प्रश्नकर्ता : तब फिर मेरा कोई अपमान करे और मैं शांति से बैठा रहूँ तो वह निर्बलता नहीं कहलाएगी?
दादाश्री : नहीं, ओहोहो! अपमान सहन करना, वह तो महान बलवानता कहलाएगी! अभी हमें कोई गालियाँ दे, तो हमें कुछ भी नहीं होगा। उसके प्रति मन भी नहीं बिगड़ेगा, यही बलवानता! और निर्बलता तो ये सभी किच-किच करते ही रहते हैं न, जीव मात्र लड़ाई-झगड़े करते ही रहते हैं न, वह सब निर्बलता कहलाएगी। यानी कि अपमान शांति से सहन करना, वह महान बहादुरी है और ऐसा अपमान एक बार ही पार कर जाए, एक स्टेप लाँघ जाएँ, तो सौ स्टेप लाँघने की शक्ति आ जाती है। आपकी समझ में आया न? सामनेवाला यदि बलवान हो, तो उसके सामने तो जीवमात्र निर्बल हो ही जाता है, वह तो उसका स्वाभाविक गुण है। लेकिन यदि निर्बल मनुष्य हमें छेड़े, फिर भी यदि हम उसे कुछ भी नहीं करें, तब वह बहादुरी कहलाएगी।
वास्तव में निर्बल का रक्षण करना चाहिए और बलवान का सामना करना चाहिए, लेकिन इस कलियुग मे ऐसे लोग रहे ही नहीं हैं न! अभी तो निर्बल को ही मारते रहते हैं और बलवान से भागते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो निर्बल की रक्षा करें और बलवान का प्रतिकार करें। यदि ऐसे हों तो वह क्षत्रिय गुण कहा जाएगा॒। बाकी, सारा संसार कमज़ोर को मारता रहता है, घर जाकर आदमी पत्नी पर बहादुरी दिखाता है। खूँटे से बंधी गाय को मारेंगे तो वह कहाँ जाएगी? और खुला रखकर मारें तो? भाग जाएगी या सामना करेगी।
खुद की शक्ति होने के बावजूद मनुष्य सामनेवाले को परेशान नहीं करे, अपने दुश्मन को भी परेशान नहीं करे, वह बहादुरी कहलाती है। अभी कोई आप पर क्रोध करे और आप उस पर क्रोध करो, तो वह कायरता नहीं कहलाएगी? अर्थात् मेरा क्या कहना है कि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, वे सभी निर्बलताएँ ही हैं। जो बलवान है, उसे क्रोध करने की ज़रूरत ही कहाँ रही? लेकिन यह तो क्रोध का जितना ताप है, उस ताप से सामनेवाले को वश में करने जाता है, लेकिन जिसमें क्रोध नहीं है, उसके पास कुछ तो होगा न? उसके पास 'शील' नाम का जो चारित्र है, उससे जानवर भी वश में आ जाते हैं। बाघ, शेर, सारे दुश्मन, सभी वश में आ जाते हैं!
Book Name: क्रोध (Page #2 Paragraph #6, #7, #8 & Page #3 Paragraph #1, #2)
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