मोक्षमार्ग में दो चीज़ें नहीं होती। स्त्री के विचार और लक्ष्मी के विचार! जहाँ स्त्री का विचार मात्र हो, वहाँ धर्म नहीं होता, लक्ष्मी का विचार मात्र हो वहाँ धर्म नहीं होता। इन दो मायाओं के कारण तो यह संसार खड़ा है। हाँ, इसलिए वहाँ धर्म ढूँढना भूल है। जब कि अभी लक्ष्मी के बिना कितने केन्द्र चलते हैं?
प्रश्नकर्ता : एक भी नहीं।
दादाश्री : वह माया छूटती नहीं न! गुरु में भी माया प्रवेश कर गई होती है। कलियुग है न! इसलिए प्रवेश कर जाती है न, काफी कुछ? इसलिए जहाँ पर स्त्री संबंधी विचार हैं, जहाँ पैसे संबंधी लेन-देन है, वहाँ सच्चा धर्म नहीं हो सकता। संसारियों के लिए नहीं, परंतु जो उपदेशक होते हैं, जिनके उपदेश के आधार पर चलते हैं, वहाँ यह नहीं होना चाहिए। नहीं तो इन संसारियों के वहाँ भी यही है और आपके वहाँ भी यही है? ऐसा नहीं होना चाहिए। तीसरा क्या? सम्यक् दृष्टि होनी चाहिए।
इसलिए लक्ष्मी और स्त्री संबंध हों, वहाँ पर खड़े मत रहना। गुरु देखकर बनाना। लीकेजवाला हो तो मत बनाना। बिल्कुल भी लीकेज नहीं चाहिए। गाड़ी में घूमता हो तो हर्ज नहीं, परंतु चारित्र में फेल हो तो हर्ज है। बा़की यह अहंकार हो उसका हर्ज नहीं है, कि 'बापजी, बापजी' करें तो खुश हो जाता है, उसमें हर्ज नहीं है। चारित्र से फेल नहीं हो तो लेट गो करना चाहिए। सबसे मुख्य वस्तु चारित्र है!
Book Name: गुरु-शिष्य (Page #130 Last Paragraph & Page #131 Paragraph #1,#2,#3)
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