इसमें कोई शक नहीं है की, आप अपने किसी प्रियजन की बीमारी के बारे में सुनते हैं तो यह एक झटके के रूप में आपके सामने आता है । लम्बे दिन और बेचैन रातें आपके दिमाग पर भारी पड़ने लगती हैं । हालांकि, आप पर जिसका सबसे बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पड़ाता है वह चिंता का है । क्या होगा, क्या गलत हो सकता है, आदि के बारे में चिंता ...
तो, आप अपने बीमार प्रियजन के बारे में चिंता करना कैसे रोकेंगे? आपको किसी भी स्थिति के अच्छे और बुरे पहलुओं के बारे में एक हद्द तक सोचना चाहिए । जिस क्षण आपकी सोच आपको तकलीफ, पहेली में या परेशान करने लगे, यह समजे की आप सीमा पार कर चुके है । तब उसके बारे में सोचना बंद करें । एक निश्चित स्तर के बाद विचार चिंता में बदल जाते हैं ।
सावधान रहने और चिंता करने में बड़ा अंतर है । सावधानी इस बात की जागृति है कि क्या आवश्यकता है, क्या सहायक है, और रोगी के लिए क्या हानिकारक है; जबकि चिंता का मतलब है, “क्या होगा?” “ मैं क्या करूँगा? '' इस प्रकार के विचार आपको भीतर से खा जाते हैं ।
जो चिंता आपको खा जाती है,वह व्यर्थ है । वह न सिर्फ आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि इच्छित परिणाम लाने में भी रुकावट पैदा करती हैं, तो चिंताएं कई मायने में विनाशकारी हैं ।
चिंताए एक प्रकार के नकारात्मक विचार हैं । नकारात्मक विचारों का प्रभाव हमेशा प्रतिकूल परिणाम लाते हैं । जब आपके विचार नकारात्मक होते हैं, तो आप कुदरत में नकारात्मक स्पंदन भेजते हैं । वे नकारात्मक स्पंदन एक साथ नकारात्मकता को खींचते हैं जो दखल और अशांति फैलती हैं । ये नकारात्मक परिणामों का कारण हैं । चिंता से होने वाले नुकसान को जानना, बीमार सदस्यों के लिय होनेवाली चिंता को रोकने का पहला कदम है ।
जब आपको फ्रैक्चर होता है,तो डॉक्टर आपको कास्ट क्यों पहनाते हैं? ताकि आप उपचार प्रक्रिया में दखल न करें । इस बारे में सोचें, यदि आपका हाथ टूट गया है, और आपके पास कास्ट नहीं है, तो आप अपने हाथ को इधर-उधर घुमाते रहेंगे । आप उस पर ध्यान केंद्रित करेंगे और यह देखते रहेंगे कि क्या यह जुड रहा है? तो क्या हाथ को ठीक होने का अवसर मिलेगा? नहीं । वास्तव में, आपकी दखल स्तिथि को ओर ख़राब कर देती है । यही कारण है कि डॉक्टरों ने आपकी टूटी हड्डियों पर एक कास्ट डाला ताकि आप दखल न कर सकें । ताकि कुदरत को अपना कार्य करने का और आपका फ्रैक्चर ठीक करने का अवसर मिल सके ।
दूसरी ओर, सकारात्मक विचार कुदरत में सकारात्मक स्पंदन भेजते हैं । जो सकारात्मक सबूतों को एक साथ इकठ्ठा करते हैं और सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं ।
भगवान ने कहा है, "समाधान करो , लेकिन चिंता मत करो ।" इसलिय चलिय हम देखते है की इन कठिन परिस्थितियों में हम क्या कर सकते है । तो प्रियजन की चिंता के कठिन समय में चिंता से बचने के व्यावहारिक उपाय यहाँ है:
भगवान ने कहा है, "जो वर्तमान में नहीं है, उसके बारे में चिंता मत करो ।" इसलिए, आगे क्या है, इसके बारे में चिंता न करें, वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करें । आपको अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना होगा और हर वो चीज़ करनी चाहिए जो आपसे संभव हो और आप कर सकते हैं, बिना किसी चिंता किए, सकारात्मकता, पर्याप्त प्यार के साथ देखभाल करो बाकी सब कुदरत पर छोड़ दो ।
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