जो चीज़ प्रिय हो गई हो उसी में मूर्र्छित रहना, उसका नाम लोभ। वह चीज़ प्राप्त होने पर भी संतोष नहीं होता। लोभी तो, सुबह जागा तब से रात आँख मुँदने तक, लोभ में ही रहेगा। सुबह जागा तब से लोभ की ग्रंथि जैसे दिखाये वैसे किया करें। लोभी हँसने में भी वक्त नहीं गँवाता, सारा दिन लोभ में ही होगा। लोभी, सब्ज़ी बाज़ार जाये तब भी सस्ती ढेरियाँ खोज़कर सब्जी लेगा।
लोभी व्यक्ति भविष्य के लिए सारा जमा करें। फिर बहुत जमा होने पर, दो बडे़-बडे़ चूहे घुस जाये और सब सफाया कर जाये!
लक्ष्मी जमा करना, पर बगैर इच्छा के। लक्ष्मी आती हो तो रोकना नहीं और नहीं आती तो गलत उपायों से उसे खींचना नहीं।
लक्ष्मीजी तो अपने आप आने के लिए बंधी हुई है। ऐसे हमारे संग्रह करने से संग्रहित नहीं होती कि आज संग्रह करें और पच्चीस साल बाद, बेटी ब्याहते समय तक रहेगी। उस बात में कुछ नहीं रखा है।
जो वस्तुएँ सहज में मिले उनका इस्तमाल करना, फेंक मत देना। सद्रास्ते इस्तेमाल करना। बहुत जमा करने की इच्छा नहीं करनां। जमा करने का एक नियम होना चाहिए कि हमारी पूँजी में इतना (अमुक मात्रा में) तो चाहिए। फिर उतनी पूँजी रखकर, शेष योग्य जगह पर खर्च करना। लक्ष्मी को फेंक नहीं सकते।
लोभ का प्रतिपक्ष शब्द है संतोष। पूर्वभव में थोड़ा-बहुत ज्ञान समझा हो, आत्मज्ञान नहीं पर संसारी ज्ञान समझा हो तब उसे संतोष उत्पन्न हुआ हो। और जहाँ तक ऐसा ज्ञान उसकी समझ में नहीं आता वहाँ तक लोभ बना रहेगा।
अनंत अवतार खुद ने इतना कुछ भोगा हो, उसका फिर उसे संतोष रहे कि अब कुछ नहीं चाहिए। और जिसने नहीं भोगा हो, उसे कुछ न कुछ लोभ बना रहेगा। फिर उसे, यह भुगतें (भोगें), वह भुगतें, फलाँ भुगतें, ऐसा रहा करेगा।
प्रश्नकर्ता : लोभी थोड़ा कंजूस भी होगा न?
दादाश्री : नहीं। कंजूस, वह अलग है। कंजूस तो अपने पास पैसे नहीं होने की वजह से कंजूसी करता है। और लोभी तो घर में पच्चीस हजार पडे़ होने पर भी गेहूँ चावल सस्ते कैसे मिलें, घी कैसे सस्ता मिले, ऐसे जहाँ-तहाँ उसका चित्त लोभ में ही होगा। सब्ज़ी बाज़ार जाये तो किस जगह सस्ती ढेरियाँ मिलती है वही खोजता रहता हो!
लोभी कौन कहलाये कि जो हर एक बात में जाग्रत हो।
प्रश्नकर्ता : लोभी और कंजूस में क्या फर्क?
दादाश्री : कंजूस तो केवल लक्ष्मी की ही कंजूसी करे। लोभी तो हर तरफ से लोभ में रहेगा। मान का भी लोभ करे और लक्ष्मी का भी करे। लोभी को हर तरह का लोभ होगा जो उसे हर जगह खीच जाये।
प्रश्नकर्ता : लोभी होना कि कि़फायतशार (कि़फायतरूप से बचत करनेवाला)?
दादाश्री : लोभी होना वह गुनाह है। कि़फायतशार होना वह गुनाह नहीं है।
'इकोनोमी' (कि़फायत) किसका नाम? पैसे आये तब खर्च भी करे और तंगी में पैसों के लिए दौड़-धूप भी नहीं करे। हमेशा कर्ज लेकर कार्य मत करना। कज़र् लेकर व्यापार कर सकते हैं मगर मौज-शौक नहीं कर सकते। कर्ज लेकर कब खाये? जब मरने का वक्त आये तब। वरना कर्ज लेकर घी नहीं पी सकते।
Book Name: पैसों का व्यवहार (Page #67 Paragraph #4, #5, #6 & Page #68, Page #69 Paragraph #1, #2, #3, #4).
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