हम सभी जानते हैं कि हमें बच्चों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए, उन्हें दुःख (चोट) पहुँचाने वाले शब्द नहीं बोलना चाहिए या उन्हें मारना या डाँटना नहीं चाहिए। लेकिन कई बार परिस्थिति (चीजें) नियंत्रण से बाहर हो जाती है और हम आखिर में बच्चों को दुःख पहुँचा देते हैं और फिर पछताते हैं कि हमें उन्हें दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए था। परम पूज्य दादाश्री ने प्रार्थना की शक्ति को पहचानकर पिछली गलतियों को धोने का सर्वोत्तम रास्ता दिखाया है।
प्रतिक्रमण (किसी भी गलत काम के लिए पश्चाताप के साथ क्षमायाचना) द्वारा, हम अपने दिल (हृदय) से नेगिटव भावों को धोते हैं। यह हमारी उस व्यक्ति के प्रति नेगेटिव धारणा को बदल देता है जिस पर हम क्रोधित होते हैं। ऐसा करने से हमारी तरफ से नेगेटिव स्पंदन बंद हो जाते हैं, इससे सामने वाले व्यक्ति को भी हमसे शिकायत नहीं रहेगी। क्षमा माँगने के लिए यह सबसे शक्तिशाली प्रार्थना है जो सभी माता-पिता के लिए उपयोगी है।
यदि आप अपने बच्चे पर बहुत क्रोधित होते हैं, तो आपको चंदूभाई से कहना चाहिए, ‘इतने ज्यादा क्रोधित किसलिए होते हो? बच्ची को कितना बुरा लगेगा? भीतर से माफी माँग लो। यह बच्चों के लिए एक मौन प्रार्थना है जो समय और स्थान की परवाह किए बिना काम करती है। बच्ची के मुँह पर नहीं कहना है, लेकिन भीतर से माफ़ी मांगें और कहें कि आप फिर से ऐसा नहीं करेंगे।' वर्ना फिर माफी माँगने की होती ही नहीं है, हमने यदि कोई दुःख नहीं दिया हो तो! हम सब के भीतर आत्मा है और आत्मा तक स्पंदन पहुँचते हैं।
यदि आपको उनके लिए खराब विचार आए तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए।
जब भी आपको भीतर से लगे कि आप बच्चे के फायदे के लिए कह रहे हो लेकिन वह आपकी बात नहीं सुन रहा है और ऊपर से आपको लेक्चर देना बंद करने के लिए कह रहा है ऐसे समय में जब बोले गए शब्द काम नहीं कर रहे हैं और आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सुधरे - तो प्रार्थना अंतिम साधन है। प्रार्थना से अपने आपको समर्थ बनाएँ। शब्दों से अधिक प्रार्थना काम करती है। शब्दों से दो आना (पैसे) काम होगा जब कि प्रार्थना से सोलह आना काम होगा। बच्चों के लिए की गई प्रार्थना में इतनी शक्ति है।
चीजें बार-बार होती रहती हैं क्योंकि हमने पहले उनके लिए प्रार्थना नहीं की है। अब प्रार्थना और प्रतिक्रमण करने से समाप्त होती जाएँगी। आप भगवान, गुरु या दादा से शक्ति माँग सकते हैं और उन्हें कह सकते हैं कि आप अपने बच्चे को उनके हाथों में सौंप रहें हैं। बच्चों की देखभाल तथा मुक्ति की प्रार्थना करें। प्रेम और समझदारी के साथ उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करने की शक्ति माँगे। बस एक महीने तक रोजाना दस मिनिट प्रार्थना करें और धीरे-धीरे आप बदलाव देखेंगे। जैसे हम रोज दाँत साफ करते हैं, वैसे ही नेगेटिविटी को (धोने) दूर करने के लिए प्रतिक्रमण और प्रार्थना करें।
प्रश्नकर्ता: पूरे दिन बच्चे बाहर घूमते रहते हैं। घर का कुछ काम हो या बाहर का कुछ ज़रूरी काम हो, तो वो उसे करना चाहिए न? डाँटने पर भी कुछ नहीं करते। फिर मौन नहीं रहा जाता और बेटे पर हाथ उठ जाता है।
दादाश्री: नहीं, मौन नहीं हो जाना है। आपको शुद्धात्मा की जागृति रहती है या नहीं?
प्रश्नकर्ता: रहती है न!
दादाश्री: फिर क्या परेशानी है? ऐसा है न, वास्तव में अपना साइन्स तो क्या कहता है कि मारते समय आप उसे (चंदूभाई को ) देखते रहो, ‘चंदूभाई’ बेटे को मार रहा हो, उस समय आप ‘चंदूभाई’ को देखते रहो। ‘चंदूभाई’ क्या कह रहे हैं, इतना ही देखते रहना है और फिर ‘चंदूभाई’ से कहना है कि ‘आपने यह अतिक्रमण किया है, इस बेचारे को क्यों मारा? आप ऐसे कैसे डाँट सकते हो? आपने क्यों डाँटा? इसलिए इन सभी का प्रतिक्रमण करो।’ मतलब ‘चंदूभाई’ जब बेटे को मार रहे हों तो उस समय आपको जानते ही रहना है और साथ ही प्रतिक्रमण करवाते रहना है। ऐसा कर सकोगे न?
प्रश्नकर्ता: हाँ, दादा।
प्रश्नकर्ता: बच्चे टेढ़े चलें, तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री: बच्चे टेढ़े रास्ते जाएँ, तब भी आपको उसे देखते रहना है और जानते रहना है। और मन में भाव तय करना है और प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस पर कृपा करो। आपको तो जो हुआ वही करेक्ट कहना चाहिए। जो भुगते उसी की भूल है।
भगवान ने कहा, ‘तू सुधर तो तेरी हाज़िरी से सब सुधरेगा।’
छोटे बेटे-बेटियों को समझाना चाहिए कि सुबह नहा-धोकर सूर्यपूजा करें और रोज़ संक्षेप में बोलें कि मुझे तथा जगत् को सद्बुद्धि दो, जगत् का कल्याण करो। इतना ही बोलेंगे तो उन्हें संस्कार मिले हैं, ऐसा कहा जाएगा और माँ-बाप का कर्मबंधन छूट जाएगा।
यह तो सब अनिवार्य है। माँ-बाप ने पाँच हज़ार का उधार लेकर बेटे को पढ़ाया हो, फिर भी किसी दिन बेटा उद्दंडता करे तो बोलकर बताना नहीं चाहिए कि ‘हमने तुझे पढ़ाया।’ वह तो आप ‘ड्यूटी बाउन्ड’ थे, फ़र्ज़ था। फ़र्ज़ था, वह किया। आपको अपना फ़र्ज़ निभाना है।
दिखावे के लिए विरोध करो, लेकिन अंदर समभाव रखो। बाहर देखने में विरोध, उस पर निर्दयता ज़रा भी नहीं होने देनी चाहिए। फिर लड़का समझ जाएगा कि ‘मुझ पर पिता को द्वेष नहीं है।’ वे गुस्सा करते हैं लेकिन अंदर मेरे पिता को द्वेष नहीं है। फिर कहना, ‘भाई, देखो हम कौन से खानदान से हैं, ऐसा सब कुछ।’ फिर वह भाव बदलेगा कि यह चीज़ करने जैसी है ही नहीं। वह क्या तय करेगा? ये ज़हर पीने जैसा नहीं है।
लड़का तय करेगा कि यह चीज़ करने जैसी नहीं है, ऐसा वह मन में भाव करेगा। पहले तो पिता को नहीं कहेगा। फिर पिता को कहेगा कि मेरी इच्छा नहीं है फिर भी हो जाता है। पहले हमें पूछना पड़ता है कि तुम जान-बुझकर करते हो या हो जाता है? तब वह कहेगा, ‘मुझे नहीं करना है।’ मुझे नहीं जाना था फिर भी दो-तीन बार चला गया। फिर लड़का भी समझ जाएगा कि मुझे ऐसा नहीं करना है फिर भी हो जाता है, इसलिए कोई तीसरा, कोई भूत है। वह कर्म के उदय का भूत है। इसलिए, जब कहे कि मुझे नहीं करना फिर भी हो जाता है ऐसा कहे, तब हम समझें कि वापस मुड़ा, उसकी समझ बदली। फिर उसके बाद हमें क्या कहना चाहिए कि अब प्रतिक्रमण करना। जब भी ऐसा हो जाए तब, ‘हे भगवान! आज मुझसे ऐसा हो गया, उसकी माफी माँगता हूँ और फिर से नहीं करूँगा’, कहना। यह प्रतिक्रमण सिखाना बस, दूसरा कुछ नहीं।
आपको अपने बच्चे को प्रतिक्रमण करने के लिए कहना चाहिए। उसे माफी माँगना और अपनी गलती के लिए पश्चाताप करना सिखाना चाहिए। उसे आपको यह बताना होगा कि कितने प्रतिक्रमण करता है। यही एकमात्र तरीका है जिससे उसमें सुधार हो सकता है।
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