प्रश्नकर्ता : कोई मनुष्य यदि आत्महत्या करे तो उसकी क्या गति होती है ? भूत-प्रेत बनता है?
दादाश्री : आत्महत्या करने से तो प्रेत बनता है और प्रेत बनकर भटकना पड़ता है। इसलिए आत्महत्या करके उलटे उपाधियाँ मोल लेता है। एकबार आत्महत्या करे, उसके बाद कितने ही जन्मों तक उसका प्रतिघोष गूँजता रहता है! और यह जो आत्महत्या करता है, वह कोई नया नहीं कर रहा है। वह तो पिछले जन्म में आत्महत्या की थी, उसके प्रतिघोष से करता है। यह जो आत्महत्या करता है, वह तो पिछले किए हुए आत्मघात कर्म का फल आता है। इसलिए अपने आप ही आत्महत्या करता है। वे ऐसे प्रतिघोष पड़े होते हैं कि वह वैसा का वैसा ही करता आया होता है। इसलिए अपने आप आत्महत्या करता है और आत्महत्या होने के बाद फिर अवगतिवाला जीव बन जाता है। अवगति अर्थात् देह के बिना भटकता है। भूत बनना कुछ आसान नहीं है। भूत तो देवगति का अवतार है, वह आसान चीज़ नहीं है। भूत तो यहाँ पर कठोर तप किए हों, अज्ञान तप किए हों, तब भूत होता है, जब कि प्रेत अलग वस्तु हैं।
प्रश्नकर्ता : आत्महत्या के विचार क्यों आते होंगे?
दादाश्री : वह तो भीतर विकल्प खतम हो जाते हैं इसलिए। यह तो विकल्प के आधार पर जीया जाता है। विकल्प समाप्त हो जाएँ, फिर अब क्या करना, उसका कोई दर्शन दिखता नहीं है, इसलिए फिर आत्महत्या करने की सोचता है। इसलिए ये विकल्प भी काम के ही हैं।
सहज विचार बंद हो जाएँ, तब ये सब उलटे विचार आते हैं। विकल्प बंद हों इसलिए जो सहज विचार आते हों, वे भी बंद हो जाते हैं। अँधेरा घोर हो जाता है। फिर कुछ दिखता नहीं है! संकल्प अर्थात् 'मेरा' और विकल्प अर्थात् 'मैं'। वे दोनों बंद हो जाएँ, तब मर जाने के विचार आते हैं।
Book Name: मृत्यु समय, पहले और पश्चात... (Page #22 Paragraph #3, #4 & Page #23 Paragraph #1, #2, #3, #4)
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