पति-पत्नी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आर्थिक समस्याओं का सामना न करना पड़े। जितनी ज़रूरत हो उतना ही खर्च करें। पहले से ही घर खर्च के लिए एक बजट तय कर लेना चाहिए। यदि पैसों की तंगी हो तो महंगी चीज़े खरीदने की जल्दबाजी ना करें। पैसा हो तभी खर्च करें।
घरखर्च के लिए जितना बजट तय किया हो उतने पैसे ऐसे रखें ताकि वह आपके जीवनसाथी को आसानी से उपलब्ध हो सके। ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने दें कि उन्हें आपसे पैसे मांगने पड़े।
घर में किफ़ायत कैसी चाहिए? बाहर खराब न दिखे, ऐसी मितव्ययता होनी चाहिए। किफ़ायत रसोई में घुसनी नहीं चाहिए, उदार किफ़ायत होनी चाहिए। रसोई में किफ़ायत घुसे तो मन बिगड़ जाता है, कोई मेहमान आए तो भी मन बिगड़ जाता है कि चावल खर्च हो जाएँगे! कोई बहुत उड़ाऊ हो तो उसे हम कहें कि ‘नोबल’ किफ़ायत करो।
आइए देखते हैं कि परम पूज्य दादाश्री का शादी में पैसे की समस्याओं को रोकने के बारे में क्या कहना है:
प्रश्नकर्ता : जीवन में आर्थिक परिस्थिति कमज़ोर हो तब क्या करना चाहिए?
दादाश्री : एक साल बारिश नहीं हो, तो किसान क्या कहते हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति खत्म हो गई। ऐसा कहते हैं या नहीं कहते? फिर दूसरे साल बारिश होती है, तब उसका सुधर जाता है। अर्थात् आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो तब धैर्य रखना चाहिए। खर्च कम कर देना चाहिए और किसी भी तरीके से मेहनत, प्रयत्न अधिक करने चाहिए। अर्थात् कमज़ोर परिस्थिति हो तभी यह सब करना है, बाकी परिस्थिति अच्छी हो तब तो गाड़ी अपने आप चलती रहती है।
इस देह को ज़रूरत के अनुसार खुराक देने की ही आवश्यकता है, उसे और कुछ आवश्यक नहीं, वर्ना फिर ये त्रिमंत्र हर रोज़ एक-एक घंटा बोलना न! ये बोलोगे तो आर्थिक परिस्थिति सुधर जाएगी। उसका उपाय करना चाहिए। उपाय करें तो सुधर जाएगा। आपको यह उपाय पसंद आएगा?
इन दादा भगवान का एक घंटा नाम ले तो पैसों के ढेर लगेंगे। लेकिन ऐसा करते नहीं हैं। बाकी हज़ारों लोगों के पास पैसे आए है। हज़ारों लोगों की अड़चनें गई। ‘दादा भगवान’ का नाम ले और पैसा नहीं आए तो ये ‘दादा’ ही नहीं है। लेकिन वापस घर जाकर ये लोग इस प्रकार नाम लेते नहीं न!
किसी दिन पत्नी कहे, ‘क्या आप मुझे वह साड़ी नहीं दिलाएँगे? मुझे वह साड़ी दिलानी होगी।’ तब पति कहे कि, ‘उसकी क़ीमत क्या है?’ तब कहे, ‘बाईस सौ की है, ज्यादा नहीं है।’ तो पति कहेगा, ‘आप बाईस सौ की ही कहती हैं मगर मैं इस समय उतने पैसे लाऊँ कहाँ से? इस समय यहाँ पैसों का मेल नहीं है। दो सौ-तीन सौ की होती तो ला देता पर यह तो बाईस सौ की बताती हो तुम।’ फिर पत्नी रूठकर बैठ जाए। अब क्या दशा होगी फिर? पति को मन में ऐसा भी हो कि भाड़ में जाए, इससे तो शादी नहीं की होती तो अच्छा होता। मगर ब्याहने के बाद पछताने से क्या होता है? यानी ऐसे दु:ख हैं।
पति को क्या करना चाहिए? बीवी को बाईस सौ की साड़ी दिलवा देनी चाहिए?
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि, ऐसा प्रबंध कर दीजिए कि वह अपने आप साड़ी लाए ही नहीं। यदि हमें माहवार आठ सौ पाउन्ड मिलते हों तो उसमें से सौ पाउन्ड हमारे खर्च के लिए रखकर सात सौ उसे दे देना। फिर हमसे कहें कि साड़ी दिलाइए तो उलटे हम मज़ाक उडाएँ कि, ‘वह साड़ी तो बहुत अच्छी है क्यों नहीं लातीं?’ उसका प्रबंध उसे ही करना पड़े। यदि प्रबंध हमें करना पड़े तो हम पर ज़ोर लगाए। यह सारी कला (उपाय) मैं ज्ञान होने से पहले ही सीख गया था। ज्ञानी बाद में हुआ। सारी कलाएँ मेरे पास आईं तब मुझे ज्ञान हुआ है। तो कहिए, यह कला नहीं है इसलिए ही दु:ख है न! यदि आप इस कला को सीखते हैं कि सही दृष्टिकोण के साथ अपनी पत्नी के साथ कैसे व्यवहार करें, तो आपको यह समस्या नहीं होगी।
‘पैसों का व्यवहार’ पुस्तक द्वारा परम पूज्य दादाश्री ने एक अद्भुत विज्ञान जगत् को प्रदान किया है। पैसों के व्यवहार के बारे ज्यादा पढ़ने के लिए यहाँ देखे।
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