कोई लड़का चोर बन गया है। वह चोरी करता है। मौका मिलने पर लोगों के पैसे चुरा लेता है। घर पर गेस्ट आए हों तो उन्हें भी नहीं छोड़ता। अब उस लड़के को क्या सिखलाते हैं हम? कि तू दादा भगवान से चोरी नहीं करने की शक्ति माँग, इस जन्म में। अब, इसमें क्या लाभ हुआ उसे? कोई कहेगा, इसमें क्या सिखाया? वह तो शक्तियाँ माँगता रहता है लेकिन फिर से चोरी तो करता है। ‘अरे, भले ही चोरी करे। लेकिन वह शक्तियाँ माँगता रहता है या नहीं?’ हाँ, शक्तियाँ तो माँगता रहता है। तो हम जानते हैं कि यह दवाई क्या काम कर रही है। आपको क्या पता कि दवाई क्या काम कर रही है!
प्रश्नकर्ता : सही बात है। यह नहीं जानते कि दवाई क्या काम रही है। और माँगने से लाभ होता है यानहीं, यह भी नहीं समझते।
दादाश्री : तो इसका भावार्थ क्या है कि एक तो वह लड़का माँगता है कि ‘मुझे चोरी न करने की शक्ति दीजिए।’ यानी एक तो उसने अपना अभिप्राय बदल डाला। ‘चोरी करना गलत है और चोरी नहीं करना अच्छा है।’ ऐसी शक्तियाँ माँगता है। अत: चोरी नहीं करनी चाहिए ऐसे अभिप्राय पर आ गया। सबसे बड़ा यह है कि अभिप्राय बदल गया!
और जब से अभिप्राय बदल गया, तभी से वह गुनहगार होने से बच गया।
और दूसरा क्या होता है? भगवान से शक्ति माँगता है, अत: उसका परम विनय प्रकट हुआ। ‘हे भगवान! शक्ति दीजिए।’ कहा तो वे तुरंत शक्ति देंगे। कोई चारा ही नहीं है न! सबको देते हैं। माँगनेवाले चाहिए। इसलिए कहता हूँ न कि माँगते रहो। आप तो कुछ माँगते ही नहीं। कभी कुछ नहीं माँगते। शक्ति माँगो, यह बात आपकी समझ में आई?
उसके बारे में ‘तू’ ऐसा रखना, कि यह गलत है, बुरी चीज़ है, ऐसा। और यदि कोई कहे कि सिगरेट क्यों पीते हो? तो उसकी तरफदारी मत करना। बुरा है, ऐसा कहना। या तो यह मेरी कमज़ोरी है, ऐसा कहना तो किसी दिन छूटेगी वर्ना वह नहीं छूटेगी।
हम भी प्रतिक्रमण करते हैं न, अभिप्राय से मुक्त होना ही चाहिए। अभिप्राय रह जाने में हर्ज है।
यदि प्रतिक्रमण करे तो वह मनुष्य उत्तम से उत्तम वस्तु पा गया। अर्थात् यह टेकनिकली है। साइन्टिफिकली इसमें ज़रूरत नहीं रहती, लेकिन टेकनिकली ज़रूरत है।
यह प्याज़ की एक परत निकल जाए तो दूसरी परत अपने आप आकर खड़ी रहेगी। इसी तरह कई परतोंवाले गुनाह हैं, इसलिए एक प्रतिक्रमण करने पर एक परत हटेगी ऐसा करते-करते, सौ प्रतिक्रमण करने पर वह खत्म हो जाएगा। कुछ दोषों के पाँच प्रतिक्रमण करें, तब खत्म होते हैं, कुछ के दस और कुछ के सौ होते हैं। उसकी जितनी परतें हो उतने प्रतिक्रमण होंगे। जितना लंबा चले उतना गुनाह लंबा होता है।
प्रतिक्रमण करने से वह रस्सी जल जाती है परंतु उसकी डिज़ाइन (आकृति) वैसी की वैसी ही रहती है। किंतु अगले जनम में क्या करना पड़ेगा? ऐसे ही झाड़ने से उड़ जायेगी।
Book Name: प्रतिक्रमण (Page #21)
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