प्रश्नकर्ता: अब धंधा कितना बढ़ाना चाहिए?
दादाश्री: धंधा उतना बढ़ायें कि चैन से नींद आये, जब हम हटाना चाहें तब हटा सकें, ऐसा होना चाहिए। धंधा बढ़ा-बढ़ा कर मुसीबतों को निमंत्रित नहीं करना।
यह ग्राहक और व्यापारी के बीच संबंध तो होगा ही न? अगर व्यापारी दुकान बंद कर दें तो क्या वह संबंध छूट जायेगा? नहीं छूटेगा। ग्राहक तो याद करेगा कि, 'इस व्यापारी ने मेरे साथ ऐसा किया था, ऐसा खराब माल दिया था।' लोग तो बैर याद रखे, तब फिर चाहे इस अवतार में आपने दुकान बंद कर दी हो पर अगले अवतार में वह आपको छोड़ेगा नहीं। बैर लिए बिना चैन नहीं लेगा। इसलिए भगवान ने कहा था कि 'किसी भी राह बैर छोडि़ये।' हमारे एक पहचानवाले हम से रुपये उधार ले गया थे, फिर लौटाने ही नहीं आये। तब हम समझ गये कि इसका कारण, (पिछला) बैर है। इसलिए भले ले गया, ऊपर से उसे कहा कि, 'तू अब हमें रुपये नहीं लौटाना, तुझे माफ है।' यूँ अपना ह़क छोड़कर भी यदि बैर छूटता हो तो छूड़ाइये। किसी भी राह बैर छूड़ाइये, वरना किसी एक के साथ भी बँधा बैर, हमें भटकायेगा।
लाख-लाख रुपये जायें तो हम (दादाजी) जाने देंगे, क्योंकि रुपये जानेवाले हैं और हम रहनेवाले हैं। कुछ भी हो पर हम कषाय नहीं होने देंगे। लाख रुपये गये तो उसमें क्या हुआ? हम खुद तो सलामत हैं!
इन सभी बातों को अलग-अलग रखना। धंधे में घाटा हो तो कहें कि धंधे को घाटा हुआ, क्योंकि हम (खुद) घाटे-मुनाफे के मालिक नहीं हैं, इसलिए घाटा हम अपने सिर क्यों लें? हमें घाटा-मुनाफा स्पर्श नहीं करता। और यदि घाटा हुआ और इन्कमटैक्सवाला आये, तो धंधे से कहें कि, 'हे धंधे, तुझे चुकता करना है, तेरे पास चुकाने को हो तो इसको चुकता कर दे।'
हम से (दादाजी से) कोई ऐसा पूछें कि, 'इस साल घाटे में रहे हो?' तो हम बताएँ कि, 'नहीं भैया, हम घाटे में नहीं हैं, धंधे को घाटा हुआ है।' और मुनाफा होने पर कहेंगे कि, 'धंधे को मुनाफा हुआ है।' हमें घाटा-मुनाफा होता ही नहीं है।
Book Name: पैसों का व्यवहार (Page #42 - Paragraph #5 to #7, Page #43 - Paragraph #1 to #3)
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