं, या हमारी मदद करते हैं । यदि लोग हमें पसंद नहीं करते हैं, तो यह हमारा पिछले जन्म में की हुई गलती का परिणाम है, जो इस जन्म में लोगों के माध्यम से मिल रही है । इसलिए हम अपने सभी पिछले खातों को निपटाने और किसी भी नए खाते का निर्माण न करने पर ध्यान दें ।
एक पल के लिए सोचिये, किसी का अपमान करने को हमे बैंक से लोन लेने की तरह समझे । अपने पिछले जन्म में, जब आपने किसी का अपमान किया था, तो जैसे आपने बैंक से ऋण (लोन) लिया था । जिसे आपको चुकाना पड़ेगा । फिर इस जीवन में, लोग आकर आपका अपमान करते हैं, तो क़ुदरत ने आपको ऋण (लोन) चुकाने का मोका दिया है, उस अपमान पर प्रतिक्रिया न दे । लेकिन, आप क्या करते हैं ? आप प्रतिक्रिया करते हैं कि, “यह मेरा अपमान क्यों कर रहा हैं ?” तो जब आपके पुराने ऋण(लोन) का निपटारा किया जा रहा था, जब आपका अपमान किया जा रहा था, तो आपने एक नया ऋण बनाया यानी आपने नए कर्म को बांधा । इसके अलावा, यदि आप बदले में उस व्यक्ति का पाँच बार अपमान करते हैं, तो आप अपना ऋण ओर बढ़ा देते हैं ।
हैरानी की बात यह है कि हमें इस एक अपमान को स्वीकार करने में बहुत तकलीफ हो रही हैं और फिर भी हम अपने लिए आमंत्रित दु:खों की मात्रा बढ़ाते हैं । पाँच और अपमानों का एक नया खाता जोड़कर, जो अब भविष्य में हमारे पास वापस आयेंगे !
आइए देखते हैं परम पूज्य दादा भगवान की अनोखी सोच जब उनके अपने जीवन में हुए अपमान के अनुभव:
कोई हमें गालियाँ दे, हमें बुरा सुनने को मिला, वह तो बहुत पुण्यवान कहलाता है, नहीं तो वह मिलता ही नहीं न! मैं पहले ऐसा कहता था, आज से दस-पंद्रह साल पहले, कि भाई, कोई भी मनुष्य पैसों की अड़चनवाला हो, तो मैं कहता हूँ कि मुझे एक धौल मारना, मैं पाँच सौ रुपये दूँगा। एक आदमी मिला था, मैंने उससे कहा कि ‘तुझे पैसों की कमी है न? सौ-दो सौ की? तो तेरी कमी तो आज से ही पूरी हो जाएगी। मैं तुझे पाँच सौ रुपये दूँगा, तू मुझे एक धौल मार।’ तब बोला, ‘नहीं दादा, ऐसा नहीं हो सकता।’ मतलब धौल मारनेवाले भी कहाँ से लाएँ? मोल लाएँ तो भी ठिकाना पड़े, ऐसा नहीं है और गालियाँ देनेवाले का भी ठिकाना पड़े ऐसा नहीं है। तब जिसे घर बैठे ऐसा फ्री ऑफ कॉस्ट (मुफ्त में) मिलता हो तो वह भाग्यशाली ही कहलाएगा न! क्योंकि मुझे तो पाँच सौ रुपये देकर भी कोई मिलता नहीं था।
यह ज्ञान होने से पहले तो मैं खुद अपने को गालियाँ देता था, क्योंकि मुझे कोई गालियाँ देता नहीं था न! तब मोल कहाँ से लाएँ हम? और मोल कौन दे? हम कहें कि तू मुझे गाली दे, तो भी कहेगा कि नहीं आपको गाली नहीं दे सकता। यानी पैसे दें फिर भी कोई गाली नहीं देता है। इसलिए फिर मुझे खुद गालियाँ देनी पड़ती थीं, ‘आपमें अक़्ल नहीं है, मूरख हो आप, गधे हो, ऐसे हो, किस तरह के मनुष्य हो? मोक्ष धर्म कोई कठिन है कि अपने इतना सब ऊधम मचाया है?’ ऐसी गालियाँ खुद देता था। कोई गालियाँ देनेवाला नहीं हो तब फिर क्या करें? आपको तो घर बैठे कोई गालियाँ देनेवाला मिलता है, फ्री ऑफ कॉस्ट मिलता है, तब क्या उसका लाभ नहीं उठाना चाहिए?!
संदर्भ : Book Name: निजदोष दर्शन से... निर्दोष! (Page #10 Last Paragragh & Page #11 Paragragh #1)
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