प्रश्नकर्ता :अंतिम घंटों में अमुक लामाओं को कुछ क्रियाएँ करवाते हैं। जब मृत्यु-शय्या पर मनुष्य होता है, तब तिब्बती लामाओं में, ऐसा कहा जाता है कि वे लोग उसकी आत्मा से कहते हैं कि तू इस प्रकार जा अथवा तो अपने में जो गीता-पाठ करवाते हैं, या अपने में अच्छे शब्द कुछ उसे सुनाते हैं। उससे उन पर कुछ अंतिम घंटों में असर होता है क्या?
दादाश्री : कुछ होता नहीं। बारह महीनों के बहीखाते आप लिखते हो, तब धनतेरस से आप बड़ी मुश्किल से नफा करो और घाटा निकाल दो तो चलेगा?
प्रश्नकर्ता : नहीं चलेगा।
दादाश्री : क्यों ऐसा?
प्रश्नकर्ता : वह तो सारे वर्ष का ही आता है न!
दादाश्री : उसी प्रकार वह सारी ज़िन्दगी का लेखा-जोखा आता है। ये तो, लोग ठगते हैं। लोगों को मूर्ख बनाते हैं।
प्रश्नकर्ता : दादाजी, मनुष्य की अंतिम अवस्था हो, जाग्रत अवस्था हो, अब उस समय कोई उसे गीता का पाठ सुनाए अथवा किसी दूसरे शास्त्र की बात सुनाए, उसे कानों में कुछ कहे...
दादाश्री : वह खुद कहता हो तो, उसकी इच्छा हो तो सुनाना चाहिए।
Book Name: मृत्यु समय, पहले और पश्चात...(Page #8 Paragraph #2 to #9)
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