आज के युग में बच्चों की शिक्षा अनिवार्य है। तो, बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की क्या भूमिका है? सकारात्मक प्रोत्साहन इसकी एक कुंजी है। उन्हें एक सपना दिखाएँ। ऐसा सपना जिसके साथ वे जीना चाहते हों। उनके व्यक्तित्व का अध्ययन करें और समझें। कोई पढ़ने में होशियार होता है, कोई खेल में, कोई रचनात्मकता में, तो कोई सामाजिक प्रवृत्ति में रुचि रखता है। उनकी रुचि को पहचानने के बाद उसी के अनुसार लक्ष्य निर्धारित करें।
एक बार स्पष्ट रूप से उद्देश्य समझ में आने के बाद उसका अनुसरण करें। प्रेम से उन्हें शिक्षा का महत्व समझाइए, अच्छे प्रदर्शन के लिए इनाम दें, उन्हें प्रोत्साहित करें। परम पूज्य दादाश्री ने दिन-प्रतिदिन के झगड़े तथा बच्चों की शिक्षा संबंधी माता-पिता की उलझनों को दूर करने के लिए मार्गदर्शन दिया है। सविस्तार जानने के लिए पढ़िए।
प्रश्नकर्ताः आज के बच्चे पढ़ने के बजाय खेलने में ज्यादा रुचि रखते हैं, उन्हें पढ़ाई की ओर ले जाने के लिए उनसे कैसे काम लिया जाए, जिससे लड़कों के प्रति क्लेश उत्पन्न न हो?
दादाश्रीः इनामी योजना निकालो न! लड़कों से कहो कि पहला नंबर आएगा उसे इतना इनाम दूँगा और छठा नंबर आएगा, उसे इतना इनाम और पास होगा उसे इतना इनाम। कुछ उनका उत्साह बढ़े ऐसा करो। उसे तुरंत फायदा हो ऐसा कुछ दिखाओ, तब वह चुनौती स्वीकारेगा। दूसरा रास्ता यह है की उन पर सच्चा प्रेम रखो। प्रेम हो तो बच्चे सबकुछ मानते हैं। मेरा कहा सब बच्चे मानते हैं। मैं जो कहूँ वह करने को तैयार हैं, यानी हमें उन्हें समझाते रहना चाहिए। फिर जो करे वह सही।
प्रश्नकर्ता: उनको पढ़ाने का क्या ध्येय होना चाहिए?
दादाश्री: यह कि गलत राह पर न चला जाए। अनपढ़ हो, वह कहाँ-कहाँ जाता है? अनपढ़ को टाइम मिले, तो किस तरफ जाता है? वह तोड़फोड तक पहुँच जाता है। पढ़ाई से स्थिरता रहती है और पढ़ाई से उनमें भी थोड़ा बहुत विनय तो आता ही है। हाउ टू एडजस्ट विद पब्लिक (लोगों के साथ कैसे एडजस्ट होना) वह आता है। ज़्यादा पढ़ाई से डेवेलपमेन्ट होता है। गलत दुराग्रह और बेवजह की धमाचौकड़ी सब खत्म हो जाती है।
दादाश्रीः जिसकी सिर्फ़ पढ़ते रहने की ही नियत है! ‘वेदियों’, अपने यहाँ ‘वेदियों’ शब्द कहते हैं न। ‘वेदियों’ अर्थात क्या? जिस एक काम को पकड़ा तो उसी में रहता है। आजकल के बच्चों को कोई भान ही नहीं है। एक ही चीज़ है कि ‘पढ़ना है, पढ़ना है और बस पढ़ना है।’ व्यवहारिक ज्ञान तो समझा ही नहीं है। वे सिर्फ पढ़ते ही हैं, व्यवहारिक सूझ नहीं है उनमें और अपने समय में तो व्यवहारिक सूझ और पढ़ाई दोनों साथ में चल रहा था। और अभी तो पढ़ाई, वह भी सिर्फ एक ही लाइन में फिर तो वह आ ही जाएगा न! और क्या करना है उसमें? आज के बच्चों की शिक्षा सिर्फ पुस्तकिय है व्यवहारिक कुछ नहीं है। वो व्यवहारिक बनेंगे तो ही काम का है।
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि समझ मूलभूत होती है। बच्चों को सही समझ दें और बाकी कुदरत के हाथ में छोड दें।
माता-पिता के लिए अपने बच्चों को शिक्षा की ओर मार्गदर्शन करने के लिए यहाँ कुछ और सुझाव दिए गए हैं-
बच्चे पढ़ाई में अपनी एकाग्रता कैसे बढ़ा सकते हैं?
हररोज, आपको उनके पास “दादा भगवान के असीम जय जयकार हो” (भीतर बैठे भगवान से प्रार्थना) बुलवाना चाहिए। कई बच्चों को इससे फायदा हुआ है और उनकी पढ़ाई में एकाग्रता भी बढ़ी है। छोटी उम्र से ही, वे यह सीखेंगे कि भगवान उनके भीतर ही हैं।
पढ़ाई से पहले की प्रार्थनाः
“हे अंतर्यामी परमात्मा! मैं आपसे हृदयपूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि मैं जो भी पढ़ूँ वह मुझे याद रहे, ऐसी आप मुझे शक्ति दीजिए। मेरी चित्तवृत्ति के जो-जो दोष हुए हैं, उनके लिए मैं क्षमा मांगता हूँ। मेरा चित्त पढ़ने में एकाग्र रहे, ऐसी आप मुझे शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए।”
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