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क्या आप क्रोध से मुक्ति चाहते हैं? आत्मज्ञान पाएँ!

यह सब आप नहीं चलाते, क्रोध-मान-माया-लोभ आदि कषाय चलाते हैं। कषायों का ही राज है! 'खुद कौन है' उसका भान होगा। तब कषाय जाएँगे। क्रोध होता है तब पछतावा होता है, लेकिन भगवान का बताया गया प्रतिक्रमण करना नहीं आए तो क्या होगा? प्रतिक्रमण करना आता तो छुटकारा हो जाता।

अर्थात् यह क्रोध-मान-माया-लोभ की सृष्टि कब तक खड़ी है? 'मैं चंदूलाल हूँ और ऐसा ही हूँ' ऐसा निश्चय है तभी तक खड़ी रहेगी। जब तक हमने प्रतिष्ठा की हुई है कि 'मैं चंदूलाल हूँ', इन लोगों ने हमारी प्रतिष्ठा की और हमने उसे मान लिया कि 'मैं चंदूलाल हूँ', तब तक ये क्रोध-मान-माया-लोभ अंदर रहेंगे।

खुद की प्रतिष्ठा कब समाप्त होगी कि जब 'मैं शुद्धात्मा हूँ' यह भान होगा तब। अर्थात् खुद के निज स्वरूप में जाए, तब प्रतिष्ठा टूट जाएगी। तब क्रोध-मान-माया-लोभ जाएँगे वर्ना नहीं जाएँगे। मारते रहने से भी नहीं जाएँगे और बल्कि बढ़ते रहेंगे। एक को मारो तो दूसरा बढ़ेगा और दूसरे को मारो तो तीसरा बढ़ेगा।

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