परिवार में या नज़दीक के कोई स्वजन बड़ी उम्र के हों और उनका अंतिम समय नज़दीक आ गया हो तब एक बच्चे के साथ करते हैं वैसे ही खूब प्रेम से उनके साथ डीलिंग करनी चाहिए। क्योंकि, बचपन और बुढ़ापा दोनों एक जैसे ही हैं। छोटा एक-डेढ़ साल का बच्चा हो तो उसका हम कितना ध्यान रखते हैं! ठीक वैसे ही बुज़ुर्गों का उनके अंतिम समय में ध्यान रखना चाहिए। अगर छः-बारह महीने का छोटा बच्चा उल्टी-दस्त कर दे, हाथ-पैर मारे, हाथ में दूध की बोतल हो और उसको लात मारे और वह फूट जाए तब भी हम गुस्सा नहीं होते हैं। वहाँ हमें समझ में आता है कि “कोई बात नहीं, बच्चा है। इसे समझ नहीं है।” उसी तरह बड़ी उम्र के व्यक्ति भी अगर उनके अंतिम समय में छोटे बच्चों की तरह ज़िद करें, बात नहीं मानें, तो हमें उनके ऊपर बिल्कुल भी अकुलाना नहीं चाहिए। वे उनकी मनपसंद चीज़ खाने के लिए कहें तो “क्या दिन भर खाते ही रहते हैं, अपनी तबियत संभालिए!” ऐसा कहकर बिल्कुल भी गुस्सा नहीं होना चाहिए। उल्टा, उन्हें अच्छा लगे और उनके स्वास्थ्य के लिए हितकारी हो ऐसा प्रेम से बनाकर खिलाना चाहिए।
उनका ध्यान रखने का महत्त्व इसलिए है कि जिससे अंतिम समय में उनके अंदर की परिणति बिगड़े नहीं। इसलिए उनको ज़रा सा भी दुःख, अभाव या द्वेष न रहे उल्टा वे आनंद में रहें, ऐसा करते रहना चाहिए। इतनी अच्छी सेवा करें कि जिससे उनका अंतिम समय सुधर जाए और उसके परिणाम स्वरूप उनका अगला जन्म सुधर जाए!
स्वजन की मृत्यु के समय आसपास के रिश्तेदारों का कैसा बर्ताव होता है इसका सटीक वर्णन करके परम पूज्य दादा भगवान हमें सच्ची समझ देते हैं।
प्रश्नकर्ता:किसी स्वजन का अंतकाल नज़दीक आया हो तो उसके प्रति आस-पास के सगे-संबंधियों का बरताव कैसा होना चाहिए?
दादाश्री: जिनका अंतकाल नज़दीक आया हो, उन्हें तो बहुत अच्छी तरह सँभालना चाहिए। उनका हर एक शब्द सँभालना चाहिए। उसे नाराज़ नहीं करना चाहिए। सभी को उन्हें खुश रखना चाहिए और वे उल्टा बोलें तब भी आपको स्वीकार करना चाहिए कि ‘आपका सही है!’ वे कहेंगे, ‘दूध लाओ’ तब तुरंत दूध लाकर दे दें। तब वे कहें ‘यह तो पानी वाला है, दूसरा ला दो!’ तब तुरंत दूसरा दूध गरम करके ले आएँ। फिर कहना कि ‘यह शुद्ध-अच्छा है।’ परंतु उन्हें अनुकूल रहे ऐसा करना चाहिए, ऐसा सब बोलना चाहिए।
प्रश्नकर्ता:अर्थात् उसमें सच्चे-झूठे का झंझट नहीं करना है?
दादाश्री: यह सच्चा-झूठा तो इस दुनिया में होता ही नहीं है। उन्हें पसंद आया कि बस, उसके अनुसार सब करते रहना है। उन्हें अनुकूल रहे उस प्रकार से बरताव करना है। छोटे बच्चे के साथ हम किस प्रकार का बरताव करते हैं? बच्चा काँच का गिलास फोड़ डाले तो हम उसे डाँटते हैं? दो साल का बच्चा हो, उसे कुछ कहते हैं कि क्यों फोड़ डाला या ऐसा-वैसा? बच्चे के साथ व्यवहार करते हैं, उसी प्रकार उनके साथ व्यवहार करना चाहिए।
ये तो मर जाने के बाद उन पर फूल चढ़ाते हैं। अरे, मरने के बाद क्यों फूल चढ़ा रहे हो? अरे, जब वह जीवित है, तब फूल चढ़ाओ न! क्योंकि भीतर भगवान हैं, भीतर आत्मा बैठा हुआ है। लेकिन जीते जी तो कभी भी कोई फूल नहीं चढ़ाता न? इसी को दूषमकाल कहते हैं! हिताहित का भान या खुद का हित किसमें है और अहित किसमें है, मनुष्य में इसका भान ही खत्म हो जाए, उसे कहते हैं दूषमकाल!
बुज़ुर्गों का शरीर भले ही बूढ़ा हो गया हो, बीमार हो या रोगों से सड़ हो गया हो, लेकिन उनके अंदर तो जीवित भगवान विराजमान हैं! बुज़ुर्गों की सेवा करना वह भगवान की सेवा के समान है। यदि हम प्रेम से, भाव बिगाड़े बगैर अंतिम समय में उनकी देखभाल करें, तो उनके ज़बरदस्त आशीर्वाद हमें मिलते हैं। जीवनभर पूजा, सेवा और दान करने से जो फल मिलता है, उससे भी ऊँचा फल बुज़ुर्गों की अंतिम समय में सेवा करने से मिलता है।
जिसकी मृत्यु नज़दीक हो वह व्यक्ति अनेक प्रकार की उलझनें महसूस करता है। मृत्युशैया पर उनकी फड़फड़ाहट और बहावरी परिस्थिति देखकर ही हृदय पिघल जाता है। ऐसे समय में व्यक्ति के स्वजन क्या करते हैं? व्यक्ति की अंतिम घड़ियाँ गिने जा रही हों तब उसके आसपास इकट्ठा हो जाते हैं, भागदौड़ करने लगते हैं या तो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति का दुःख और भी बढ़ जाता है। जीवनभर जिन व्यक्ति ने हमें संभाला, हमारे साथ रहे, अब उनके अंतिम समय में हमें उन्हें संभाल लेना चाहिए। उनके पास बैठकर रोने के बजाय, उनको इस दर्द में समता रहे, हिम्मत बनी रहे ऐसी बातें करनी चाहिए और शांति का माहौल बनाना चाहिए।
जब कोई व्यक्ति कोमा में हों तब भले ही उनका देह निष्क्रिय लगता हो पर अंदर आत्मा हाज़िर होता है। उन्हें बाहर के माहौल के स्पंदन पहुँचते हैं। और अगर व्यक्ति ने आत्मज्ञान प्राप्त किया हो और वह कोमा में ज्ञानदशा में हो तो देह और आत्मा जुदा हैं ऐसा उन्हें कोमा में भी हाज़िर रह सकता है।
आत्मज्ञान प्राप्त किए हुए व्यक्ति की कोमा में कैसी परिस्थिति होती है उसका बयान करता हुआ यह एक प्रसंग है। एक बहन सालों से परम पूज्य दादा भगवान के ज्ञान और भक्ति में लीन रहती थीं। बड़ी उम्र में वे बीमार पड़ गईं। जब वे हॉस्पिटल में आई.सी.यू में थीं, तब उनके बेटे ने पूज्य नीरू माँ को वहाँ पर बुलाया। बहन तो कोमा में सो रहीं थीं। पूज्य नीरू माँ ने मेडिकल की पढ़ाई की थी इसलिए मॉनिटर में शरीर के लक्षणों को देखकर ही उनको पता चल गया कि बहन के पास अब ज़्यादा वक़्त नहीं है। बहन की बेटी ने नीरू माँ से विनती की कि “नीरू माँ, मम्मी की विधि कराइए ताकि उनकी गति अच्छी हो।” पूज्य नीरू माँ ने परम पूज्य दादाश्री और वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी के फोटो को बहन के माथे पर लगाकर कहा कि “बोलो, मैं शुद्धात्मा हूँ” और अचानक वो बहन कोमा में होने के बावजूद ज़ोर ज़ोर से नॉन-स्टॉप बोलने लगीं कि “मैं शुद्धात्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ…” और मॉनिटर में शरीर के सभी लक्षण भी नॉर्मल दिखने लगे। बाद में नीरू माँ ने उन बहन से पूछा, “कहाँ जाना है?” तो बहन बोलीं, “सीमंधर स्वामी के पास।” इस तरह कोमा में पेशंट बंद आँखों से भी जवाब दे रहा है यह देखकर हॉस्पिटल के डॉक्टर और नर्स सभी आश्चर्यचकित रह गए और सभी से कहने लगे कि “मिरैकल हो गया!” लेकिन बाद में नीरू माँ ने स्पष्ट किया कि “यह मिरैकल नहीं है। आत्मदशा में ऐसा ही होता है। देह कोमा में है पर आत्मा कोमा में नहीं है।“ बाद में पूज्य नीरू माँ ने बहन की बेटी से कहा कि “इनके कान में धीरे से ‘मैं शुद्धात्मा हूँ’ बोलते रहना।” और खुद धीरे से बहार निकलने लगे। पूज्य नीरू माँ दरवाज़े के पास पहुँचे ही थे कि तभी वो बहन कोमा में ही बोलीं, “जय सच्चिदानंद!” बाद में उन बहन का समाधि मरण हुआ।
आत्मा का ज्ञान हो तो मृत्यु भी एक महोत्सव बन जाती है! देह बेहोश हो गया हो, फिर भी खुद संपूर्ण भान में रहता है। देह को वेदना होती है लेकिन खुद को वेदना का असर नहीं होता। ऐसे समय में नज़दीक के रिश्तेदार, व्यक्ति के आत्मा को पुष्टि मिले ऐसी विधि, प्रार्थना करें तो वह ज़रूर पहुँचती है।
कई बार परिवार में छोटे बच्चे को जन्म के कुछ वक़्त पश्चात् ही जानलेवा बीमारी हो जाती है। चार-छ: महीने के कोमल बच्चे को हॉस्पिटल में आखिरी साँसें लेते हुए देखें, बच्चे के माँ-बाप को असहनीय दुःख में डूबे हुए देखें तो प्रश्न होता है कि इस फूल जैसे बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा है कि उसे ऐसा सहना पड़ा? लेकिन कर्म का सिद्धांत समझ में आ जाए कि खुद को जो भोगना पड़ता है वह खुद के कर्मों के ही हिसाब से है, तो अंदर समाधान रहता है।
बालक हो, युवान हो या वृद्ध हो, मृत्यु के वक़्त किसी के कर्म में हम बदलाव नहीं कर सकते। लेकिन कर्म का फल भोगते समय उनके लिए प्रार्थना ज़रूर कर सकते हैं ताकि मृत व्यक्ति और उनके परिवार वालों को समता रहे।
नज़दीक के रिश्तेदार जब रोग से पीड़ित हों तब हमसे उनका दुःख देखा नहीं जाता और सहा भी नहीं जाता। तब ऐसा खयाल आ जाता है कि ये इतना तड़पें इससे अच्छा है कि इंजेक्शन देकर उनको हमेशा के लिए राहत दे दें। लेकिन परम पूज्य दादा भगवान नीचे के प्रश्नोत्तरी सत्संग में ऐसे ‘मर्सी किलिंग’ के सामने भारी चेतावनी देते हैं और ऐसा कहते हैं कि यह मानवता के विरुद्ध है।
प्रश्नकर्ता:जो भारी पीड़ा सहता हो उसे पीड़ा सहने दें, और यदि उसे मार डालें तो फिर उसका अगले जन्म में पीड़ा सहना शेष रहेगा, यह बात ठीक नहीं लगती। वह भारी पीड़ा सहता हो तो उसका अंत लाना ही चाहिए, उसमें क्या गलत है?
दादाश्री: ऐसा किसी को अधिकार ही नहीं है। हमें इलाज करने का अधिकार है, सेवा करने का अधिकार है, परंतु किसी को मारने का अधिकार ही नहीं है।
प्रश्नकर्ता:तो उसमें हमारा क्या भला हुआ?
दादाश्री: तो मारने से क्या भला हुआ? आप उस पीड़ाग्रस्त को मार डालो तो आपका मनुष्यत्व चला जाता है और वह तरीका मानवता के सिद्धांत के बाहर है, मानवता के विरुद्ध है।
Q. प्रिय स्वजन की मृत्यु का दुःख कैसे दूर हो?
A. प्रिय स्वजन की मृत्यु की घटना का साक्षी बनना, बहुत दुःखद अनुभव है। लेकिन जो हो गया उसे बदला नहीं... Read More
Q. स्वजन की याद में रोना आए तो क्या करें?
A. करीबी व्यक्ति की मृत्यु के बाद दुःख होना सहज है। लेकिन अगर हम इसके बारे में थोड़ा सोचें तो हमें... Read More
A. आम तौर पर जिस घर में मृत्यु हुई हो उस घर का माहौल कैसा होता है? हर तरफ़ उदासी और शोक का माहौल होता... Read More
Q. पितरों का श्राद्ध क्यों करते हैं?
A. श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम् । (श्रद्धा से जो दिया जाए वह श्राद्ध है।) श्राद्ध के लिए प्रचलित... Read More
Q. मृत्यु के बाद लौकिक विधियों का क्या महत्त्व है?
A. समाज में अनेक प्रकार की मान्यताएँ प्रचलित हैं कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का जीव तेरह दिन तक भटकता... Read More
A. मनुष्यदेह में आने के बाद अन्य गतियों में जैसे कि देव, तिर्यंच अथवा नर्क में जाकर आने के बाद फिर से... Read More
subscribe your email for our latest news and events