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क्या मैं चिंता रहित रहकर व्यापार कर सकता हूँ?

प्रश्नकर्ता : धंधे की चिंता होती है, बहुत अड़चनें आती है।

दादाश्री : चिंता होने लगे तो समझना कि कार्य अधिक बिगड़नेवाला है। चिंता नहीं हो तो समझना कि कार्य नहीं बिगड़ेगा। चिंता कार्य की अवरोधक है। चिंता से तो धंधे की मौत आती है। जो चढे़-उतरे उसी का नाम धंधा, पूरण-गलन है वह। जिसका पूरण हुआ उसका गलन हुए बिना रहेगा ही नहीं। इस पूरण-गलन में आपकी कोई मिल्कियत नहीं है। और जो आपकी मिल्कियत है, उसमें कुछ पूरण-गलन होता नहीं! ऐसा शुद्घ व्यवहार है! यह आपके घर में आपके बीवी-बच्चे सभी पाटनर्स हैं॒न?

प्रश्नकर्ता :सुख-दुःख के भोगवटेमें हैं।

दादाश्री :आप अपने बीवी-बच्चों के अभिभावक कहलाते हो। सिर्फ अभिभावक को ही चिंता क्यों करनी चाहिए? और घरवाले तो उल्टा कहते हैं कि आप हमारी चिंता मत करना। चिंता से कुछ बढ़ जाता है क्या?

प्रश्नकर्ता : नहीं बढ़ता।

दादाश्री : नहीं बढ़ता? तो फिर वह गलत व्यापार कौन करे? यदि चिंता से बढ़ जाता हो तो करना।

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