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रिश्तों में क्रोध पर कैसे काबू पाएँ?

प्रश्नकर्ता : हम क्रोध किस पर करते हैं, ओफ़िस में सेक्रेटरी पर क्रोध नहीं करते और होस्पिटल में नर्स पर नहीं करते लेकिन घर में वाइफ पर हम क्रोध करते हैं।

दादाश्री : इसलिए तो मैं लोगों को कहता हूँ, सबको कहता हूँ, कि वहाँ पर बोस जब झिड़काता हो, या फिर कोई दूसरा डाँटता हो, उन सबका क्रोध वे लोग घर में वाइफ पर निकालते हैं। इसलिए मुझे कहना पड़ता है कि, 'अरे मुआ, पत्नी को किसलिए डाँटते हो बेचारी को! बिना वजह पत्नी को डाँटते हो! बाहर कोई झिड़काए तो उनके साथ लड़ो न, यहाँ किसलिए लड़ते हो बेचारी के साथ!'

ये तो सारा दिन क्रोध करता है। गाय-भैंस अच्छी, क्रोध नहीं करतीं। कुछ शांतिवाला जीवन तो होना चाहिए न! कमज़ोरीवाला नहीं होना चाहिए। किन्तु क्रोध तो बार-बार हो जाता है! आप गाड़ी में आए न? वह गाड़ी यदि सारे रास्ते क्रोध करे तो क्या होगा?

प्रश्नकर्ता : तो आ ही नहीं सकते यहाँ पर।

दादाश्री : तो फिर आप क्रोध करो तो किस तरह उसकी (पत्नी की) गाड़ी चलती होगी? तुम तो क्रोध नहीं करती होगी न?

प्रश्नकर्ता : कभी-कभी हो जाता है।

दादाश्री : और यदि दोनों को हुआ तो फिर रहा ही क्या?

प्रश्नकर्ता : पति-पत्नी के बीच थोड़ा क्रोध तो होना ही चाहिए न?

दादाश्री : नहीं, ऐसा कोई नियम नहीं है। पति-पत्नी में तो बहुत शांति रहनी चाहिए। दुःख हो, वे पति-पत्नी ही नहीं होते। सच्ची फ्रेन्डशीप में दुःख होता नहीं है। और ये तो सबसी बड़ी फ्रेन्डशीप कहलाती है! यहाँ क्रोध नहीं होना चाहिए, ये तो लोगों ने (ऐसा मन में) बिठा दिया है। खुद को होता है इसलिए ऐसा बिठा दिया है कि 'नियम ऐसा ही है', कहते हैं! पति-पत्नी में तो बिलकुल दुःख नहीं होना चाहिए, दूसरी सभी जगह पर होता है।

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